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भारत में आरक्षण या कोटा प्रणाली

July 21, 2018


भारत में आरक्षण या कोटा प्रणाली

क्या भारत में अब भी आरक्षण या कोटा प्रणाली की आवश्यकता है?

भारत में अब भी आरक्षण या कोटा प्रणाली की आवश्यकता है या नहीं यह देश में एक विवाद का विषय है। भारतीय संविधान में इसके लिए कानून भी है जिसके अनुसारः वंचित वर्ग को सामान्य वर्ग की श्रेणी के बराबर लाने के लिए आरक्षण लाया गया। यहां कई प्रकार के आरक्षण हैं, जैसे महिलाओं के लिए आरक्षण, विकलांगों के लिए आरक्षण, आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण आदि। हालांकि आरक्षण प्रणाली में स्पष्ट भेदभाव है, लेकिन इसे शुरु करने का उद्देश्य बहुत अच्छा था और यह समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों को समान अवसर देने के लिए शुरु किया गया था। लेकिन समय के साथ इसके मायने बदले और लोगों के द्वारा इसे जिस तरह लिया गया उससे विश्वास हो गया कि इसे जिसके लिए बनाया था ये वो नहीं दे पा रहा है। लोगों ने इसका दुरुपयोग करना शुरु कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें लोगों ने काॅलेज की सीट या नौकरी पाने के लिए जाली दस्तावेज बनवाए। इससे आरक्षित वर्ग का योग्य उम्मीदवार सीट पाने से वंचित रह जाता है।

भारत में आरक्षण प्रणाली कैसे तैयार होती है? भारत में जातिवाद की गहरी जड़ें आरक्षण प्रणाली का मुख्य कारण हैं। जब जाति प्रथा शुरु हुई तब व्यक्ति का रंग ध्यान में रखा जाता था जैसे गोरे रंग वाले ब्राम्हण या उच्च वर्ग वाले थे और गहरे रंग वाले शूद्र या निम्न वर्ग के थे। इससे समाज का पूरी तरह से बंटवारा हो गया और आजादी के बाद आरक्षण का विचार अस्तित्व में आया। इसलिए सन् 1950 में पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण बनाया गया और फिर समय के साथ साथ नए कोटे और आरक्षण जुड़ते गए।

अब भी भारत के तथाकिथत वंचित वर्ग की हालत आजादी के इतने दशकों के बाद भी वैसी की वैसी है। आरक्षण अपने उद्देश्य से बिलकुल उलट काम कर रहा है और समाज को बांट रहा है। इसे समाज के एक वर्ग की कीमत पर दूसरे वर्ग के उत्थान के लिए उपयोग किया जा रहा है जो कि सरासर गलत है। इसकी जगह सबके लिए समान मौके उपलब्ध होने चाहिये। इसके अलावा एक योग्य उम्मीदवार को खुद को काबिल साबित करने कि लिए निम्न जाति के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होना चाहिये। उसका दिमाग, शिक्षा और प्रतिस्पर्धा की क्षमता ही उसके जीवन में बदलाव ला सकती है। वंचित वर्ग के प्रमाण पत्र से सिर्फ सीट या नौकरी ली जा सकती है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।

इसके अलावा आरक्षण प्रणाली भारत में एक ऐसा कार्यबल पैदा कर रही है जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के काबिल नहीं है। भारत में विकास के लिए लोगों की आवश्यकता है, लेकिन आरक्षण सिर्फ अयोग्य उम्मीदवार दे रहा है। इसलिए आरक्षण व्यवस्था पूरी तरह खत्म होनी चाहिए और उसकी जगह संतुलित नीतियां बननी चाहिए जिससे समाज के वंचित वर्ग का उत्थान हो सके। सबसे पहले समाज के उस वर्ग को पहचानने की आवश्यकता है जिसे विकास और वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। उन्हें उपर उठाने के लिए मुफ्त शिक्षा, प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता दी जानी चाहिये। यह सब होने के बाद उन्हें असली प्रतिस्पर्धा का सामना करने देना चाहिये। उन्हें सक्षम बनाएं, सही रास्ता बताएं और लड़ने की शक्ति दें, क्योंकि कोई भी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के खिलाफ नहीं है।

अमेरिका में भी कोटा प्रणाली थी, लेकिन बहुत समय पहले वह खत्म कर दी गई। इसका यह अर्थ नहीं है कि वहां समाज के वंचित लोगों के लिए काम नहीं किया जाता है। प्रवेश और नियुक्ति के मामलों के लिए वही अंक प्रणाली है और पिछड़े लोगों को अतिरिक्त अंक दिये जाते हैं ना कि सीटें। इस तरह सरकार जरुरतमंदों की मदद भी करती है और योग्य उम्मीदवारों के हक भी नहीं छीने जाते।

समय समय पर इस तरह के सुधारों और कानूनों का विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन किया जाना चाहिए और समाज पर और वंचित वर्ग पर इसके प्रभाव का भी मूल्यांकन होना चाहिये। इसके अलावा यह कानून गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या और प्रति व्यक्ति आय कितनी बदल रही है यह भी देखना चाहिये। राजनेताओं को आरक्षण प्रणाली को अपने वोट बैंक के लिए उपयोग करना बंद करना चाहिये। शिक्षा कभी भी राजनीति का हिस्सा नहीं होना चाहिए। इसके बजाय बचपन से ही उज्जवल भविष्य का पोषण होना चाहिये ताकि भारत में आरक्षण व्यवस्था की आवश्यकता ना रहे।