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1984 की दर्दनाक घटना: राहुल गांधी के लिए जानने योग्य बुनियादी तथ्य

September 3, 2018
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1984 की दर्दनाक घटना

राहुल गांधी ने 24 अगस्त 2018 को 1984 के सिख विरोधी ‘दंगों’ के बारे बात करते हुए कहा कि यह निश्चित रूप से एक दुखद घटना थी, उस समय इस दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना में कांग्रेस पार्टी शामिल थी लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ। निश्चित रुप से यह एक त्रासदी और एक दर्दनाक घटना थी। राहुल गांधी के इस बयान से देश के साथ-साथ विदेशों में भी उथल-पुथल मच गई है।

कांग्रेस के अध्यक्ष लंदन में अपने पांच दिवसीय यूरोप दौरे के हिस्से के रूप में ब्रिटेन स्थित संसद सदस्यों के साथ बातचीत कर रहे थे। इस घटना में हुई हिंसा के बारे में अपनी सफाई दी है, गांधी ने इस घटना की दृढ़तापूर्वक निंदा की और उनमें से 100%  लोग जो दोषी थे उनको सजा दी गई। हालांकि, उस समय उन्होंने इन सभी आरोपों से अपनी पार्टी को अलग कर लिया था।

सन् 1984 के दंगो को आधुनिक भारत के इतिहास में शायद सबसे अंधकारमय वर्ष के रूप में चिन्हित किया गया है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई जिसके बाद कई दशकों तक देश में सिखों का कत्लेआम होता रहा। आधिकारिक रिकॉर्डों के अनुसार मौत की संख्या लगभग 3000 आंकी गई, जबकि कई अनौपचारिक पूछताछ से मरने वालों की संख्या 8000 हजार से ज्यादा बताई गई है जो सर्वमान्य हैं, इन मौतों में केवल 300 हजार दिल्ली में हुई है।

इंदिरा गांधी की हत्या और ऑपरेशन ब्लू स्टार

31 अक्टूबर 1984 की सुबह 9 बजे के तुरंत बाद, इंदिरा गांधी ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्टिनोव के साथ एक साक्षात्कार के लिए जा रही थीं। प्रधानमंत्री के उनके बगीचे से घूमते हुए, उनके उन दो अंगरक्षकों ने – सतवंत सिंह और बेअंत सिंह द्वारा उन्हें गोली मार दी गई थी। जबकि बेअंत सिंह को उसी स्थान पर पकड़ कर मार दिया गया था और सतवंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया था और इसके परिणामस्वरूप 1989  में एक अन्य सहयोगी केहर सिंह के साथ फांसी दी गई थी। उनकी हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़ी हुई है – एक ऐसी घटना जो कई विचारों से पूरी तरह टालने योग्य थी।

1 जून और 8 जून, 1984 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देशों पर सेना ने अमृतसर, पंजाब में हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) से सिख आतंकवादियों को बाहर निकालने के प्रयास में सैन्य अभियान की शुरुआत की थी। यह ऑपरेशन स्वर्ण मंदिर के अंदर सेना के सुरक्षित प्रवेश के साथ समाप्त हो गया, आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले की हत्या के साथ, कम से कम 40 लोगों की हत्या की गई। इस उथलपुथल में मारे गए लोगों में से कई नागरिक, आतंकवादी और सेना के लोग थे। सिख समुदाय की भावनाओं पर लगे गहरे अघात के कारण कई लोगों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की आलोचना की थी। इस विरोध में, कई सिख सैनिकों ने अपने पदों को त्याग दिया और कई ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया, कई अन्य ने सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कार और उपलब्धियाँ वापस कर दीं। विशेष रूप से, ऑपरेशन ब्लू स्टार को भिंडरावाले को बंदी बनाने के उद्देश्य से किया गया था, एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो कांग्रेस की मदद से सत्ता तक पहुँचे थे। हरमंदिर साहिब को बंदी बनाना इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी भूल में से एक माना जाता है, जो अंत में उनकी हत्या का कारण बना।

1984 का नरसंहार और कांग्रेस

गांधी जी पर हुए हमले से लगभग 10 घंटे पहले दूरदर्शन पर प्रसारण जारी किया गया उसमें अनौपचारिक रूप से यह खबर फैला दी गई कि- देश की तीसरी पूर्णकालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। 31 अक्टूबर की पूर्व संध्या से आखिकार 3 नवंबर 1984 तक क्या हुआ था – हमारे इतिहास में हमेशा के लिए एक दर्दनाक घटना को रेड इंक (लाल स्याही) से लिख दिया गया।

तत्कालीन राष्ट्रपति के प्रेस सचिव, ज्ञानी जेल सिंह ने याद किया कि दंगों का पहला विद्रोह शाम को आईएनए बाजार के पास भी हुआ था। तारलोचन सिंह के मुताबिक, आज तक कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए दावों के विपरीत, हमले “ऑर्केस्ट्रेटेड और स्पान्सर्ड” थे। उन्होंने यह भी कहा कि हत्या के बाद, जल्द ही प्रधानमंत्री पद की शपथ ली जाएगी, राजीव गांधी ने राष्ट्रपति की कई कॉलों को स्वीकार नहीं किया, जो उनके साथ उस स्थिति के मुद्दे पर चर्चा करना चाहते थे। सिंह का दावा है कि यद्यपि सेना दिल्ली के बाहरी इलाकों में छावनी में मौजूद थी, जिसके लिए उन्होंने मेरठ से बुलाया था। उनके आदेशों का पालन नहीं किया गया बल्कि केवल जुलूस निकाला गया।

