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Movie Review: ‘मॉम’ – श्रीदेवी की शानदार वापसी

July 9, 2017


movie-review-momकलाकार – श्रीदेवी, अदनान सिद्दीकी, सजल अली, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अक्षय खन्ना

निर्देशन – रवि उदयवर

प्रोडूसर  – बॉनी कपूर, सुनील मनचंदा, नरेश अग्रवाल, मुकेश तलरेजा, गौतम जैन

पटकथा – गिरीश कोहली

कहानी – रवि उदयवर, गिरीश कोहली, कोना वेंकट राव

संगीत – ए.आर. रहमान

छायांकन – अनय गोस्वामी

संपादित – मोनिशा आर. बलदावा

प्रोडक्शन हाउस – मैड फिल्म्स, थर्ड आई पिक्चर्स

प्रत्येक सप्ताह हम फिल्में देखते हैं और उनकी समीक्षा करते हैं। यह नौकरी सुनने में जितनी अच्छी लगती है वाकई में उतनी ही नीरस है। यदि आप बॉलीवुड के शौकीन हैं तो आप निश्चित रूप से जानतें होंगे कि बॉलीवुड की स्क्रीन पर हर साल लगभग 350 से ज्यादा फिल्में रिलीज होती हैं, इनमें से सिर्फ कुछ फिल्में ही हिट हो पाती हैं। हालांकि, बहुत लंबे समय के बाद ‘मॉम’ जैसी फिल्म रिलीज होती है, जो हमें निःशब्द और दंग कर देती है। मॉम इस बात का एकदम सही सबूत है कि क्यों सिनेमा कला के आकर्षण, जुनून और कहानी का मिश्रण तैयार करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है। श्रीदेवी ने अपनी पिछली फिल्म इंग्लिश विंग्लिश रिलीज होने के बाद 5 साल इंतजार किया लेकिन उनका यह इंतजार बेकार नहीं गया। उनका यह समय स्पष्टता और पूर्णता के लिए अपने कौशल का सम्मान करने में व्यतीत हुआ।

‘मॉम’ की शैली

निर्भया कांड के बाद, देश में होने वाली सामूहिक बलात्कार की तबाही (खासकर देश की राजधानी में) कुछ ऐसी चीज है जिसका हम अक्सर सामना करते हैं। यहाँ पर फिल्मों में बलात्कार और प्रतिशोध (बदले की भावना) शैली है, जो गंभीर हिंसा या नैतिकता के खराब संस्कार के साथ समाप्त होती है। यहाँ पर एक नई शैली है जिसे हम ‘मॉम’ कहने जा रहे हैं।

जब 18 साल के बच्चों को माता-पिता के द्वारा वेलेंटाइंन डे पर रेव पार्टियों में जाने की अनुमति दे दी जाती है, हम चकाचौंध भरी दुनिया में बढ़ते हुए मेट्रोसेक्सुअल (फैशन में रूचि, विषम लैंगिकव्यक्ति में रूचि) और काफी हद तक निराशा भरे जीवन को बढ़ावा देते हैं, जहाँ पर पुर्नविवाह और माता-पिता के सौतेलेपन पर प्रतिबंध नहीं है, जहाँ विवाह से पहले यौन संबंध बनाना एक आपत्ति नहीं बल्कि आदर्श है, जहाँ पर कानूनी दबाव और कानून हमारी सुरक्षा या न्याय का समर्थन करने में सक्षम नहीं हैं।

हालांकि चकाचौंध भरी दुनिया में हम यह भूल जाते हैं कि इस परिवर्तन और प्रगति के मुखौटे के नीचे हम अभी भी वही हैं। एक सौतेली माँ अपनी सौतेली बेटी से स्वयं को माँ कहलवाले के जुनून में है, एक जवान लड़की जो भयानक हमले (सामूहिक बलात्कार) से अपना होश वापस पाने के लिए संघर्ष कर रही है, एक पिता अपने परिवार को एक साथ बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रहा है, एक जासूस न चाहते हुए भी अपनी सेवा प्रदान कर रहा है क्योंकि उसकी भी एक सुंदर बेटी है और एक सरल स्वभाव वाले पुलिस कर्मचारी का प्रवेश यह सभी मानव अस्तित्व की दोहराई हुई कहानियाँ हैं। आप पूछ सकते हैं कि इसमें अलग क्या है।

