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शिक्षा का अधिकार अधिनियम

April 20, 2018
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जब 2009 में पहली बार शिक्षा का अधिनियम पारित हुआ था, तो इसके आलोचक यह सोचते थे कि क्या यह पूरी तरह से क्रियान्वित हो पाएगा। आरटीई एक क्रियाशीलता का हिस्सा है न कि कोई जादू की छड़ी, जो निश्चित रूप से वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाली चुनौतियों का समापन कर देगा। आरटीई (शिक्षा का अधिकार) ने स्कूलों में कुछ विशेष रूप से मूल सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं और जिसके फलस्वरूप सुविधाहीन स्कूली प्रणाली की कुछ हद प्रतिष्ठा बहाल हुई है। न्यूनतम मानकों वाले स्कूलों की मान्यता को रद्द करने की अंतिम तिथि 2013 मार्च थी, लेकिन इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था।

आरटीई के तहत बाल शिक्षा में सुधार के प्रयास

आरटीई (शिक्षा का अधिकार) के आदेश के फलस्वरूप प्रशिक्षित शिक्षक, बुनियादी सुविधाओं और एक बेहतर शैक्षणिक आधारभूत संरचना ने शिक्षा को काफी प्रेरित किया है। बच्चों को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करने के जवाब में अब राज्य के एनजीओ, कार्यकर्ताओं, प्राइवेट फाउंडेशन और यहाँ तक कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भी इसे स्वीकार कर लिया है। यह सभी वर्तमान बुनियादी ढाँचे में खामियों और सरकारी स्कूलों के लिए प्रस्तावित निगरानी प्रणाली का निरीक्षण कर रहे हैं। स्कूल विकास एवं निगरानी समिति (एसडीएमसी) अब एक महत्वपूर्ण संस्था बन गई है और यह बाल शिक्षा के बारे में माता-पिता के विचारों पर गंभीरता से विचार कर रही है। बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश लेने के लिए आरटीई अधिनियम के तहत दिया गया 25 प्रतिशत आरक्षण, वास्तव में बच्चों की निगरानी में उठा दूसरा सबसे उचित कदम है। विशेष रूप से इस तरह के प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए गठित आरटीई न्याधिकरण, विभिन्न राज्य की राजधानियों में सम्मेलनों का आयोजन कर रहा है और उसके द्वारा प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट राज्यों में आरटीई की प्रगति का बखान करती है। इस क्षेत्र में प्राइवेट फाउंडेशन भी सक्रिय हैं।

सरकारी स्कूलों पर आरटीई का प्रभाव

सरकारी स्कूलीकरण प्रणाली असहाय और निम्न प्रतिधारण क्षमता वाले बच्चों के लिए सुदृढ़ की गई है। निष्क्रिय अध्ययन कक्ष की गतिविधियाँ निम्न प्रतिधारण के प्रमुख कारणों में से एक हैं। यूनिसेफ लंबे समय से बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए एक हर्षित पद्धति पर कार्य कर रहा है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम स्वरूप 2005 ने भी शिक्षार्थियों की प्रमुखता और एक नम्य मूल्यांकन प्रणाली को रेखांकित किया था। हालांकि, सरकारी स्कूल प्रणाली में, शिक्षा उपलब्धियाँ एक बड़ी खामी लगती हैं। यहाँ यह बताया जाना आवश्यक कि शिक्षा की उपलब्धियाँ (एलए) स्कूल प्रणाली और स्कूल की गुणवत्ता को पहचानने का सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर हैं। वार्षिक एएसईआर सर्वेक्षणों से पता चला है कि साधारण सरकारी स्कूल का एक वी ग्रेड वाला छात्र साक्षरता और ग्रेड II के लिए चिह्नित संख्यात्मक कार्यों में प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ है। जेआरएम (संयुक्त समीक्षा मिशन) जो एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) के दौरान सरकारी स्कूलों की देखरेख करता था, वह अब इस एलए पर अधिक जोर दे रहा है। इस तथ्य से यह पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में वित्तीय परिणामों की वजह से शिक्षा की उपलब्धियों में गंभीरता से कमी आ रही है। आरटीई के आदेश के अनुसार, सरकार शैक्षिक प्रणाली को नया रूप देने के लिए आवश्यक वित्तीय निविष्ट के साथ संघर्ष कर रही है। जबकि सम्पन्न वर्ग सरकारी स्कूलों के स्थान पर प्राइवेट स्कूलों (जो स्पष्ट रूप से बेहतर हैं) का चयन कर रहा है। इसलिए सरकारी स्कूलों की शिक्षा प्रणाली में तत्काल नवीकरण की आवश्यकता पर, पूरी तरह से ध्यान दिया जाना चाहिए। आरटीई द्वारा 25 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य करने के बावजूद, इसका मुख्य प्रयोजन यह है कि शिक्षा से वंचित बच्चों का प्राथमिक विकल्प सरकारी स्कूल होना चाहिए।

