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भारत में तेल भंडारों का निर्माण

July 11, 2018
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भारत में तेल भंडारों का निर्माण

प्रत्येक देश के लिए कच्चा तेल एक आवश्यक वस्तु बन गया है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा इसी प्राकृतिक संसाधन पर निर्भर है। पिछले कुछ दशकों में, कच्चे तेल ने वैश्विक बाजारों की स्थिति में प्रभावशाली भूमिका निभाई है साथ ही सरकारों के बीच फसाद की जड़ भी रहा है। भारत, जो 80 प्रतिशत कच्चे तेल का आयात करता है और पेट्रोलियम निर्यात करने वाले देश, ओपेक (ओपीईसी) के संगठन पर काफी निर्भर हैं, जो देश को कमजोर बनाता और विदेशी अस्थिरता पैदा करता है।

हाल ही में हुई रैलियों के कारण वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों पर असर पड़ा है। भारत में मुद्रा स्फीति (महँगाई) की वजह से प्रधानमंत्री मोदी ने देश के तेल भंडारण में सुधार के लिए सामरिक पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर) के लिए दो नए भूमिगत गुफाओं के निर्माण की घोषणा की है। इस तेल का उपयोग बाजार की आवश्यकताओं के दौरान किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून को घोषणा की थी कि दो नए भूमिगत गुफा ओडिशा के चांडीखोल में 4 करोड़ 40 लाख टन और कर्नाटक के पडूर में 2 करोड़ 50 लाख टन कच्चे तेल की भंडारण क्षमता के साथ बनाए जाएंगे।

सरकार की आकस्मिक योजनाएं

अत्यधिक विचार-विमर्श के बाद सरकार ने कच्चे तेल की बढ़ती परेशानियों और पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए आकस्मिक योजना का शुभारंभ किया है। चंडीखोल और पडूर में दो भूमिगत गुफा मंगलुरु, विशाखापट्टनम और पडूर में तीन मौजूदा भूमिगत गुफा हैं और 1 अरब 2 करोड़ टन कच्चे तेल से भारत की सामरिक पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर) की क्षमता में वृद्धि करते हैं। ये पांचों भूमिगत गुफा कच्चा तेल निर्यात करने वाले देशों पर सरकार की निर्भरता को कम कर सकते हैं और देश को अस्थिर बाजार या वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौरान बेहतर तरीके से तैयार कर सकते हैं। इन चीजों पर अच्छी तरह से विचार-विमर्श करने के बाद सरकार ने इस योजना के लिए कदम उठाया है क्योंकि इससे देश को अपनी वैश्विक आवश्यकताओं के लिए हर बार प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करनी पड़ेगी।

विकल्पों पर विचार करने का समय

विभन्न देश कच्चा तेल निकालने के लिए वैकल्पिक स्रोतों को देख रहे हैं, जिससे पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँच सकता है और प्रबंध लागत बहुत महंगी हो सकती है। यही समय है कि दुनिया भर में सरकारों को पेट्रोलियम जैसे मुश्किल प्राकृतिक संसाधन को प्रतिस्थापित करने के लिए विकल्पों को देखने की जरूरत है। बीपी, एक बहुराष्ट्रीय तेल और गैस समूह के अनुसार, वर्तमान समय में हो रहे तेल के दोहन के हिसाब से पृथ्वी पर मौजूद कच्चे तेल का भण्डार (लगभग 1.7 ट्रिलियन बैरल) अगले 50 सालों में पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग, जो जलवायु परिवर्तन के लिये एक महत्वपूर्ण घटक है, के कारण जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की जरूरत है और इसके बजाय ऊर्जा के गैर नवीकरणीय स्रोतों को बदलने के लिए स्वच्छ अक्षय संसाधनों का उपयोग करने की दिशा में काम करना चाहिए।