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हमारे दुग्ध उद्योगों में पशुओं के प्रति क्रूरता

October 9, 2018
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हमारे दुग्ध उद्योगों में पशुओं के प्रति क्रूरता

दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखाने की सामर्थ्यता ही मानव जाति का सबसे महान गुण माना जाता है। आखिरकार, यही वह है जो हमें मानवीय बनाता है। जैसा कि हमने ‘सभ्यता‘ की ओर ज्यादा से ज्यादा प्रगति कर ली है, पर यह हमारी मानवता ही है जो आहिस्ता-आहिस्ता हमसे दूर होती जा रही है।

यह वाद-विवाद समाजवाद बनाम पूंजीवाद पर नहीं है, बल्कि यह केवल एक विवेचना है, जिसमें हम बहुत ही आसानी और सरलता से इस क्रूरता का अभ्यास करते हैं फिर इसको नाम देते हैं ‘व्यवसाय‘ का। पशुओं के साथ क्रूरता के कारण मानव, पाखंडता की सूची में सबसे ऊपर है। एक तरफ, हममें से अधिकांश लोग पशु-वध, हत्याआदि को सख्ती से नहीं लेते, वहीं दूसरी तरफ “उत्तरजीविता” के नाम पर पशु क्रूरता को न्यांयसंगत ठहराते हैं।

2017 के आँकड़ों के मुताबिक, दुनिया में भारत दुग्ध उत्पादन में अग्रणी रहा है – यह खिताब भारत को पिछले 15 सालों से प्राप्त हो रहा है। हालांकि इसी तरह हम धीरे-धीरे पाखंडता में भी उत्कृष्टता प्राप्त करते जा रहे हैं। हमारी गौ “माता”, जिनका नाम लेकर हम बाहर सड़कों पर धर्म का उपदेश देते फिरते हैं, उन्हें हर दिन दुग्ध उद्योग के लिए गुप्त रूप से पीड़ित करते हैं। यहां कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं –

भारत का डेयरी उत्पादन

2016 में, देश के डेयरी उद्योग की कीमत 5,000 अरब रुपये थी। वर्ष 1997 से हम दुनिया के सबसे बड़े दुग्घ उत्पादक रहे हैं, जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन आदि जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है। हमारे कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने 2017 के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि 2013-14 की तुलना 2016-17  में दूध उत्पादन में 19% की वृद्धि हुई है।

निस्संदेह, डेयरी उद्योग में भारत वैश्विक स्तर पर अग्रणी रहा है। भारत हर वित्तीय वर्ष डेयरी उत्पादों का पर्याप्त मात्रा में निर्यात करता है। इतना ही नहीं, घरेलू सीमाओं में इन उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। उद्योग पर इस तरह के अधिक दबाव के साथ, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस मांग को बनाए रखने के साथ-साथ अधिक लाभ कमाने के लिए पशुओं के साथ अक्सर क्रूरता भरा व्यवहार किया जाता है।

जानवरों के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है?

नवंबर 2017 में, पुणे पशु संरक्षण समूह द्वारा किए गए एक देशव्यापी अध्ययन ने अपने निष्कर्ष जारी किए, जिसमें स्थिति और भी ज्यादा गंभीर थी। इस रिपोर्ट में पाया गया कि अधिकांश डेयरी उत्पादन इकाइयां पशुधन के लिए क्रूरता (पीसीए) अधिनियम 1960, स्लॉटर हाउस (बूचड़खाना) नियम, 2002 आदि की रोकथाम का उल्लंघन कर रही हैं।

मनुष्यों की तरह, गाय और भैंस भी अपने बच्चे के पोषण के लिए दूध का उत्पादन करती हैं। लिहाजा, दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए, वे कई बार उनका गर्भधारण कराने के लिए कृत्रिम वीर्य सेचन का प्रयोग करते हैं – वो भी अनुभवहीन लोगों के द्वारा। दर्जनों गायों और भैसों को गंदे तबेलों में रखा जाता है। स्वाभाविक रूप से, ये कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो जाती हैं। लेकिन फिर भी उचित चिकित्सा सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं।

