Home / / भारत में 6 करोड़ मानसिक रोगी: हकीकत, फिल्मी अत्याचार नहीं

भारत में 6 करोड़ मानसिक रोगी: हकीकत, फिल्मी अत्याचार नहीं

September 15, 2016


Rate this post
भारत में 6 करोड़ मानसिक रोगी है

भारत में 6 करोड़ मानसिक रोगी है

भारत में कम से कम 6 करोड़ लोग किसी न किसी तरह के मानसिक रोग या विकार से पीड़ित हैं। यह संख्या किसी भी लिहाज से कम नहीं है। आखिर, दक्षिण अफ्रीका की आबादी है 6 करोड़। इससे बढ़कर चिंताजनक बात यह है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए पर्याप्त पेशेवरों की कमी है। इसके अलावा सरकार भी इस समस्या को दूर करने के लिए ज्यादा खर्च नहीं करती। हकीकत तो यह है कि इस क्षेत्र में भारत वैश्विक स्तर पर काफी पिछड़ा हुआ है। इससे भी गंभीर बात तो यह है कि भारत में मानसिक बीमारी होना एक कलंक या धब्बा माना जाता है और लोग सामान्य तौर पर इस पर चर्चा भी नहीं करना चाहते।

मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों की संख्या

देश की आबादी का करीब 1 से 2 प्रतिशत लोग यानी तकरीबन एक-दो करोड़ लोग मानसिक विकारों से जूझ रहे हैं। इनमें बायपोलर डिसऑर्डर और शिजोफ्रीनिया जैसे मानसिक रोग शामिल हैं। यह सबसे उच्च स्तर के मानसिक विकार हैं। देश की आबादी का पांच प्रतिशत तकरीबन 5 करोड़ लोग तनाव और अवसाद जैसे मानसिक विकारों से पीड़ित हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोग यह स्वीकार करने से भी बचते हैं कि उन्हें यह बीमारी है।

सरकारी खर्च

भारत के स्वास्थ्य बजट का महज 0.06 प्रतिशत हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होता है। अन्य देशों के मुकाबले यह अनुपात काफी कम है। यहां तक कि बांग्लादेश भी हमसे ज्यादा 0.44 प्रतिशत राशि का इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर करता है। वहीं, ज्यादातर विकसित देश कम से कम 4 प्रतिशत राशि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े शोध, फ्रेमवर्क, इंफ्रास्ट्रक्चर और टैलेंट पूल पर खर्च करते हैं। भारत सरकार ने 1 जून 2015 को राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया। यह सर्वेक्षण बेंगलुरू स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस (निमहांस) के जरिए कराया गया।

कार्यक्रम का उद्देश्य

इस कार्यक्रम के जरिए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या का पता लगाना था। साथ ही यह भी देखा जाना था कि देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है। 5 अप्रैल 2016 तक अध्ययन के तहत 27,000 साक्षात्कार किए गए।

मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या

सब-डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी साफ दिखाई देती है। एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में 3,800 साइकाइट्रिस्ट हैं, 850 साइकाइट्रिक सोशल वर्कर, 898 क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और 1,500 साइकाइट्रिक नर्स हैं। इसका मतलब यह है कि हर दस लाख लोगों पर सिर्फ तीन साइकाइट्रिस्ट्स हैं। कॉमनवेल्थ के नियम और दिशानिर्देश कहते हैं कि एक लाख की आबादी पर कम से कम 6 साइकाइट्रिस्ट्स होने चाहिए। मौजूदा संख्या जरूरत के लिहाज से 18 गुना कम है।

इन अनुमानों के मुताबिक, भारत को 66,200 साइकाइट्रिस्ट्स की जरूरत है। साइकाइट्रिक नर्स का वैश्विक औसत एक लाख की आबादी पर 21.7 है। इस अनुपात के मुताबिक, भारत को 2,69,750 नर्स की जरूरत है।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2013

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2013 को 8 अगस्त 2016 को राज्य सभा ने ध्वनिमत से सर्वसम्मति के साथ पारित किया। इसके तहत मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति के अधिकारों और उन अधिकारों के संरक्षण को स्पष्ट किया गया है। इस नए वधेयक में समुदाय के साथ ही एक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में मानसिक रोगी को इलाज के दौरान क्या अधिकार रहेंगे, यह भी बताया गया है। इस नए विधेयक के मुताबिक, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रत्येक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को 33.70 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। उन्हें अब तक 30 करोड़ रुपए ही मिलते थे। अब तक मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले 35 पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनिंग डिपार्टमेंट और 15 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को ही फंडिंग मिलती है। यह उम्मीद की जा रही है कि अतिरिक्त फंडिंग से मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारत में कमी की समस्या को दूर किया जा सकेगा।

पागलपन की वजह से आत्महत्या

भारत में पागलपन की वजह से आत्महत्या के आंकड़ों में कमी आई है। 2010 में उन्माद या पागलपन की वजह से आत्महत्या करने वाले 7 प्रतिशत थे, जो 2014 में घटकर 5.4 प्रतिशत रह गए। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि कम से कम 7,000 लोगों ने मानसिक रोगों की वजह से अपनी जीवनलीला समाप्त की।

अंत में… समग्रता के साथ

मानसिक रोगों की समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है। हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि सबकुछ उम्मीद के अनुरूप ही होगा। ऐसा हुआ और भारत में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ ही स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों पर मानसिक रोगियों की देखभाल की सुविधाएं भी और बेहतर हो जाएंगी। इससे मानसिक रोगों के उपचार में मदद मिलेगी।

हालांकि, यह बदलाव व्यापक तौर पर होना चाहिए। यह हम पहले ही बता चुके हैं कि भारत में मानसिक रोग एक कलंक समझा जाता है। इसका मतलब यह है कि जब भी कोई मानसिक विकार से पीड़ित होता है, हम उसे कमजोरी मान लेते हैं। खुद-ब-खुद उससे उबरने का सोचते हैं, वह भी बिना पेशेवर मदद के। उस स्थिति से बाहर निकलने के लिए पेशेवर की सलाह नहीं लेते। हमारे परिवार और समुदाय इस परिस्थिति को और मुश्किल बना देते हैं। वह हमें इसके बारे में बात तक नहीं करने देते। इलाज की बात नहीं करते, बल्कि इसे एक श्राप मान लेते हैं। यह समझने की कोशिश ही नहीं करते कि इसका इलाज संभव है। अंत में, हम कभी किसी की मदद नहीं लेते और हालात बद से बदतर हो जाते हैं। सरकारें और डॉक्टर जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि लोग भी मदद लेने जाएं। यदि वे मदद लेंगे ही नहीं तो उपलब्ध संसाधनों का उनके लिए कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यदि हम चाहते हैं कि सरकार, डॉक्टर या कोई और अपना काम अच्छे-से करें तो उसके लिए हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा।

हमें आगे आकर लोगों को प्रोत्साहित करना होगा कि वे अपनी समस्याओं को साझा करें और खुलकर बोले। इससे उनमें आत्मविश्वास आएगा और यह विश्वास भी कि हमारे आसपास के लोग हमारे साथ हैं। इससे उनकी मानसिक स्थिति सुधरेगी और उनके आसपास के माहौल में प्रत्याशित बदलाव वह महसूस करेंगे। भरोसे का वातावरण बनेगा। इससे मानसिक रोगों का इलाज आसान हो जाएगा। तब शायद, उन्हें मेडिकल या प्रोफेशनल सहायता की जरूरत ही न पड़े।

Comments

Like us on Facebook

Recent Comments

Archives
Select from the Drop Down to view archives