Home / / भारत में दशहरा उत्सव मनाने वाले सर्वश्रेष्ठ स्थान

भारत में दशहरा उत्सव मनाने वाले सर्वश्रेष्ठ स्थान

September 11, 2017


दशहरा का उत्सव

बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में या आमतौर पर दशहरा के रूप में जाना जाने वाला विजयादशमी का उत्सव, पूरे भारत में बहुत ही जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सितंबर और अक्टूबर के महीने में, विभिन्न धार्मिक लोग भारत की इस महान सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाते हैं। दशहरा हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। उत्तरी और पश्चिमी भारत में दशहरा का त्यौहार, भगवान राम के सम्मान में मनाया जाता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की सांक्षेत्रिक विविधता, दशहरा की असंख्य (अनगिनत) कथाओं का व्याख्यान करती है। इन दिनों संपूर्ण राष्ट्र अलग-अलग प्रकार के रंगों (साज-सज्जा) से शोभायमान होता है। इस उपलक्ष पर लोग धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ नौ दिनों तक व्रत रखते हैं ताकि वह स्वयं के द्वारा अनजान में हुए पापों की क्षमा माँग सकें। तथापि, दसवें दिन, लोग रावण के पुतले को जलाने के साथ-साथ अपने सभी निराशावादी विचार, द्वेष, घृणा, लालच और क्रोध का भी दहन करते हैं। दशहरा का त्यौहार न सिर्फ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है बल्कि यह आशा, साहस और दिल के शुद्धीकरण करने का प्रतीक भी माना जाता है। हालांकि, दक्षिण भारत में दशहरे के उत्सव का आयोजन, विशाल भव्यता और महिमा के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव में, सभी लोग अपने धर्म, संस्कृति या मजहब की परवाह किए बिना, सभी बुरे और निराशावादी जैसे कार्यों से मुक्त होने के लिए एकत्र होते हैं, दशहरे में आने वाले लोग सामर्थ्य प्राप्त करने, दिल को शुद्ध करने, भलाई (निष्कपट) के कार्यों को करने, दृढ़ निश्चय के साथ, अपने लक्ष्यों को हासिल करने और नकारात्मकता को खत्म करने की आशा करते हैं। दशहरा के त्यौहार का निष्कर्ष आशा के अनुकूल शक्ति और प्रेरणा प्रदान करता है और लोगों को सभी बाधाओं से निपटने और उन पर विजय प्राप्ति करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

दशहरा कब मनाया जाता है

विजयादशमी या दशहरा के नाम से मशहूर यह त्यौहार हिंदू कैलेंडर के हिसाब से, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की 10 वीं तिथि, अर्थात् दशमी को मनाया जाता है। इस बार 2017 में, दशहरा का त्यौहार 30 सितंबर को मनाया जाएगा। हालांकि, दशहरा के पहले मनाया जाने वाला नवरात्रि के नौ दिन का त्यौहार, 21 सितंबर से 29 सितंबर तक मनाया जाएगा। इन नौ दिनों के दौरान, माँ काली देवी का आशीर्वाद पाने के लिए, इनका आह्वान (पूजा-अर्चना) किया जाता है और दसवें दिन, नवरात्रि का समापन दशहरे के रूप में किया जाता है। इस दस दिवसीय त्यौहार में विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ, रामलीला के जरिए रामायण के दृश्यों को दिखाया जाता है। उसके बाद दसवें दिन, रावण दहन करने की प्रथा है, जिसमें रावण के पुतले के साथ-साथ, मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतलों को भी जलाया जाता है।

हालांकि, पूरे भारत में दशहरे का उत्सव बड़े उत्साहपूर्वक मनाया जाता है, लेकिन कुल्लू, मैसूर और वाराणसी में दशहरे का उत्सव विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करता है।

कुल्लू में दशहरा का उत्सव: –

कुल्लू दुनिया भर में दशहरा के उत्सव के लिए मशहूर है। कुल्लू में दशहरे का उत्सव, दशहरे के दिन, अर्थात् दशमी से शुरू होता है और सात दिनों तक मनाया जाता है। हालांकि, कुल्लू में दशहरे का उत्सव रावण के पुतले को जलाकर नहीं मनाया जाता है। निष्पक्ष रूप से कुल्लू में यह उत्सव भारत के लोगों की संस्कृति का प्रदर्शन करके और जुलूस (प्रदर्शनियों) को निकालकर मनाया जाता है। इस जुलूस में भक्त अपने भगवान की और देवी की मूर्तियों को, भगवान रघुनाथ से मिलाने के लिए, अपने सिर पर रखकर ढालपुर तक ले जाते हैं। तथापि, आखिरी दिन यह जुलूस व्यास नदी पर पहुँचता है, जहाँ लकड़ियों के बने ढेर को, रावण की लंका का प्रतीकात्मक मानकर जला दिया जाता है।

मैसूर में दशहरा का उत्सव: –

मैसूर शहर में दशहरे का उत्सव मूर्ति-भजन के साथ मनाया जाता है। यह कर्नाटक राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार, मैसूर दशहरा या “नदहब्बा” के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार चार सौ साल पुराने रीति-रिवाजो के साथ मनाया जाता है। मैसूर शहर में इस त्यौहार का आयोजन, महिषासुर पर चामुंडेश्वरी देवी की जीत के उपलक्ष में किया जाता है। मैसूर का नदहब्बा त्यौहार दिन के समय बड़ी भव्यता और धूमधाम के साथ मनाए जाने के कारण विख्यात है। मैसूर शहर की शाही विरासत में, इस त्यौहार का आयोजन दस दिनों तक और लगभग 100,000 प्रकाश बल्बों से शोभायमान मैसूर पैलेस (अम्बा विलास महल) में किया जाता है। सांस्कृतिक प्रदर्शन मैसूर दशहरे का एक प्रमुख भाग है। वर्ष 1880 के बाद से निकाला जाने वाला दशहरा का जुलूस (प्रदर्शनी), एक अद्भुत प्रेरणादायक जुलूस माना जाता है। हालांकि, दसवें दिन, पूजी गई देवी की मूर्तियाँ भव्य जुलूस के साथ सजे हुए हाथी पर ले जाई जाती हैं। यह हाथी जुलूस, मैसूर पैलेस से शुरू होता है और दशहरा मैदान तक जाता है।

वाराणसी में दशहरा का उत्सव: –

भारत की सबसे आकर्षक और शानदार जगह वाराणसी, दुनिया के सबसे पुराने रामलीला प्रदर्शन के लिए मशहूर है। अन्य राज्यों की तुलना में वाराणसी में दशहरे का आयोजन, कुछ विशेष प्रकार से किया जाता है। पिछले 200 वर्षों से वाराणसी, दुनिया के सबसे पुराने रामलीला प्रदर्शन के लिए विख्यात है। भगवान राम के जीवन का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए, प्रत्येक वर्ष में एक महीने तक, यहाँ रामलीला का आयोजन किया जाता है। वाराणसी में दशहरा का उत्सव हर्षोउल्लास और भव्यता के साथ मनाया जाता है। यहाँ आप एक तरफ दिल्ली शैली वाले रामलीला उत्सव का आनंद ले सकते हैं और दूसरी तरफ कोलकाता की देवी माँ दुर्गा की पूजा के उत्सव में भाग ले सकते हैं। वाराणसी से 15 किमी दूर रामनगर में, सबसे प्रसिद्ध रामलीला प्रदर्शनों का आयोजन किया जाता है। वाराणसी में बंगाली समुदाय की प्रचुरता के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि वाराणसी माँ दुर्गा की ‘पूजा भावना’ में पूरी तरह से लीन है।