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भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद

July 9, 2018


साम्राज्यवाद को एक मजबूत राष्ट्र द्वारा कमजोर राष्ट्र पर किए गए शासन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद सबसे उपयुक्त उदाहरण है कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का पूरे नियंत्रण के माध्यम से लाभ उठाने के लिए उपयोग कैसे कर सकता है। लेकिन विस्तार में जाने से पहले, कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका पता लगा लेना चाहिए कि जैसे एक छोटा सा राज्य एक विशाल राष्ट्र पर नियंत्रण कैसे कर सकता है और साम्राज्यवाद का क्या प्रभाव था? आइए ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इतिहास पर वापस चलेते हैं।

भारतीय मसालों की तरह भारतीय धन भी विश्व में प्रसिद्ध था, जिसके कारण इतने सारे आक्रमणकारी भारत में आए। 1600 के दशक के आरंभ में व्यापार में विशेष रुचि के कारण यूरोपीय मसालों की तलाश में छोटे जहाजों के जरिए दक्षिण एशिया में आए थे। उस समय भारत पर अफगान मुगलों का शासन था। इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि भारत साम्राज्य पर पहला आक्रमण मुगलों द्वारा किया गया था।

मुगल शासक जो अफगानी मुसलमान थे, जिनके स्थानीय हिंदू शासकों के साथ घनिष्ठ संबंध थे। प्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर (1556-1605) ने भी भारत में अपने शासन का विस्तार करने के लिए हिंदू राजकुमारियों से विवाह किया था। भारत में एक बहुत ही मजबूत जनशक्ति मौजूद थी लेकिन कभी भी भारत के लोगों ने सांस्कृतिक एकीकरण को स्वीकार्य नहीं किया था। यह भारत का सबसे कमजोर बिंदु था इसके अलावा राजनीतिक मोर्चों पर भी भारत कभी एकजुट नहीं होता था।

1700 तक, मुगल साम्राज्य ने भारत मे अत्यधिक आनंद उठाया, लेकिन फिर इनका में पतन होना शुरू हो गया क्योंकि समय के साथ हिन्दू शासकों ने मुगलों की पक्षपाती नीतियों का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया था। इनकी नीतियों के अनुसार, हिदुओं को अधिक कर देना पड़ता था। हिंदू मराठों ने मुगलों का अपमान करना शुरु कर दिया, हिंदुओं और सिक्खों ने बड़े पैमाने पर एकत्र होकर मुगल नेतृत्व का उलंघन करना प्रारम्भ कर दिया था। जब यहाँ एक तरह की मानसिक अशांति चल रही थी उसी समय अंग्रेज भारत में आए।

दूसरी ओर, यूरोपियों के पास एक अधिक शक्तिशाली और उन्नत सेना थी। इसलिए भारत के क्षेत्रीय नवाबों ने सैन्य सहायता और संरक्षण के लिए यूरोपीय लोगों से मिलना शुरू कर दिया था। यूरोपियों को व्यापार में अधिक दिलचस्पी थी और दूसरी तरफ मुगलों को व्यापार में बिल्कुल रुचि नहीं थी क्योंकि वे कृषि करों से राजस्व प्राप्त कर लेते थे। इसलिए, मुगल अब तटों की रक्षा नहीं कर रहे थे। जिसके फलस्वरूप भारत में अंग्रेजों को और उनके शासन के लिए एक आसान रास्ता मिल गया था।

व्यापार और बाजार में भारत की बढ़िया आर्थिक स्थित देख कर अंग्रेजों का प्रलोभन बढ़ने लगा था। अपने स्वार्थ के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई, मद्रास और कलकत्ता जैसे तीनों शहरों में व्यापार चुंगियाँ स्थापित कर दी थीं। प्रारंभ में यूरोपीय व्यापारियों पर मुगल साम्राज्य द्वारा मजबूत नियंत्रण रखा गया था। लेकिन 1707 में मुगल साम्राज्य के पतन के कारण अंग्रेजों को भारतीय क्षेत्रों को जीतने का एक रास्ता मिल गया था। 1757 में प्लासी की लड़ाई ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली जीत थी जिसमें रॉबर्ट क्लाइव ने ब्रिटिश सैनिकों का नेतृत्व किया था।

समय के साथ, भारतीय प्रदेशों पर ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण बढ़ना शुरू हो गया था और धीरे-धीरे बांग्लादेश और दक्षिण भारत के अधिकांश क्षेत्र और उत्तर भारत में गंगा नदी के साथ लगभग वहाँ के सभी क्षेत्रों को अपने आधीन कर लिया था। ईस्ट इंडिया कंपनी और इसके सभी प्रयासों को ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ-साथ लंदन में भी अंततः एक क्रम रूप में व्यवस्थित कर दिया था। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी में अपने सेना के सिपाही थे जिनका नेतृत्व अंग्रेजों अधिकारियों द्वारा किया गया था।

