Home / Travel / अमरनाथ गुफा की कहानी

अमरनाथ गुफा की कहानी

June 30, 2018
by


अमरनाथ गुफा की कहानी

“एकम सत” का अर्थ है कि वह जो अस्तित्व में है, एक है”। यह ऋग्वेद की एक लोकप्रिय कविता है। इस कविता के अनुसार ईश्वर के तीन रूप हैं, जो पूरे विश्व के कार्यों का संचालन करते हैं। इन्हें पवित्र त्रिदेव कहा जाता है– जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु जीवन के पालक और महेशविलय करने वाले देवता शिव हैं। ऋग्वेद में, भगवान शिव के रुद्र रूप का वर्णन भी किया गया है। यजुर्वेद के अनुसार, भगवान शिव को एक तपस्वी योद्धा के रूप में वर्णित किया गया है। जो हिरण की खाल पहनते हैं और अपने हाथ में एक त्रिशूल रखते हैं। भगवान शिव को अमर देवता माना जाता है। उनके मुख्यत: तीन निवास स्थान हैं- पहला और सबसे महत्वपूर्ण कैलाश पर्वत, दूसरा लोहित गिरि जो एक पर्वत है, इस पर्वत से ब्रह्मपुत्र नदी बहती हैं, तीसरा है मुजवान पर्वत। ऋग्वेद में भगवान शिव के भजनों का उल्लेख किया गया है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से यह स्पष्ट हो गया है कि प्राचीन भारत में भी भगवान शिव की पूजा की जाती थी।

अमरनाथ यात्रा 2018

भगवान शिव को समर्पित अमरनाथ गुफा प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जो जम्मू-कश्मीर में स्थित है। लाखों हिंदू भक्तों ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए अमरनाथ गुफा की यात्रा की है, इस गुफा के अंदर एक बर्फ का शिवलिंग स्वत: निर्मित हो जाता है। शिवलिंग का निर्माण तब होता है, जब पानी पर्वत से गिरकर गुफा के अंदर भरने के कारण भूमि पर जमने लगता है। हिंदू धर्म के विश्वास के अनुसार, अमरनाथ गुफा में शिवलिंग का आकार चंद्रमा के विभिन्न अवस्थाओं के आकार के साथ घटता-बढ़ता रहता है। लेकिन इस मान्यता का समर्थन करने के लिए कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। शिवलिंग के साथ, गुफा में और दो बर्फ की रचनाएं मौजूद हैं जिन्हें माता पार्वती और उनके पुत्र गणेश के रूप में माना जाता है।

अमरनाथ गुफा का हिंदू धर्म में एक विशेष महत्त्व है। किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव ने अमरता के रहस्यों और ब्रह्मांड के गठन की कहानी माता पार्वती को सुनाने के लिए इस गुफा को चुना था।

एक बार माँ पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि आपने मुंडों की माला पहना कब शुरू किया। इस पर, भगवान शिव ने उत्तर दिया कि जब से आप जन्मी हैं तब से। माँ पार्वती ने पूछा – आप अमर क्यों हैं और मैं बार-बार क्यों मर जाती हूं? भगवान शिव ने कहा कि यह अमर कथा के कारण है। माँ पार्वती अमर कथा सुनने के लिए व्याकुल हो उठीं और काफी समय तक भगवान शिव को मनाने के बाद, भगवान शिव माँ पार्वती को कहानी सुनाने को तैयार हो गये।

कहानी सुनाने के लिए, भगवान शिव ने बिल्कुल एकान्त जगह की तलाश करनी शुरू कर दी, ताकि माता पार्वती के अलावा कोई दूसरा प्राणी इस अमरकथा को ना सुन सके, अंत में उन्होंने अमर कथा को सुनाने के लिए अमरनाथ गुफा को चुना। वहाँ पहुंचने के लिए, उन्होंने अपनी सभी चीजों जैसे नंदी-बैल को पहलगाम में, चंद्रमा को चन्दनवरी में, अपने साँपों को शेषनाग झील के तट पर, महगुणी पर्वत और पंचतरणी में अपने पुत्र गणेश को, उन्होंने अपने पाँच तत्वों (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश) को छोड़ दिया।

