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पर्यावरण शिक्षा आज की जरूरत क्यों है?

July 19, 2018


why-environmental-education-is-the-need-of-the-dayहमारी कल्पना की तुलना में पर्यावरण बहुत तेजी से दूषित हो रहा है। ज्यादातर मानव गतिविधियों के कारण पर्यावरण दूषित होते है। जिससे वैश्विक और क्षेत्रीय दोनों स्तर प्रभावित होतें हैं। ओजोन परत का पतला होना और ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में वृद्धि वैश्विक स्तर पर होने वाले नुकसानों के उदाहरण हैं। जबकि जल प्रदूषण, मृदा अपरदन मानव गतिविधियों द्वारा रचित कुछ क्षेत्रीय परिणामों में से एक हैं और उनके द्वारा पर्यावरण को भी प्रभावित किया जाता है।

इसलिए, हम लोगों द्वारा जो कुछ भी गलत किया गया है, उसे केवल हम लोगों को ही सुधारना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए हमारी आवाज  पर्यावरण शिक्षा के लिए आवश्यक है। यह लोगों और समाज को वर्तमान एवं भविष्य के संसाधनों का बेहतरीन ढंग से उपयोग करने के तरीके को सिखाने का एक सही कदम है। पर्यावरण शिक्षा के जरिए, सभी लोग स्थानीय प्रदूषण की ओर अग्रसर होने वाले मौलिक मुद्दों को सही करने का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

मनुष्यों के मध्य सभी रिश्तों और सभी पर उसका असर एवं उन सभी को प्रभावित करने के लिए, पर्यावरण को उचित ढंग से परिभाषित किया गया है –“कैल्डवेल एल. के. 1993”।

पर्यावरण शिक्षा (ई.ई.) क्या है?

पर्यावरण शिक्षा में लोगों को बताया जाता है कि प्राकृतिक पर्यावरण के तरीके और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे व्यवस्थित रखना चाहिए? इससे संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक कौशल और विशेष ज्ञान को प्रदान करता है। इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्रदान कराना, जागरूकता पैदा करना, चिंतन का एक दृष्टिकोण पैदा करना और पर्यावरणीय चुनौतियों को नियंत्रित करने के आवश्यक कौशल को प्रदान करना है।

1972 में यूनेस्को द्वारा आयोजित मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद ई.ई. ने वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा हासिल की थी। इस सम्मेलन के तुरंत बाद यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम (आई.ई.ई.पी) की भी शुरूआत की थी।

क्यों आवश्यक है पर्यावरण शिक्षा?

प्रत्येक देश शिक्षा के साथ पर्यावरणीय संबधी चिंताओं को सुलझाने के प्रयासों में लगा रहा है। इन विभिन्न देशों के अनुसार, ई.ई. को केवल शिक्षा प्रणाली का ही हिस्सा नहीं होना चाहिए बल्कि राजनैतिक व्यवस्था में भी भाग लेना चाहिए जिससे राष्ट्रीय स्तर पर कार्य, नीतियाँ और उचित योजनाएं तैयार की जा सकें।

पर्यावरणीय शिक्षा को पर्यावरण की स्थिति का आँकलन करने में सक्षम होना चाहिए और पर्यावरण की क्षति का निवारण करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। ई.ई. को नियमानुसार योजनापूर्ण बनना चाहिए क्योंकि दैनिक जीवन में सामान्य बदलाव पर्यावरण को सुधारने में ये बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं।

पर्यावरण की सुरक्षा हर किसी की जिम्मेदारी है। इसलिए पर्यावरण शिक्षा एक समूह या समाज तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि हर व्यक्ति को पर्यावरण के बचाव संबंधी जानकारी होनी चाहिए। यह एक निरंतर और जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए तथा पर्यावरण शिक्षा के प्रति व्यावहारात्मक होना चाहिए ताकि इसे भलीभाँति लागू किया जा सके।

अगर बच्चों को संसाधनों, पर्यावरणीय प्रदूषण, मृदा अपरदन, अवनति और संकटग्रस्त पौधों एवं विलुप्त जानवरों के बचाव तथा संरक्षण के बारे में सिखाया जाता है तो पर्यावरण के संरक्षण में काफी हद तक सुधार हो सकता है। शिक्षा एक तरह का निवेश है जो समय के साथ-साथ एक मूल्यवान संपत्ति में बदल जाता है।

भारत के विश्वविद्यालयों में शिक्षण, अनुसंधान और प्रशिक्षण पर काफी ध्यान दिया गया है। 20 से अधिक विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों में पर्यावरण इंजीनियरिंग, संरक्षण और प्रबंधन, पर्यावरण स्वास्थ्य और सामाजिक विज्ञान जैसे पाठ्यक्रमों को पढ़ाया जाता है।

राष्ट्रव्यापी पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने पर्यावरण और वन मंत्रालय के समर्थन से अगस्त 1984 में पर्यावरण शिक्षा केंद्र (सी.ई.ई)  स्थापित किया था। सी.ई.ई के प्रमुख कार्यों में से एक यह है कि पर्यावरण शिक्षा की भूमिका को उचित मान्यता देने का प्रयास किये जाये। सी.ई.ई इससे संबंधित कई शैक्षिक कार्यक्रमों को चलाती है।

सामाजिक बदलावों के कारण आज के बच्चे आंतरिक खेलों और इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को खेलने में व्यस्त रहते हैं। वे अपना अधिकांश समय टेलीविजन देखने, संगीत सुनने, वीडियो गेम खेलने या इंटरनेट पर सर्फिंग या कंप्यूटर का उपयोग करने में बिता देतें हैं और उनके पास चारों ओर यात्रा करने एवं चारों ओर प्राकृतिक दुनिया के बारे में जानने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है। इससे न केवल बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है बल्कि उन्हें अपने परिवेश और प्रकृति से विलगाव जैसी स्थित का सामना करना पड़ता है। यद्यपि वे बच्चे वयस्क भी हो जाएं तो भी उन्हे प्रकृति के संरक्षण के बारे में जानकारी नहीं हो पाती है। प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण पर्यावरण की दृष्टि से शिक्षित पीढ़ी के लिए इस शिक्षण की जरूरी आवश्यकताओं में से एक है।

छात्रों को अपने परिवेश से परिचित कराने के लिए, प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उनके लिए कार्य योजना की एक रूपरेखा भी तैयार की जानी चाहिए। सामाजिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए ई.ई की अत्यधिक आवश्यकता है। इसलिए पर्यावरण शिक्षा को एक पाठ्यक्रम के रूप में समेकित करना और छात्रों को बचपन से ही प्रकृति के बारे में अवगत कराना एक सही विकल्प है।