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असम में बाढ़ : कारण, प्रभाव और समाधान

August 8, 2016


असम में बाढ़ के हालात की अनदेखी नहीं की जा सकती

असम में बाढ़ के हालात की अनदेखी नहीं की जा सकती

असम एक बार फिर बाढ़ में डूब गया है। अब यह तो जैसे हर साल होने वाली एक सालाना त्रासदी हो गई है। हर साल राज्य के बड़े भू-भाग को बाढ़ का पानी अपना शिकार बना लेता है। फसलों और संपत्ति को नुकसान पहुंचता है। कई लोगों की जान जाती है। मवेशियों और वन्य जीवों को बचाने की कोशिशें भी कभी-कभी नाकाम ही रहती है। क्या इसका कोई समाधान नहीं हैं?

हम बड़े गर्व के साथ दावे करते हैं कि आजादी के बाद से भारत ने किस तरह तरक्की की है। लेकिन जब बात असम की आती है तो देश मानकर चलता है कि इस राज्य को बाढ़ से नहीं बचा सकते। यह जीवन की ऐसी हकीकत है, जिसका सामना हर साल करना होता है। जैसे ही बाढ़ का पानी उतरता है, जिंदगी फिर पटरी पर आ जाती है।

केंद्र और राज्य में पिछले कई बरसों में कई सरकारें आई और गई। उन्होंने करोड़ों रुपए का निवेश किया। अब समय आ गया है कि उनकी लंबी अवधि की योजनाओं का आकलन किया जाए। यह देखा जाए कि जिन समाधानों को अमल में लाया गया, उन्होंने समस्या को दूर करने में सफलता पाई भी या नहीं।

इस साल हुआ नुकसान

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 28 जुलाई 2016 को जो ‘फ्लड रिपोर्ट’ जारी की है, वह कहती हैः

प्रभावित जिलेः 22

प्रभावित आबादीः 17.94 लाख

प्रभावित फसल क्षेत्रफलः
2,13,251.52 हैक्टेयर

सबसे ज्यादा प्रभावित असम के जिले:
मोरीगांव, जोरहट, धुबरी, लखीमपुर, गोलाघाट, बारपेटा, धेमाजी, सोनितपुर, गोलपारा, बोंगाईगांव और दरांग

राहत शिविरों की संख्याः
517

राहत वितरण केंद्रः
186,

राहत शिविरों में लोगः
2,29,544

इस साल अप्रैल और मई में प्री-मानसून बारिश शुरू हो गई थी। तब से हालात गंभीर हो चले थे। ब्रह्मपुत्र और उसकी कई सहायक नदियों ने अपने किनारों को तोड़कर राज्य के 35 जिलों में से 23 जिलों को बाढ़ से प्रभावित किया। करीब दो लाख हैक्टेयर में लगी फसलें डूब गई।

इसकी वजह से 11 लाख लोग प्रभावित हुए। 28 लोगों ने अपनी जान गंवाई। 1.5 लाख से ज्यादा लोग 460 से ज्यादा राहत शिविरों में आश्रय लिए हुए हैं।

कई हिस्सों में लोग अब भी बाढ़ के पानी से जूझ रहे हैं। उनके पास खाना और पीने का पानी बेहद कम है। वे राहत और बचाव दलों का इंतजार कर रहे हैं। एनडीआरएफ की टीमों को तैनात किया गया है। वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं।

असम के पर्यटन स्थल काजीरंगा नेशनल पार्क का 80 प्रतिशत हिस्सा डूब गया। राज्य में एक सिंग वाले गेंडे और अन्य वन्यजीवों को बाढ़ ने बुरी तरह प्रभावित किया है। भारत के वाइल्डलाइफ ट्रस्ट के साथ-साथ वन विभाग के कई अधिकारी जानवरों को बचाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन कई जानवर डूब चुके हैं। कई अब भी डूब क्षेत्र में फंसे हुए हैं।