उसके बाद, भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ इस पवित्र अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया। भगवान शिव हिरण की खाल पर बैठ गए और समाधि ले ली। आगे यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी जीवित प्राणी यह अमर कथा सुनकर अमर ना हो जाए, इसलिए उन्होंने कलाग्नि नामक का एक रूद्र उत्पन्न किया और उसे आदेश दिया कि “चहुँ ओर ऐसी प्रचण्ड-अग्नि प्रकट करो, जिसमें समस्त जीवधारी जल कर भस्म हो सकें।” फिर शिव ने संतुष्ट होकर माता पार्वती को अमरता की कहानी सुनाना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद,कबूतर का एक अंडा हिरण की खाल के नीचे सुरक्षित रह गया जिस पर भगवान शिव बैठे थे (चूँकि अण्डा जीवधारी की श्रेणी में नहीं आता)। कबूतरों की एक जोड़ी उस अंडे से पैदा हुई थी और माना जाता है कि वह जोडी अमर हो गई है।अमरनाथ गुफा की तरफ जाते समय तीर्थयात्रियों को कबूतर की जोड़ी भी दिखाई दे सकती है।

अमरनाथ यात्रा मार्ग

भक्त अमरनाथ गुफा की यात्रा श्रावणी मेला के त्यौहार में करते हैं, इस मेले का आयोजन जुलाई-अगस्त माह के बीच में किया जाता है।

पहलगाम से – एक पारंपरिक मार्ग

अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए, जम्मू से (315 किलोमीटर) या श्रीनगर से (96 कि.मी.) चलकर पहलगाम तक पहुंँचा जा सकता है। जम्मू से बस या टैक्सी से पहलगाम तक पहुंँचे या वायुमार्ग से श्रीनगर पहुंँचें और वहाँ से कार, बस या टैक्सी करना पड़ता है। पहलगाम से, भक्तों को सड़क परिवहन के द्वारा चंदनवारी से (16 कि.मी.) तक चलना पड़ता है। पिलग्राम, पहलगाम या चन्दनवार में शिविर लगाकर विश्राम कर सकते हैं। तीर्थयात्रियों को पिस्सू घाटी के शीर्ष तक पहुँचने के लिए ऊँचाई पर चढ़ना पड़ता है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने राक्षसों का वध किया था।

शेषनाग झील तक पहुंचने के लिए, तीर्थयात्रियों में एक प्रबल इच्छा का अनुसरण होना चाहिए। पूरे मार्ग में एक तरफ झरने की धारा और दूसरी ओर अद्भुत वन्य दृश्य हैं। इस जगह का नाम सात शिखर है। इन चोटियों का आकार पौराणिक साँप के सिर के समान है।

शेषनाग से पंचतरणी तक पहुंचने के लिए 4.6 किमी ऊपर चढ़ना पड़ता  है। यह पवित्र अमरनाथ गुफा की यात्रा के लिए अंतिम शिविर है। शीत हवाओं के कारण आपकी त्वचा पर दरारें पड़ सकती हैं। इस तरह की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी भी महसूस होती है। पंचतरणी से अमरनाथ गुफा सिर्फ 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। चूँकि यहाँ रहने की कोई जगह नहीं है, इसलिए तीर्थयात्रियों को सुबह जल्दी ही अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए ताकि यात्री अपने शिविर में समय से वापस आ सकें। पूरा मार्ग बहुत ही सुंदर है।

बालटाल से – एक नया मार्ग

अमरनाथ गुफा से 14 कि.मी. दूर स्थित बालटाल से अमरनाथ गुफा के लिए एक और मार्ग है। जम्मू से बालटाल की दूरी 400 कि.मी. है जो टैक्सी या बस द्वारा पूरी की जा सकती है। बालटाल से अमरनाथ तक का मार्ग पूरा करने के लिए यात्री छोटे कद का घोड़ा ले सकते हैं या पैदल भी यात्रा कर सकते हैं। हालांकि यह मार्ग पहलगाम की तुलना में बहुत अधिक संकुचित और ढलान युक्त  है, आधार शिविर से बालटाल तक का यह मार्ग एक दिन में पूरा किया जा सकता है। यदि आप एक दिन में यात्रा पूरी करना चाहते हैं, तो आप पहलगाम से पंचतरणी तक एक हेलीकॉप्टर किराये पर ले सकते हैं। कुल मिलाकर, अमरनाथ यात्रा अपने आप में एक अनुभव है और सभी को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार इस पवित्र स्थान पर जरूर जाना चाहिए।