निजी स्कूलों पर आरटीई का प्रभाव

निजी स्कूल विभाग “एलिट” ने सरकार के अपर्याप्त प्रतिपूर्ति दर के भार को देखते हुए, आरटीई द्वारा अनिवार्य रूप से वंचित बच्चों के लिए 25 प्रतिशत के आरक्षण पर विचार किया है। वास्तव में इस मुद्दे को लेकर अदालत में बहस भी हुई थी। हालांकि, लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आने वाले फैसले ने राज्य के दृष्टिकोण को सही ठहराया और उस फैसले में निजी स्कूल विभाग को वंचित बच्चों को शिक्षित करने का कार्य साझा करने पर जोर दिया गया। इसका मतलब यह नहीं है कि निजी स्कूल ऐसे फैसले से संतुष्ट थे और इसलिए उन्होंने इसकी अपील नहीं की थी। सस्ते निजी स्कूल, महत्वपूर्ण सरकारी योगदान मिलने के बावजूद भी, सरकार की जाँच से बचने के लिए स्वायत्त रहना अधिक पसंद करते हैं।

आरटीई के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • जैसा कि इस बारे में पहले भी उल्लेख किया गया है कि यह याद रखना जरूरी है कि आरटीई एक जादू की छड़ी नहीं है, जो कि वंचित बच्चों को शिक्षित करने की मौजूदा समस्याओं को दूर ही कर देगा। मौजूदा समस्याएं पर्याप्त हैं। इसलिए आरटीई केवल वंचित और पिछड़े बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान करने के लिए राज्य की शैक्षणिक पहलुओं पर अनिवार्य रूप से ध्यान आकर्षित करता है। इस परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता भी उच्च असमानता के इस समाज में जीवित रहने के लिए संघर्ष में व्यस्त रहते हैं, वह आरटीई द्वारा उपलब्ध सभी सहायता का उपयोग कर सकते हैं ।
  • सरकारी स्कूलों के छात्रों की सबसे दयनीय स्थिति होती है, क्योंकि इनको शिक्षण के समय प्रवास, बीमारी और कृषि मौसम के दौरान बाल श्रम जैसी अड़चनों का सामना करना पड़ता है। ये सभी अड़चने स्कूलों में अनियमित उपस्थिति में योगदान करती हैं, जो भोजन की असुरक्षा से जुड़ी हुई हैं। यहाँ पर यह बताया गया है कि ऐसे मामलों में उक्त छात्रों को उनके परिवार द्वारा व्यावहारिक रूप से स्कूली शिक्षा की पृष्ठभूमि से अस्वीकार करते हुए, उन्हें अधिकारहीन कर दिया जाता है।
  • सरकारी स्कूलों में साधारण, लेकिन आवश्यक शौचालय जैसी सुविधाएं अभी भी अनुपस्थित हैं। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि केवल 49 प्रतिशत स्कूलों में ही लड़कियों के लिए शौचालय की सुविधा उपलब्ध है, जिसके कारण किशोर लड़कियाँ सरकारी स्कूली शिक्षा का त्याग कर रही हैं। इसके अलावा, केवल 43 प्रतिशत स्कूलों में बिजली की सुविधा उपलब्ध है, जो परिस्थितियों को उचित शिक्षा प्रदान करने के लिए अत्यंत प्रतिकूल बनाती है।
