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मोदी की 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर की नदी-लिंकिंग योजना लागू होने को तैयार

September 4, 2017


 नदी-लिंकिंग योजना

कई दशकों से विचार-विमर्श और बहस के पश्चात्, भारत अंततः देश की 60 से अधिक हिमालय की प्रमुख और प्रायद्वीपीय नदियों को जोड़ने के लिए एक विशाल परियोजना शुरू करने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार ने दावा किया है कि यह महत्वाकांक्षी परियोजना, पिछले कुछ सालों में देश में पड़ने वाले सूखे और बाढ़ की समस्यों से निजात दिलाने के लिए बिलकुल उपयुक्त है। नदियों को आपस में जोड़ने (लिंक) की परियोजना को पूरा करने में, भारत सरकार के राजकोष (खजाने) से 87 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत व्यय होने की संभावना है। नदी के जल और जल वितरण के प्रबंधन से संबंधित स्पष्ट लाभ के अलावा, यह परियोजना हजारों मेगावाट जल विद्युत (पनबिजली) का उत्पादन करने मे सक्षम होगी, जिससे भारत में स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि होगी और साथ ही भारत के नवीकरणीय ऊर्जा का स्तर भी काफी ऊँचा हो जाएगा। यह परियोजना अधिक स्वच्छ नेविगेशनल सुविधाओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

परियोजना के चरण

नदियों को आपस में जोड़ना कोई नया विचार नहीं है। ब्रिटिश राज के समय आर्थर कॉटन द्वारा नदियों को आपस में जोड़ने का सुझाव दिया गया था। 1950 के दशक में इसी तरह की एक परियोजना के बारे में विचार-विमर्श और चर्चा हुई थी। ऐसा एक बार और हुआ था जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री की गद्दी पर आसीन थे, लेकिन नौकरशाही विलंब और राजनीतिक विरोध के कारण यह परियोजना शुचारू रूप से क्रियान्वित नहीं हो पाई थी। वर्तमान में एनडीए सरकार ने फिर से चरणबद्ध तरीके से इस परियोजना को जारी करने का निर्णय लिया है। इस परियोजना से जुड़े कई चरणों में से एक पैटिसीमा, आंध्र प्रदेश में गोदावरी और कृष्णा नदियों पर पहले से ही (2015 में कमीशन-प्राप्त) सुचारू रूप से क्रियान्वित है। बेतवा से जोड़ने के लिए, कर्नावती (केन) नदी पर एक बाँध का निर्माण और नहर के निर्माण का कार्य अगले चरण में होगा। यह बाँध देश में भविष्य के सभी बाँध निर्माणों के खाका (ब्ल्यूब्रिंट) के रूप में उभरा है। अन्य प्रमुख चरणों में दमन गंगा के साथ पिंजल, पर-ताप्ती के साथ नर्मदा, थामिराबरानी, ​​करुमेनियार और नांबियार नदियों को जोड़ा जाएगा और गोदावरी को पेना और गंगा के साथ जोड़ना शामिल है।

नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना में आने वाली अड़चने

कई दशकों से विचार विमर्श होने के बावजूद, अभी भी नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना में कई बाधाएं सामने आ रही है। यह एक भव्य विचार के साथ विशुद्ध पैमाने पर बनाई गई परियोजना है, लेकिन इसका विस्तार बहुत है, जो पर्यावरणविदों के लिए एक चिंता का कारण बना हुआ है। यहाँ पर्यावरणविदों द्वारा उठाई गई कुछ प्रमुख आपत्तियाँ पेश हैं –

प्राकृतिक विधान के लिए तकलीफदेह – सूखा और नदियों में बाढ़ प्राकृतिक विधान का ही हिस्सा हैं और उनमें विघ्न डालना पारिस्थितिकी और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसके अलावा, विभिन्न नदियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बड़ी पाइपों से, नदियों के मीठे पानी (साफ जल) में रहने वाली मछलियों और सूक्ष्मजीवों के निवास भी नष्ट होने की आशंका है।

आवश्यकता – आलोचकों का दावा है कि सरकार ने सूखे और बाढ़ का मुकाबला करने के लिए जलस्तर के विकास, भूजल पुनर्भरण, वर्षा के जल का संचयन जैसे अन्य सभी तरीकों का बंदोबस्त किए बिना ही, जल्दबाजी में निर्णय ले लिया है, जिससे नई फसलों की पद्धति के विकास के लिए पानी की आपूर्ति आवश्यकता से कम हो सकती है।

अध्ययन और योजना का अभाव – आलोचकों का मानना ​​है कि प्रमुख नदियों को जोड़ने से होने वाले दीर्घकालिक प्रभाव का अध्ययन नहीं किया गया है। इस बात पर भी कोई गौर नहीं किया गया है कि यह परियोजना राज्यों और उन नदी की घाटियों में रहने वाले लोगों के जीवन को कितना प्रभावित करेगी। उदाहरण के लिए, यह भी अभी निश्चित नहीं है कि इस परियोजना में नदियो से निकलने वाली मिट्टी (सिल्ट) को कहाँ डाला जाएगा।

समुदायों का विस्थापन – नदियों को जोड़ने के निर्माण के कारण, आधे मिलियन से अधिक लोग अपने घरों से बहिष्कृत हो सकते हैं। इससे उन लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा इस पर अभी विचार नहीं किया गया है।

लागत – आलोचकों का मानना ​​है कि इस परियोजना की लागत का अनुमान (87 मिलियन अमरीकी डॉलर या 5.6 लाख करोड़) रुपए पुराना है और इस परियोजना के पूर्ण होने तक लागत लगभग दोगुनी हो सकती है।

आलोचकों की आलोचनाओं के बावजूद, यह बात स्वीकार करने योग्य है कि नदियों को आपस में जोड़ने के बहुत फायदे भी हैं। केवल इसी वर्ष में, देश में आने वाली विभिन्न बाढ़ों में, लगभग 1000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गँवा दी है। महाराष्ट्र और पश्चिमी क्षेत्र, सूखे के सबसे सतायल (सूखे से पीड़ित) स्थानों में से एक हैं। अस्थिर मानसून पर किसानों की निर्भरता को कम करने के अलावा, नदियों के आपसी जुड़ाव के फलस्वरूप सालभर में वृत्त के आकार में लगभग 87 मिलियन एकड़ जमीन की सिंचाई की जा सकती है और 174 ट्रिलियन (महाशंख) लीटर पानी का आसानी से हस्तानांतरण किया जा सकता है। इससे अंतर्राज्यीय जल विवाद और जो खाद्य संकट हमने पिछले वर्षों में देखे हैं, उससे भी छुटकारा पाया जा सकता है। घरेलू और औद्योगिक इकाइयों में पानी की आपूर्ति में बढ़ोतरी, देश भर में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएगी। हम हाइड्रोजनीकृत ऊर्जा (पावर) के उत्पादन के द्वारा, होने वाले बहुत सारे लाभों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। एक चरणबद्ध और बहुत ही नियंत्रित कार्यान्वयन और पर्यावरण के नजरिए से इस परियोजना के प्रभावों की, सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता है।