यह निर्देशक रवि उदयवर की पहली फिल्म है इसमें इन्होंने इस तत्वों को एक साथ रखा है जो फिल्म मॉम को क्लासिक बनाती हैं, जो आपको 2 घंटे 26 मिनट तक फिल्म देखने के लिए रोके रखते हैं। बैकग्राउंड में ए. आर रहमान का संगीत सामूहिक बलात्कार के दृश्य में दृश्यों की कमी के बावजूद भी उनमें जान भर देता है, यह काफी अलग है। फिल्म में ट्रांसजेंडर (लैंगिक) अपराधों से लेकर अपराध प्रभावित जेलों तक संवेदनशीलता के छोटे-छोटे पहलुओं को जोड़ा गया है,

कथानक

कहानी बहुत ही सरल है – देवकी सभरवाल (श्रीदेवी) ने आनंद (अदनान सिद्दीकी) से शादी कर ली है, आनंद की पहली पत्नी से एक बेटी (आर्या) है, आर्या (सजल अली) को देवकी को अपनी माँ के रूप में स्वीकार करने में परेशानी हो रही है। आर्या सामूहिक बलात्कार से पीड़ित एक लड़की है, अपराध शाखा के पुलिस महानिदेशक मैथ्यू फ्रांसिस (अक्षय खन्ना) कानून प्रणाली द्वारा दोषियों को सजा दिलवाले के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद विफल रहते हैं। ऐसा तब होता है जब देवकी बदला लेने के लिए दरयागंज जांचकर्ता डीके (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) से मदद लेने का फैसला करती है।

तकनीकी रूप से अगल

अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो मॉम में अपनी प्रतिभा को साबित करता है तो वह अनय गोस्वामी होना चाहिए। आकर्षक दृश्य (सीन), लाइट और साउंड का प्रदर्शन तथा शानदार लेंसिग (फोकस) बहुत ही उत्कृष्ट है। इस फिल्म में उदयवर का कोई भी बकवास दृष्टिकोण नहीं है जो ज्यादातर हिन्दी फिल्मों को सुस्त बनाता है। फिल्म में कोई लंबा संवाद नहीं है, कोई लंबा अनुसरण नहीं है, कोई लंबा कानूनी दृश्य नहीं है और गीत तथा नृत्य (डांस) का कोई भी दृष्टिकोण नहीं है। एक्शन के साथ मिश्रित रहमान द्वारा बनाई गई सुरीली ध्वनियाँ फिल्म की सुंदरता को बढ़ाती हैं।

श्रीदेवी का असाधारण अभिनय किसी के परिचय का मोहताज नहीं है, मॉम में इनका कुछ अंदाज ही निराला है। केवल सजल अली के द्वारा ही उनके जैसा अभिनय किया गया है। एक गुस्सैल बेटी के रूप में, वह एक नाले के पास गंभीर हालत में पाई गई थी, एक महिला के रूप में वह शारीरिक और मानसिक रूप से इस सदमें से उबरने की कोशिश कर रही है। यहाँ पर अभिनेत्री श्रीदेवी को टक्कर देने का प्रबंध करती है।अक्षय खन्ना की भूमिका में ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन नवाजुद्दीन सिद्दीकी की छोटी भूमिका बहुत शानदार है।

हमारा फैसला

यह कोई बात नहीं है कि आपके पास कितना समय है, मॉम को समय निकालर जरूर देखना चाहिए। ऐसा शायद कभी-कभी ही होता है कि बॉलीवुड में ऐसी शानदार फिल्में रिलीज होती हैं।

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