इससे भी बदतर यह कि उनका बच्चा यदि नर (बछड़ा) है तो उन्हें मादा (बछिया) की तुलना में और अधिक क्रूरता का सामना करना पड़ता है। जैसे ही गाय या भैंस के बछड़े एक महीने के होते हैं उनमें से ज्यादातर को वधशालाओं में भेज दिया जाता है। जबकि दूसरी ओर, बछिया को उसी तरह की स्थितियों से गुजरना पड़ता है, जिससे उनकी माँ (गाय या भैंस) गुजरती है। इन सभी चीजों का नतीजा यह है कि अच्छे माहौल से जहां पशु 20 साल तक जीवित रहते हैं, वहीं इस क्रूरता के बाद इनके जीवनकाल में 4 साल कम हो जाते हैं। एक बार जब गाय या भैंस दूध देना बंद कर देती है तो उन्हें बूचड़खानों में कटने के लिए भेज दिया जाता है।

भारत का पाखंड

आज, हमारा देश एकीकरण और विभाजनीकरण दोनों का सामना कर रहा है – उनमें से एक है धर्म। पिछले कुछ सालों से कथित तौर पर गो माँस खाने के मॉव लिचिंग के मामले भयावह रूप से आम हो गए हैं और वो भी तब? जब हिंदू धर्म में गाय को ऊँचा दर्जा दिया जाता है। गाय को प्यार से गौमाता, जिसका मतलब माँ है, के रूप में जाना जाता है। फिर भी, गायों और भैंसों पर क्रूरता से किए जा रहे व्यवहार को बड़े पैमाने पर नजर अंदाज किया जा रहा है, भले ही यह हमारे सामने हो रहा हो!

भारत गोमांस और दूध उत्पादन दोनों के लिए दुनिया के प्रमुख निर्यातकों में से एक है। हालांकि, गोमांस को लेकर असहमति जताई जाती है, जबकि दूध उत्पादन को लेकर गर्व महसूस किया जाता है। अजीब बात है, कि दोनों उद्योग अक्सर बहुत निकटता से जुड़े हुए हैं। पहला गाय का माँस खाना बहुत बड़ा पाप माना जाता है, वहीं अन्य लोग, पशुओं की पीड़ा से अनजान, रोजाना डेयरी उत्पादों का उपभोग करते हैं।

“या तो सभी जिंदगी महत्वपूर्ण हैं, या कोई भी नहीं। “अगर हम एक रूप में पशु क्रूरता की निंदा करते हैं और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी अन्य तरीके से इसका समर्थन करते हैं तो इससे हम कोई महान संत नहीं बन जाते हैं। इसके बाबजूद जटिल अपराध, अपराध कहलाता है।

हम सहायता करने के लिए क्या कर सकते हैं?

पहला कदम, निश्चित रूप से हमारे सामने हो रहे पशुओं के प्रति क्रूरता के व्यवहार को नकारने से रोकने का है। एक तरफ हम पशु अधिकारों का समर्थन कर रहे हैं और फिर दुग्ध उद्योग के लिए उन पर हो रही क्रूरता को अनदेखा कर रहे हैं, जो हमारी पाखंडता को दर्शाता है। पीईटीए जैसे संगठन सुझाव देते हैं कि इस समस्या को हल करने का सबसे अच्छा तरीका, समस्या का पता लगाके किसी भी संगठन से इसका बहिष्कार करना है जो इन जानवरों के प्रति की गई क्रूरता के व्यवहार में सहभागी हैं। मांग में गिरावट करके इन इकाइयों की कार्य पद्धति को कम करें।

इस सच्चाई से मुँह मोड़ने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि मानवता पर जो भी हमारी पकड़ है हम उसे भी खो देंगे।

 

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हमारे दुग्ध उद्योगों में पशुओं के प्रति क्रूरता
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2017 के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में भारत दुग्ध उत्पादन में अग्रणी रहा है - यह खिताब भारत को पिछले 15 सालों से प्राप्त हो रहा है। हालांकि, इसी तरह हम धीरे-धीरे पाखंडता में भी उत्कृष्टता प्राप्त करते जा रहे हैं। हमारी गौ "माता", जिनका नाम लेकर हम लोग बाहर सड़कों पर धर्म का उपदेश देते फिरते हैं, उन्हें हर दिन दुग्ध उद्योग के लिए गुप्त रूप से पीड़ित किया जाता है।
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