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एनजीटी ने दिल्ली में गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग के उपयोग और बिक्री पर लगाया प्रतिबंध

August 16, 2017


plastic-bags_hindiपिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, प्रदूषण संबंधी कई समस्याओं के कारण सुर्खियों में रही है। एक अनावश्यक कचरा निपटान प्रणाली के भार के तहत दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक होने से लगाकर, वायु प्रदूषण की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना को अत्यधिक विषैली नदी घोषित करने तक – हमने सब सुना और देखा है। हाल ही की खबरों के मुताबिक, दिल्ली और एनसीआर में शुरू होने वाली सकारात्मक कार्रवाई की खबरें मिल रही हैं। पिछले हफ्ते नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाली गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग की बिक्री, उपयोग, और यहाँ तक ​​कि उत्पादन पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यह प्रतिबंध शहर में प्रदूषण से निपटने के लिए एक स्थाई उपाय साबित हो सकता है। हम ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि यह एक ऐसा ठोस कदम हो जो पूरे देश में उठाया जाना चाहिए।

एनजीटी का आदेश

एनजीटी की अध्यक्षता वाली पीठ के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने दिल्ली की निराशाजनक स्थिति के बारे में चिंता व्यक्त की, उन्होंने कहा की पूरे दिल्ली राज्य की नालियां प्लास्टिक (पॉलीथिन) से भरी हुई हैं। इन सीवर लाइनों में पड़ी पॉलीथिनों में भरा हुआ भोजन और पानी जानवरों को सीवर के कचरे की ओर आकर्षित करता है। एनजीटी की बेंच ने फैसला सुनाया है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग, बिक्री या संग्रहण करता हुआ पाया गया तो उस पर 5000 रुपये का पर्यावरण मुआवजा लगाया जाएगा। बेंच ने यह भी कहा है कि “पूरी दिल्ली में उन गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध होगा जो किसी भी हालत में 50 माइक्रोन्स से कम हैं। दिल्ली राज्य को और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) को यह सुनिश्चित करना होगा कि दुकानों में या अन्य जगहों पर ऐसी प्लास्टिक (पॉलीथिन) की बिक्री, उपयोग और भंडारण की अनुमति नहीं दी जाए।”

ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को और डीपीसीसी को एक हलफनामा दर्ज करने का निर्देश दिया है जो स्पष्ट रूप से इस संबंध में न्यायाधिकरण के निर्देशों को लागू करने के लिए उठाए गए उपायों को चार्ट में दर्शाता है। यह हलफनामा यह स्पष्ट करेगा कि प्लास्टिक के अपशिष्ट पदार्थों के निपटान पर जोर देने के साथ कचरा प्रबंधन के उपाय किए गए हैं।

दिल्ली सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह अगले सात दिनों के भीतर प्रतिबंधित पॉलीथिन बैगों के मौजूदा संग्रह को जब्त करे।

क्या प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है?

माइक्रोमिलीमीटर, जिसे आमतौर पर माइक्रोन कहा जाता है, अति सूक्ष्म वस्तुओं की मोटाई मापने की एक अंतर्राष्ट्रीय इकाई है। इसका उपयोग प्लास्टिक की थैलियों की मोटाई मापने के लिए भी किया जाता है। पतले पॉलीथिन बैग, जो कम माइक्रोन वाले होते है वह बैग पर्यावरण के लिए अधिक हानिकारक बन जाते हैं। भारत में प्लास्टिक (पॉलीथिन) की थैली और कूड़ा भरने के उपयोग में आने वाली थैली अलग-अलग मोटाई में आती हैं वह मानक इस प्रकार हैं – 6 माइक्रोन, 25 माइक्रोन, 30 माइक्रोन, 40 माइक्रोन, 50 माइक्रोन, 75 माइक्रोन और 125 माइक्रोन। आप अपने कचरे को डिब्बे में डालने के लिए जो पॉलीथिन बैग खरीदते हैं और जब आप दुकानदार से कुछ छोटी वस्तुएं खरीदते हैं, तो वह आपको सामान भरने के लिए 6 से 40 माइक्रोन के बीच की पॉलीथिन में देता है। 50 माइक्रोन और इससे ऊपर की प्लास्टिक की थैलियां वर्कशाप और कामर्शियल इन्टरप्राइजेश में कचरे को स्टोर करने और निपटाने के लिए उपयोग की जाती हैं। फिलहाल वर्तमान में उन सभी प्लास्टिक के थैलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जो 50 माइक्रोन की मोटाई से कम हैं यानी इन प्लास्टिक के थैलों की मोटाई मानव के बालों की मोटाई से भी कम हो।

केवल 50 माइक्रोन से कम प्लास्टिक क्यों?

पतले प्लास्टिक बैग के कारण पर्यावरण को अधिक छति पहुँचती है। इस तथ्य के अलावा कि ये नाली पाइप और सीवेज आदि में फसकर रुकावट पैदा करती है, हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि प्लास्टिक आसानी से विघटित नहीं होती है। प्लास्टिक जो हम अपने कूड़े में फेंकते हैं, वह विघटित होने के लिए 20 साल से 1000 साल के बीच तक का समय ले सकती है। फेंकी गई पतली प्लास्टिक टुकड़ों में विभाजित हो जाती है और इन प्लास्टिक के छोटे टुकड़ो को अक्सर पक्षी और जानवरों द्वारा खा लिया जाता है, जो उनके लिए जहर के समान होता है। जब तक ये थैलियां विघटित होती हैं, तब तक वे भूमि, पानी और हवा को अनगिनत विषाक्त पदार्थों के माध्यम से नुकसान पहुंचा चुकी होती हैं। हमारे द्वारा किये जाने वाले कुछ छोटे प्रयासों जैसे घर की सामान्य खरीदारी के लिए कपड़े के थैले का उपयोग करना, अपने कचरे का प्रथक्करण करना तथा 50 माइक्रॉन से कम मोटाई वाली प्लास्टिक थैलियों का उपयोग न करना आदि कुछ ऐसे छोटे-छोटे प्रयास हैं जिनके उपयोग से हम पर्यावरण के संरक्षण में अपना काफी योगदान दे सकते हैं। हम सभी इन सकारात्मक कार्यों के मौलिक लाभार्थी होंगे।

कार्यान्वयन चुनौतियां

एनजीटी द्वारा शासित होने के बावजूद, पर्यावरणविदों ने प्रतिबंध को सफलतापूर्वक लागू करने की सरकार की क्षमता के बारे में आशंका व्यक्त की है। इस साल के शुरू में, जनवरी 2017 में एक ही न्यायाधिकरण ने दिल्ली में डिस्पोजेबल प्लास्टिक कंटेनरों और कैटलरी (प्लास्टिक के चमम्च आदि) के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस तरह की सामग्री का “भंडारण, बिक्री और उपयोग” इस वर्ष 1 जनवरी से प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन इनका उपयोग अभी भी शहर में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। फल, सब्जी और कसाई खाने वालों को सार्वजनिक स्थान पर कूड़े-कचरे का निपटान न करने को कहा गया है लेकिन यह एक ऐसी आदत है जिसे दूर नहीं किया जा सकता। एनजीटी बेंच ने कहा है कि, “सार्वजनिक प्राधिकरण इस संबंध में उचित कदम उठाने और अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल रहे हैं।”