निचले असम में मोरीगांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। 3.6 लाख से ज्यादा लोगों को बाढ़ के पानी का सामना करना पड़ा। जोरहट जिले में पड़ने वाला माजुली द्वीप पूरी तरह डूब गया है। इससे करीब 1.71 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।

हर साल, असम में 31.6 लाख हैक्टेयर जमीन के बाढ़ से प्रभावित होने की आशंका रहती है। इसमें 9.5 लाख हैक्टेयर हर साल सीधे-सीधे बाढ़ से प्रभावित होता है। सालाना 160 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान होता है।

बाढ़ की वजह से होने वाले मिट्टी के कटाव की भारी कीमत असम को चुकानी पड़ी है। 1954 से, अब तक 4.2 हैक्टेयर जमीन कटाव की वजह से राज्य ने खो दी है। यह राज्य के 7.1 प्रतिशत से ज्यादा है।
बीते बरसों में, दक्षिण असम क्षेत्र में सबसे ज्यादा कटाव हुआ है। नलबाड़ी में माकालुमा (80 हजार हैक्टेयर), माजुली द्वीप (42,000 हैक्टेयर), गोलपाड़ा इलाका (40,000 हैक्टेयर) और मोरीगांव (15,000 हैक्टेयर) सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

विशाल ब्रह्मपुत्र नदी

जल संसाधनों के लिहाज से ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की छठे नंबर की नदी है, जो 629.05 घन किमी/वर्ष पानी अपने साथ ले जाती है। नदी की कुल लंबाई 2,906 किमी है, जिसमें से 918 किमी भारत में पड़ती है। इसमें से 640 किमी असम में बहती है।

ब्रह्मपुत्र की 41 सहायक नदियां हैं, जिसमें से 26 उत्तरी किनारे की ओर बहती हैं जबकि 15 दक्षिणी किनारे की ओर।

बाढ़ का कारण

मौजूदा बाढ़ की वजह, अरुणाचल प्रदेश, भूटान और ऊपरी असम में हुई तेज बारिश है। इससे ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया और वह खतरे के निशान से ऊपर चले गए हैं। अतिरिक्त पानी ने कई जगहों पर तटबंध तोड़ दिए और पूरे रास्ते में बाढ़ के हालात बने। खासकर निचले असम में।

बाढ़ और मिट्टी के कटाव के मुख्य कारणः

प्राकृतिक कारणः
1- क्षेत्र की जियोलॉजी और जियोमॉर्फोलॉजी
2- घाटी की फिजियोग्राफिक स्थिति
3- सिस्मिक गतिविधि
4- अति वर्षा

मानव-निर्मित कारणः
1- मनुष्यों के बनाए तटबंधों की वजह से पानी की निकासी में होने वाली दिक्कतें
2- नदी के इलाकों में मनुष्यों का अतिक्रमण

मानसून के पानी प्रवाह के लिए यू-आकार की संकरी घाटी बंगाल की खाड़ी की ओर खुलते हुए चौड़ी हो जाती है। घाटी की औसत चौड़ाई 80-90 किमी है। जबकि नदी की औसत चौड़ाई 6-10 किमी है। नदी की प्राकृतिक धारा भारत में प्रवेश करते ही बहुत ऊंचाई से गिरती है, जिससे उसका प्रवाह बहुत तेज होता है।

ब्रह्मपुत्र घाटी और उत्तर-पूर्वी पहाड़ों के बीच, मानसून के दौरान 2,480 से 6,350 मिमी के बीच औसत बारिश होती है। ज्यादा बारिश होने की वजह से पानी असम के निचले हिस्सों में आ जाता है। खासकर कमजोर किनारों को तोड़ते हुए भीषण बाढ़ की शक्ल ले लेता है।