  • केवल 15 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर हैं, जबकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कंप्यूटर प्रौद्योगिकी, शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग बन गई है। हालांकि, एक उल्लेखनीय प्रगति हुई है और बुनियादी ढाँचे में अब बहुत ही सुधार देखे को मिल रहा है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों के लिए सबसे बड़ी समस्या भाषा है। जिन छात्रों की मातृभाषा मैथिली या भोजपुरी होती है, उनको हिंदी भाषा में लिखी हुई पाठ्य पुस्तकों को पढ़ने या समझने में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है और उनको अन्य भाषा में दक्ष होने में लगभग आठ साल लग जाते हैं। इसलिए, शिक्षा को प्रभावी प्रक्रिया प्रदान करने के लिए स्कूलों में अधिक प्रभावी भाषा-संयोजन कार्यक्रम होना चाहिए।
  • दस वर्षों की अवधि के बाद एक बार फिर से यह पता चला कि उत्तरी राज्यों के आधे से भी कम स्कूलों में अध्यापन गतिविधियाँ क्रियान्वित हैं।
  • बाल अधिकार के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीपीसीआर) चिंता का एक अन्य प्रमुख कारण है, जो आरटीई के कार्यान्वयन और निगरानी की जिम्मेदारी से हल किया गया है। जैसा कि बाद में पता चला कि एनसीपीसीआर भारी मात्रा में पैसों के भूखे और हस्तक्षेप करने वाले कारकों से ग्रस्त है, जो आरटीई के प्रभावी निगरानी में बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं।
  • कई महत्वपूर्ण सर्वेक्षणों से यह पता चलता है कि न केवल सरकारी स्कूल शिक्षा की निम्न उपलब्धियों ग्रस्त हैं, बल्कि वास्तव में हमारे देश की संपूर्ण स्कूलीकरण प्रणाली बहुत ही निम्न स्तर की उपलब्धि से ग्रस्त है। अंतिम अंतर्राष्ट्रीय पीआईएसए परीक्षण के परिणाम उपर्युक्त संदर्भों की पुष्टि करते हैं। हालांकि, उच्च स्तरीय स्कूल अधिक कुशल और बच्चों के अनुकूल सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) का उपयोग करने में थोड़ा सा भी समय बर्बाद नहीं करते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल अभी भी इस बात से अवगत नहीं हैं कि शिक्षा का किस तरह से मानक के रूप में निर्धारण किया जाना चाहिए।
  • आरटीई एक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम पर जोर देता है, जिसमें शिक्षाविदों को सूचित किया जाता है कि वर्तमान शिक्षक प्रशिक्षण सामग्री अनिवार्य रूप से शिक्षा कार्यक्रम के लिए पर्याप्त नहीं है और इसे सुधारने में कुछ समय लगेगा। यह स्पष्ट रूप से आरटीई को एक अनिश्चित स्थिति प्रदान करता है।

निष्कर्ष

सरकारी स्कूलों में काफी नवीनीकरण हो रहा है और निजी स्कूलों के विभाग की स्थिति भी बहुत अधिक पारदर्शी नहीं है। अतः इससे स्पष्ट होता है कि हमारे देश के वंचित बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभी भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पाठ्यचर्या में पाठ्यपुस्तकों, शिक्षा की लागत, भाषा समझने की कठिनाई सहित एक अव्यवस्थित शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं, जिनपर पर्याप्त पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। आरटीई के एक सकारात्मक कार्यान्वयन के लिए सभी स्कूली इमारतों को उचित जगहों पर स्थापित होना चाहिए। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को, बच्चों के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का सम्मान करने के लिए और अधिक सशक्त होने की आवश्यकता है।