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भारत और पाकिस्तान के बीच प्रमुख युद्ध

July 25, 2017


major-war-between-india-and-pak-hindiभारत को बहुत लंबे और उग्र संघर्ष के बाद 1947 में ब्रिटिश राज से आजादी मिली, यह वर्ष एक बहुत ही दर्दनाक और हिंसक बँटवारे का गवाह भी बना। भारत से पाकिस्तान अलग हो गया और यह विभाजन धार्मिक भावनाओं पर हुआ था। हालांकि भारत ने धर्मनिरपेक्ष बने रहने का फैसला किया जबकि पाकिस्तान ने अपने राज्य धर्म के रूप में इस्लाम को अपनाया। यह केवल क्षेत्र का विभाजन  नहीं था, यह विश्व युद्ध के युग के बाद जनसंख्या स्थानान्तरण के सबसे बड़े उदाहरणों में से एक था। इसमें करीब 11.2 मिलियन लोग सीमा के दोनों ओर पलायन कर गए थे। बड़े पैमाने पर होने वाली सांप्रदायिक हिंसा जैसी घटनाओं में करीब 500,000 लोग मौत की आगोश में समा गए थे। इसके साथ ही दोनों देशों को शत्रुता और अविश्वास की विरासत भी मिली। तीन पूर्ण युद्ध, एक अनपेक्षित युद्ध और सीमा पर होने वाली झड़पें इस विरासत की उदाहरण हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे दोनों देशों के बीच शत्रुता की गहरी जड़े बन गईं।

पहला कश्मीर युद्ध, 1947

1947 में, भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, कश्मीर रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह डोगरा को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने में से कोई एक विकल्प चुनने की पेशकश की गई। एक स्पष्ट समझौते से आश्वस्त किया गया था कि कश्मीर ने पाकिस्तान के साथ हस्ताक्षर किए थे जबकि महाराजा ने फैसला किया था कि आजाद कश्मीर दोनों देशों से स्वतंत्र रहेगा। इसी समय पुंछ जिले में राजद्रोहियों ने महाराजा के शासन के खिलाफ विद्रोह करने का फैसला किया और पाकिस्तानी सेना को गौरिल्ला युद्ध (छापेमार युद्ध प्रणाली) में सहायता करने के लिए आमंत्रित किया। जिसके कारण कश्मीर घाटी में हिंसा फैल गई, महाराजा ने जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए भारत द्वारा दी गई छूटों (रियायतों) के बदले में अपनी रियासत को भारत में शामिल करने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये। भारतीय सैनिकों ने कश्मीर के पहले युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ भाग लिया। 1948 में, भारत ने मध्यस्थता कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आमंत्रित किया और संयुक्त राष्ट्र ने नियंत्रण रेखा की स्थापना की, इससे दिसंबर 1948 में अनिर्णायक युद्ध का समापन हो गया। तब तक पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान और आजाद कश्मीर के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। भारत का आज भी यह कहना है कि यह क्षेत्र भारत के एक अभिन्न अंग हैं।

भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1965

तथ्य यह है कि 1947-48 में एक सार्वभौमिक रूप से बनाई गई अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण रेखा बनकर तैयार नहीं हो पाई, जो दोनों देशों के बीच युद्ध का कारण बनी। पाकिस्तान ने 1965 तक गुप्त अभियानों में शामिल होने का निर्णय लिया और ऑपरेशन जिब्राल्टर मिशन का शुभारंभ किया, जिससे जम्मू और कश्मीर राज्य में घुसपैठ को बढ़ावा देने तथा भारतीय प्रशासन के खिलाफ विद्रोह का समर्थन करने का प्रयास किया गया। पाकिस्तानी सैनिकों ने स्थानीय लोगों के रूप में कश्मीर में प्रवेश किया तथा भारत के खिलाफ विद्रोह अभियान को संचालित किया। जिसके कारण 1965 के माह अगस्त और सितंबर में 22 दिनों तक भारत-पाकिस्तान के मध्य एक युद्ध हुआ। थल सेना, वायु सेना और नौसेना द्वारा लड़े गये इस युद्ध में दोनों देशों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। हालांकि यह युद्ध अनिर्णायक माना जाता है, इस युद्ध के द्वारा पाकिस्तान को एक रणनीतिक हार के रूप में देखा गया, जिसने न केवल इसकी सैन्य अयोग्यता का खुलासा किया बल्कि इसके कारण किसी भी अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को हासिल करने में भी विफल रहा। नतीजन इस युद्ध के बाद पाकिस्तान और चीन के बीच तथा भारत और रूस के बीच मजबूत संबंध विकसित हुए। क्रमशः अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों के बाद, पाकिस्तान और भारत ने समर्थन और सैन्य आपूर्ति के लिए अपने पड़ोसी एशियाई देशों की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद, दोनों देश एक असहज संघर्ष पर विराम लगाने के लिए मजबूर हो गये। हालांकि, यह शांति एक दशक तक भी नहीं रह सकी।

भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1971

1947 में पूर्वी बंगाल ने इस्लामिक भावनाओं के आधार पर पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया, इस प्रकार हमारे पड़ोस में एक नये राष्ट्र की नींव पड़ी। देश के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के बीच विशाल और बहुत चिंताजनक अंतर होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान अपने नये पूर्वी भाग (वर्तामान में बांग्लादेश) की भाषा, संस्कृति और अर्थव्यवस्था को पहचानने और बढ़ावा देने में विफल रहा, जिसके कारण उसको बड़ी निराशा हाथ लगी इस प्रकार बांग्लादेश राष्ट्र का उदय हुआ। मार्च 1971 में, पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में अपनी सेना के द्वारा ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया जो एक सैन्य ऑपरेशन था। आधिकारिक आकड़ो के मुताबिक इस युद्ध में 26,000 से अधिक बांग्लादेशी राष्ट्रवादी, नेता, छात्र और धार्मिक अल्पसंख्यक मारे गए, इस क्रूर हिंसा और अत्याचारों ने इस क्षेत्र को हैरान कर दिया। 10 मिलियन से अधिक बांग्लादेश वासियों ने भारत में शरण ले ली। इस समय भारत के हस्तक्षेप की आशंका के बाद, पाकिस्तान ने देश के पश्चिमी सीमा के कई ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिये। भारतीय सशस्त्र बलों ने इन घुसपैठियों पर प्रतिक्रिया दी और जल्द ही पाकिस्तानी क्षेत्र में महत्वपूर्ण लाभ उठाया। पूर्वी मोर्चे पर 13 दिन तक चले भीषण युद्ध में काफी खून-खराबा हुआ, परिणामस्वरूप पाकिस्तानी सेना की अपमानजनक हार हुई। दिसंबर 1971 में पाकिस्तान की सेना ने समर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए और बांग्लादेश स्वतंत्रता राष्ट्र बन गया।

कारगिल युद्ध

कारगिल युद्ध कई तरीकों से अनूठा था। मई 1999 के दौरान पाकिस्तानी सैनिक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ करने में कामयाब हो गए और जम्मू-कश्मीर राज्य की कई प्रमुख पोस्टों (चौकियों) पर कब्जा कर लिया। हालांकि, कूटनीतिक रूप से लंबे समय तक पाकिस्तान इस बात से इनकार करता रहा कि यह सेनाएं उसकी ही थीं। भारत ने एक सफल सैन्य अभियान चलाकर अपनी पोस्टों को पुनः प्राप्त कर लिया। यह युद्ध हाल ही में भारतीय भूमि पर लड़े गये सबसे घमासान युद्धों में से एक का उदाहरण है। कारगिल युद्ध के शुरुआती दिनों में पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शवों को यह कहकर स्वीकार करने के इन्कार कर दिया कि यह कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानी थे, यह पाकिस्तान द्वारा बनाई गई एक झूठी कहानी थी। हालांकि, जुलाई 1999 में टाइगर हिल के पतन तथा आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण पाकिस्तान ने इस युद्ध में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली। हालांकि दोनों देशों के बीच तीन पूर्ण युद्ध और एक सीमित युद्ध लड़ा गया, फिर भी पाकिस्तान ने सीमा पर झड़पें, घुसपैठ और भारत में आतंकवाद को समर्थन देना जारी रखा। भारतीय खुफिया रिपोर्टों ने निष्कर्ष निकाला कि पाकिस्तान की सेना कश्मीर के क्षेत्रों में आतंकवादी ठिकानों का समर्थन करती रही है, जिन्होंने इन क्षेत्रों पर कब्जा कर रखा है। यहाँ पर इन आतंकवादियों को भारत पर हमला करने और अशांति फैलाने के लक्ष्य को बढ़ावा दिया जाता है।