इस क्षेत्र की फिजियोलॉजी अभी ज्यादा पुरानी नहीं है। हिमालय के निचले हिस्से अब भी निर्माण की प्रक्रिया में हैं। हरियाली के अभाव में, मुलायम चट्टानें आसानी से पानी को राह दे देती हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के आसपास की रिहायशी बस्तियां समस्या को और बढ़ा देती है। नदियों के पानी के प्रवाह में बाधा पैदा करती है, जिससे उसका प्राकृतिक प्रवाह गड़बड़ा जाता है।
ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के तटबंधों का निर्माण बाढ़ की समस्या को कम करने के बजाय बढ़ा रहा है। बाढ़ का पानी बड़ी आसानी से इन तटबंधों को तोड़कर शहरी बस्तियों में घुस रहा है।
रेलवे पुल, सड़कों और छोटे पुलों ने पानी की निकासी को जटिल बना दिया है। पानी का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित होकर पीछे की ओर चला जाता है और कमजोर इलाकों में तटबंधों को तोड़ देता है।
महत्वपूर्ण जगहों पर बेरोक-टोक निर्माण गतिविधियों ने भी ग्रामीण इलाकों में पानी की निकासी को प्रभावित किया है। इससे स्थिति और खराब हुई है।

प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता की कमी

असम में बाढ़ की समस्या को कम करने के लिए काफी कम निवेश किया गया है। 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, 10 बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों के लिए सिर्फ 22 करोड़ रुपए का निवेश किया गया। एक कार्यक्रम के लिए औसतन 2.2 करोड़ रुपए। जिस राज्य ने 4.2 लाख हैक्टेयर जमीन कटाव की वजह से खो दी हो, जिसे हर साल 160 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है, उसे इस नुकसान से बचाने के लिए 2.2 करोड़ रुपए ही दिए गए। भले ही अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और केंद्र से वित्तीय निवेश बढ़ा है, लंबी अवधि के समाधान अब भी नहीं खोजे जा सके हैं।

बाढ़ की समस्या से निदान के लिए ज्यादातर खर्च तटबंध बनाने पर ही दिया गया। स्थानीय टोपोग्राफी पर आधारित प्राकृतिक बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रमों पर ध्यान कम ही रहा।

आज तक ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर कई जगहों पर 5,000 किमी तटबंध बनाए गए हैं।

इसकी वजह से नदियों का प्रवाहित नियंत्रित होता है। खासकर मानसून के दौरान पानी के तेज प्रवाह का दबाव इन तटबंधो पर बढ़ जाता है।

नदियों के आसपास रहने वाले लोगों ने बाढ़ से बचाव के पारंपरिक तौर-तरीके विकसित किए हैं। वह उन पर ही भरोसा करते हैं। तटबंधों के पास के सुरक्षित इलाकों में रह रहे लोगों को जरूर बाढ़ का पानी प्रभावित करता है।

सरकार और संबंधित एजेंसियों को तटबंध बनाने की मौजूदा नीति की समीक्षा करने की जरूरत है। इसमें प्राकृतिक प्रवाह के मुताबिक ज्यादा पानी बहने देने पर सोचा जाना चाहिए। यदि स्थानीय लोगों को इस योजना में भागीदार बनाया गया तो ही परिणाम अच्छे आ सकते हैं। वे स्थानीय टोपोग्राफी के आधार पर स्थानीय समाधान सुझा सकते हैं।

बाढ़ के वक्त, साफ पेयजल की उपलब्धता सबसे बड़ी समस्या होती है। आज, विज्ञान की वजह से कई सस्ती वाटर फिल्टरेशन और प्यूरीफिकेशन टेक्नोलॉजी उपलब्ध हैं। बाढ़ के वक्त इनका इस्तेमाल लोग कर सकते हैं। सरकार को इस दिशा में जागरुकता बढ़ाने पर काम करना होगा। साथ ही यह टेक्नोलॉजी लोगों को रियायती दरों पर उपलब्ध करानी होगी।

हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इस समस्या पर आवश्यक ध्यान देगी। पर्याप्त निवेश करेगी और 2017 तक असम मानसून की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो चुका होगा।

—– देबु सी

 

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