Home / Government / अटल बिहारी वाजपेयी- एक प्रभावशाली व्यक्ति

अटल बिहारी वाजपेयी- एक प्रभावशाली व्यक्ति

August 17, 2018
by


अटल बिहारी वाजपेयी- एक प्रभावशाली व्यक्ति

“मौत की उम्र ही क्या, दो पल भी नहीं”

अटल बिहारी वाजपेयी, जो एक लेखक, राजनेता और कवि थे, का निधन 16 अगस्त 2018 को हो गया। बहुरूप से लोगों का हित करने वाले व्यक्ति ने अपने पीछे एक बहुत बड़ी विरासत छोड़ी है जिसे आने वाली पीढ़ियों द्वारा याद किया जाएगा। अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्द और दुनिया के प्रति उनके दृष्टिकोण आज के समय में प्रासंगिक है। वह भारत के सबसे उम्रदराज पूर्व प्रधानमंत्री थे जो 93 साल की उम्र में जीवित थे।

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को किंग्स सिटी, ग्वालियर में हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी काव्यात्मकता और दृढ़ संकल्प के साथ जीवन जीते थे। कृष्णा देवी और कृष्णा बिहारी वाजपेयी के यहाँ जन्में, अटल बिहारी वाजपेयी जी स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएशन) के लिए कानपुर जाने से पहले, अपने गृह नगर में स्कूली और स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वाजपेयी जी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से एमए (राजनीति विज्ञान) में प्रथम श्रेणी की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, लॉ की पढ़ाई करने चाहते थे, लेकिन विभाजन दंगों के कारण यह संभव न हो सका। कुछ साल पहले, 1939 में अटल जीने उस मार्ग को व्यवस्थित किया था जो अंततः उन्हें राजनीति में ले आया।

1939 में, अटल बिहारी वाजपेयी जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए और 1947 में इसके “पूर्णकालिक कार्यकर्ता (प्रचारक)” बन गए। वह पहले से ही ग्वालियर में आर्य समाज की युवा इकाई आर्य कुमार सभा के सदस्य थे। 1944 में, वह यहाँ के महासचिव बने। यहआरएसएस के कारण से संभव हो सका था कि उन्होंने खुद को भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों के बीच अपनी जगह बना ली और अंततः भारतीय जनता पार्टी के मुख्य सदस्य के स्थान पर आ गये।

राजनीतिक करियर

पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चार दशकों से अधिक समय तक संसद के सदस्य रहे। राजनीति के साथ उनका पहला प्रत्यक्ष स्पर्श अगस्त 1942 में हुआ था, जब उन्हें और उनके बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिनों के लिए जेल भेजा गया था। उन्हें आपातकाल (1975-77) के दौरान दूसरी बार गिरफ्तार किया गया था।

1951 में, उन्होंने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) के हिंदू दक्षिण पंथी राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ के लिए काम करना शुरू कर दिया। बाद के वर्षों में, वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सियामा प्रसाद मुखर्जी के घनिष्ट मित्र बन गए। 1957 में वाजपेयी की पहली संसदीय जीत और साथ ही साथ उनकी पहली हार दोनों देखने को मिली। जहाँ वे मथुरा लोकसभा सीट मार्क्सवादी नेता राजा महेंद्र प्रताप से हार गए, वही उन्होंने बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से सीट जीती। अटल बिहारी वाजपेयी 1957-62 और 1967-71 के दौरान बलरामपुर सांसद रहे। हालांकि, वे सबसे ज्यादा समय तक लखनऊ निर्वाचन क्षेत्र (लोकसभा) के सांसद रहे थे। वाजपेयी ने 1991 से लगातार पांच बार लखनऊ से जीत प्राप्त की। स्वास्थ्य चिंताओं के कारण, 2009 में, उन्होंने राजनीति से विदा लेने की बात कही।

सेवानिवृत्ति होने से पहले, वाजपेयी ने एक मजबूत राजनीतिक करियर का नेतृत्व किया।1968 में, उन्हें जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।1977 के आम चुनावों में उनकी पार्टी की जीत के बाद, 1977 में, वे विदेश मामलों के मंत्री बने। उसी वर्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की महासभा में भारतीय विदेश मंत्री के रूप में हिंदी में एक भाषण दिया। वे ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे। तीन साल बाद, जब 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, तो वे 1986 तक पद धारण करने वाले पहले अध्यक्ष बने।

प्रधानमंत्री वाजपेयी जी

वाजपेयी जी ने भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार देश की सेवा की। उनका पहला कार्यकाल 1996 में मात्र 16 दिनों का था, 1996 के आम चुनावों में भाजपा एक सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। हालांकि, बहुमत साबित करने के लिए पार्टी पर्याप्त समर्थन इकट्ठा करने में असमर्थ रही, जिससे मंत्रालय भंग कर दिया गया। उनका दूसरा कार्य 1998-99 से था, जो 13 महीने तक चला, जब तक एआईएडीएमके ने अपना समर्थन वापस नहीं लिया।

1999 के आम चुनावों में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 543 लोकसभा सीटों में से कुल 303 सीटें जीती। पहली बार एक स्थायी बहुमत हासिल करने के बाद, बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ने सरकार का गठन किया और अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। संयोग से, उन्होंने 2004 में अपने कार्यकाल के समापन के साथ ही भारत के 10 वें प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया।

प्रमुख विशेषताएँ

अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि “आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं “। इसलिए, उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के दौरान, पाकिस्तान के साथ जितने संभव हो सके तनाव को कम करने के प्रयास किए। उन्होंने एक बार 1999 में और फिर 2004 में, भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दो बार पाकिस्तान का दौरा किया। 1999 में, उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात की। जैसा कि शरीफ ने बाद में बताया कि वाजपेयी ने “1999 को कश्मीर मुद्दे सहित पाकिस्तान और भारत के बीच मौजूद सभी समस्याओं के समाधान के रूप में घोषित करने की कामना की।”

प्रिंट के वर्तमान ईआईसी (चैयरमैन) शेखर गुप्ता, के साथ बात करते समय, वाजपेयी ने कहा, “यदि भारत और पाकिस्तान के नेता शांति बनाने के लिए आदर्श पल का इंतजार करते रहे, तो उन्हें कभी मौका नहीं मिल सकता है।” ऐसी वाजपेयी की विचारधारा थी। ऐसे कई लोग हैं जो अभी भी यह मानते हैं कि यदि वाजपेयी जी के पास अधिक समय होता, तो कश्मीर मुद्दे के साथ-ही-साथ पाकिस्तान के साथ अन्य संघर्ष के मुद्दों का भी हल हो गया होता।

अटल बिहारी वाजपेयी – कवि राजनीतिज्ञ और प्रधानमंत्री, निश्चित रूप उन्होंने एक ऐसा जीवन जीया जिसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे। जैसा कि आज पूरा राष्ट्र उन्हें खोने के गम से दुखी है, आइए एक बार फिर से उनके शब्दों को याद करते हैं-

“मौत की उम्र क्या है?, दो पल भी नहीं।”

 

 

Summary
Article Name
अटल बिहारी वाजपेयी- एक प्रभावशाली व्यक्ति
Description
कवि राजनेता और प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी जी निश्चित रूप से एक काव्यात्मकता और दृढ़ संकल्प के साथ जीवन जीते थे जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। जैसा कि राष्ट्र, राष्ट्र के नुकसान से दुखी है, चलिए एक बार फिर से उनके शब्दों को याद करते हैं- "मौत की उम्र क्या है, दो पल भी नहीं।"
Author