त्रिलोकपुरी, पूर्वी दिल्ली का एक निर्वाचन क्षेत्र जो अधिक संख्या में हुई सिख हत्याओं का साक्षी था। त्रिलोकपुरी के ब्लॉक 32 में आग लगाने के बाद 350 से ज्यादा सिखों को उनके घरों से बाहर निकाला गया और उन्हें बेरहमी से मार डाला गया। हालांकि, पुलिस ने हमलों को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया और 24 घंटों के बाद उस घटनास्थल पर पहुंची। 1 नवंबर की सुबह, कई गवाहों ने कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को किरण गार्डन, पालम कॉलोनी, सुल्तानपुरी में रैलियों को संबोधित करते हुए देखा। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने तब से सज्जन कुमार पर सिखों को मारने के लिए भीड़ को लुभाने का आरोप लगा दिया। एक सिख मोती सिंह, जो 20 साल तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहे थे, ने खुद बताया कि उन्होंने सज्जन कुमार को एक भाषण देते हुए सुना था जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रत्येक सिख जो दंगे में मारा गया है” 1000 रुपये” उस सिख को दिए जाएंगे।

सिख समुदाय के पुरुषों, महिलाओं, बच्चों सभी लोगों को खोज निकाला गया और निर्दयतापूर्वक मारा गया, कई लोगों पर तो एसिड तक फेंका गया था। उनकी दुकानों और घरों को नष्ट कर दिया गया था तथा महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। 2014 में, संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मानवाधिकार (यूएनएचआरसी) के सामने गवाही देते हुए पीड़ितों ने कहा कि उन्होंने देखा कि कांग्रेसी नेताओं ने मतदाता सूची निकलवायी और सिक्ख परिवारों के घरों और उनके नाम का पता लगाया। अन्य गवाहों ने भी उसी समान गवाही दी , गवाहों ने उल्लेख करते हुए बताया कि भीड़ के सदस्यों ने अपने हाथों में मतदाता सूची पकड़ रखी थी और हर एक सिक्ख परिवारों को खोजकर निकाला जा रहा था। इन आधिकारिक दस्तावेजों के इतने आसान स्पष्टीकरण रूप से यह पता चलता है कि इन दंगो का सीधा कनेक्शन राजनीतिक क्षेत्र की ओर संकेत देता है।

कहा जाता है कि रकाब गंज साहिब पर 2 नवंबर के हमले का नेतृत्व कांग्रेस के एक नेता कमलनाथ ने किया था। उस समय सिक्खों पर किए गए हमलों में कई गुरुद्वारे जला दिए गए, पवित्र ग्रंथों का खंडन किया गया। मूल रूप से हजारों लोगों की आजीविका को नष्ट कर दिया गया। उन सभी घटनाओं के बारे में जब राजीव गांधी से बात की गयी तब उन्होंने  उल्लेखनीय रूप से कहा, “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है” यह बयान इंदिरा गांधी की हत्या के बदले सिक्ख नरसंहार के लिए स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया था।

क्या यह अपराध भुलाया जा सकता है?

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2005 में सिक्ख समुदाय के साथ-साथ 1984 में हुई सभी हत्याओं के लिए सार्वजनिक रूप से देश से माफी मांगी थी। यद्यपि कोई सीधा गवाह नहीं मिला था, लेकिन पार्टी होने के नाते यह स्वीकृति के करीब था। आने वाले वर्षों में, इस घटना के बारे में उनकी प्रतिक्रिया को पूछा गया तो कई कांग्रेस नेताओं ने अपने पूर्व प्रधानमंत्री के शब्दों का हवाला दे दिया।

दिलचस्प बात यह है कि 2014 में जब 1984 के दंगो के बारे में बात की गई तब मनमोहन सिंह की सार्वजनिक माफी के लिए राहुल गांधी ने खुद का उल्लेख किया। उनके हाल ही के इस बयान ने निश्चित रूप से लोगों को सदमे में डाल दिया था साथ ही ये लोगों के लिए उपहास का कारण बन गये। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने गांधी पर सिख समुदाय के घावों पर नमक छिड़कने का आरोप लगाया जो काफी हद तक समझने लायक था।

1984 में जब यह घटना घटी उस समय राहुल गांधी महज एक स्कूल के विद्यार्थी थे तो इन घटनाओं के लिए उनको जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन उनको सिख समुदाय द्वारा सामना किए जाने वाले दुखों को अनदेखा करने का कोई हक नहीं है। आज भी सिक्खों के परिवार उन आतंकवाद के दंगों से निकलने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि उन्हें निगल गये थे ,कई सिक्ख समुदाय अभी भी गरीबी से जूझ रहे है। सैकड़ों परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया और आज भी इस तरह पार्टी की बयानबाजी उनके दुखों का कारण बनी हुई है। उनके पिता राजीव गांधी के दिये गये बयान बड़े पेड़” पर की गयी उनकी टिप्पणी से कोई भी अनजान नहीं है। किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो जल्द ही देश का नेतृत्व करने की उम्मीद करता है तो उस व्यक्ति द्वारा ऐसी बयानबाजी पीड़ितों को स्वीकार करने के लिए कि यह कितना उचित है कि वह दोषी नही हैं।

 

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1984 की दर्दनाक घटनाः राहुल गांधी द्वारा दोष मिटाने का प्रयास
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राहुल गांधी ने हाल ही में 1984 में हुए सिख दंगों में उनकी पार्टी की भागीदारी से इनकार किया है। लेकिन क्या यह दोष वास्तव में आसानी से दूर किया जा सकता है?
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