शुरुआत में, अंग्रेज भारत की धन-संपदा को ही हथियाने में दिलचस्पी रखते थे। लेकिन ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के बाद से भारत में अंग्रेज अपने स्वार्थ और अधिक मुनाफे की ओर अग्रसर हो गए थे। भारत कच्चे माल का स्रोत था और साथ ही इसकी बड़ी आबादी ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं के लिए संभावित बाजार थी। जिसके फलस्वरूप भारत ब्रिटिश उपनिवेशों के लिए सबसे मूल्यवान बाजार और राष्ट्र बन गया था।

लेकिन यह पूरी तरह से भारत के विकास के खिलाफ था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को रोकने के लिए ब्रिटिशों द्वारा सभी तरह के प्रतिबंधों को लगाया गया था। भारतीयों को ब्रिटिश निर्मित सामान खरीदने के लिए मजबूर किया जाता था और इसके साथ ही भारतीय सामानों को अंग्रेजों के सामानों के साथ बराबरी करने की अनुमति भी नहीं दी जाती थी। भारत के सभी स्थानीय उत्पादक और हथकरघा वस्त्र उद्योगों को व्यवसाय से बाहर रखा गया था।

अंग्रेजों ने भारत के आंतरिक हिस्सों से कच्चे माल को ले जाने के लिए एक व्यापक रेलमार्ग का इंतजाम किया था। भारत कपास, कॉफी, चाय, जूट, इंडिगो और अफीम का एक बड़ा उत्पादक था। अंग्रेजों ने चीन को अफीम देकर उनका इस्तेमाल इंग्लैंड में चाय बेचने के लिए किया था। अंग्रेजों ने भारत में आर्थिक और साथ ही राजनीतिक शक्तियों को अधिकार में रखना शुरू कर दिया था। अंग्रेजों ने आत्मनिर्भरता के बजाय नकद फसल पर अधिक जोर दिया जिससे कई गाँव प्रभावित हुए थे। जिसके कारण भोजन के लिए फसल का कम उत्पादन हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारत में 1880 के उत्तरार्ध में एक बड़ा अकाल पड़ गया था। यहाँ तक ​​कि अंग्रेजों ने भारत के धार्मिक और पारंपरिक जीवन को भी प्रभावित कर दिया था क्योंकि वे ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के लिए धर्म-प्रचारकों  की संख्या में वृद्धि करना चाहते थे।

1850 तक, लगभग पूरा भारत अंग्रेजों के अधीन हो गया था, लेकिन अब भारतीयों के दिलों में अंग्रेजों के प्रति नफरत उत्पन्न हो गई थी। निरंतर नस्लवाद और अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास इस नफरत का प्रमुख कारण था। 1857 में सिपाहियों द्वारा बगावत आजादी का पहला युद्ध था, जिसमें 85 से 90 भारतीय सिपाहियों ने कारतूस स्वीकार करने से इंकार कर दिया था, क्योंकि उन्हे जानकारी मिली थी कि कारतूसों में गाय और सूअर के माँस की चर्बी का प्रयोग किया जाता था। यह बगावत इतनी व्यापक थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करने के लिए लगभग एक साल का समय लग गया था। हिंदू और मुस्लिम विभाजन भारतीयों की एक मुख्य कमजोरी थी। क्योंकि कुछ हिंदू मुगल शासन के खिलाफ होने के कारण अंग्रेज शासन के पक्ष में हो गए थे।

1858 के विद्रोह को भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ कहा जा सकता है। 1858 के विद्रोह के बाद, अंग्रेज सरकार ने भारत पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था जिसके फलस्वरूप भारत में पूर्ण रूप से अंग्रेजों का शासन चलने लगा था। तब से, भारतीयों की अंग्रेजों के प्रति मानसिकता बदल गई। वे स्वतंत्रता के लिए एकजुट होने लगे और जिससे भारतीय इतिहास ने समय-समय पर आजादी के लिए कई लड़ाइयाँ देखीं।

ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने भारत पर हानिकारक प्रभाव डाला था। सबसे पहले, इस अवधि के दौरान अंग्रेजों ने भारत के धन को काफी हद तक धीरे-धीरे करके लूट लिया था। ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को इतना छतिग्रस्त कर दिया कि वह कभी भी ठीक होने के योग्य नही रह गयी थी। धार्मिक संघर्ष और अंतराल का विस्तार हो गया। स्थानीय हस्तकला और कपास उद्योग को भी बर्बाद कर दिया गया, ताकि अंग्रेज अपने उत्पादों को बढ़ावा दे सकें और उन्हे बेच सकें। अन्य देशों में इन उत्पादों को बेचने के लिए अधिक से अधिक अफीम का उत्पादन किया जा रहा था, इसलिए खाद्य उत्पादन कम हो गया था। जिससे भारत को महान अकाल और गरीबी का सामना भी करना पड़ा था।

हालांकि भारत को बहुत नुकसान हुआ था, लेकिन अतीत अतीत होता है और कोई इसे बदल नहीं सकता है। हमें अपनी खोई हुई महिमा को वापस लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। हमें उन सभी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए जो अब हमारे देश के शासन के जरिए जारी है। तकि हमें फिर से पीड़ित करने वाली गुलामी की दुनिया में प्रवेश करना न पड़े।