Home / / भारत में ग्रामीण रोजगार

भारत में ग्रामीण रोजगार

May 20, 2017


Rate this post

ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी और कम आमदनी से ग्रामीण व्यक्तियों की क्रय शक्ति कम होती जा रही है, जो अंततः उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करती है। सरकार ने विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) द्वारा प्रदान किए गए आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2,000 में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी 7.2% से बढ़कर वर्ष 2010 में 8.1% हो गई है।

निष्पक्षता और सामाजिक न्याय के साथ विकास पूरा करने के लिए, भारत सरकार पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974 – 1979) के बाद से गरीबी हटाने की योजनाओं को लागू कर रही है। मजदूरी रोजगार कार्यक्रमों के तहत, वर्ष 2006 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का शुभारंभ  हुआ। शुरू से 200 जिलों में वित्तीय वर्ष 2006-2007 के दौरान इसे लागू किया गया था, इसे वित्तीय वर्ष 2007-2008 के दौरान 330 जिलों में और अंत में 615 जिलों तक बढ़ाया गया था। हालांकि, मनरेगा ग्रामीण इलाकों में 100 दिनों तक प्रत्यक्ष अनुपूरक मजदूरी रोजगार मुहैया कराने, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और अधिशेष श्रम शक्ति के उत्पादक अवशोषण की योजना बनाने पर ध्यान केंद्रित करती है, व्यक्तिगत रोज़गार में गिरावट चिंता का मुद्दा बन गई है।

ग्रामीण बेरोजगारी को खत्म करने के लिए कुछ अन्य सरकारी योजनाएं शामिल हैं:

ग्रामीण क्षेत्रों के भूखे गरीबों को खाना खिलाने के लिए इस देश में कृषि और उद्योग में रोजगार पैदा करना जरूरी है। कृषि ग्रामीण भारत की जीवन रेखा है और इसे अधिक व्यवहार्य और लाभदायक बनाने की आवश्यकता है इसे नकारा नही जा सकता है।

इससे संबंधित जानकारीः

  1. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एनआरईपी) (1980): सामुदायिक संपत्तियां बनाने के लिए बेरोजगारों और अर्द्ध बेरोजगार श्रमिकों को काम में लाना शुरू किया गया।
  2. ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी (आरएलईजी) (1983): प्रत्येक ग्रामीण भूमिहीन परिवार के प्रत्येक सदस्य को 100 दिनों का गारंटीकृत रोजगार प्रदान करने के लिए शुरू किया गया।
  3. जवाहर रोज़गार योजना (जेआरई) (1989): कृषि अवकाश अवधि के दौरान, ग्रामीण गरीबों के लिए पूरक रोजगार के अवसर बनाने के माध्यम से इस कार्यक्रम का लक्ष्य गरीबी कम करना है।
  4. रोजगार आश्वासन योजना (ईएएस) (1993): कमजोर कृषि सीजन के दौरान रोजगार प्रदान करने के लिए शुरू किया गया। ईएएस का प्राथमिक उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण गरीबों के लिए श्रम के जरिए मजदूरी की भारी कमी की अवधि के दौरान अतिरिक्त मजदूरी रोजगार के अवसर पैदा करना है।
  5. जवाहर ग्राम समृध्दि योजना (जेजेएसवाई) (1999): ग्रामीण स्तर पर स्थाई संपत्ति सहित मांग-आधारित समुदाय द्वारा गांव के ढांचे को बनाने और ग्रामीण गरीबों को निरंतर रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए सक्षम करने के लिए शुरू किया गया।
  6. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (1999): यह योजना स्व-रोजगार के सभी पहलुओं सम्मिलित करने वाला एक समग्र पैकेज है, जैसे स्व-सहायता समूह, प्रशिक्षण, ऋण, बुनियादी ढांचे और विपणन में गरीबों का संगठन। एक क्रेडिट-कम-सब्सिडी कार्यक्रम, इस योजना के तहत लाभार्थियों को स्वारोजगार कहा जाता है यह योजना केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 3:1 के लागत अनुपात पर लागू की जा रही है।
  7. सम्पूर्ण ग्रामीण रोज़गार योजना (एसजीआरवाई) (2001): जीजीएसवाई और ईएएस को मिलाकर शुरू किया गए, इस कार्यक्रम का उद्देश्य मजदूर को रोजगार प्रदान करना है।
  8. नेशनल फूड फॉर वर्क प्रोग्राम (एनएफडब्ल्यूपी) (2004): 150 पहचान वाले पिछड़े जिलों पर विशेष ध्यान देने के साथ शुरू किया गया। इसका उद्देश्य अतिरिक्त पूरक वेतन रोजगार पैदा करना और संपत्तियां बनाना था।
  9. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरईजीएस) (2006): प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को 100 दिनों का गारंटी वाला रोजगार प्रदान करने और सामुदायिक संपत्तियां बनाने के लिए शुरू किया गया।
  10. प्रधानमंत्री – ग्रामीण रोजगार निर्माण कार्यक्रम (2008): इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना है ताकि नए स्व रोजगार योजनाओं / परियोजनाओं के सूक्ष्म उद्यम स्थापित किए जा सकें। यह योजना प्रधान मंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाय) और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी) को मिलाकर तैयार की गई है।
  11. ग्रामीण स्वयं रोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई): जिलें के प्रमुख बैंकों के सहयोग से ग्रामीण बीपीएल युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए राज्य के अधिकांश जिलों में इन संस्थानों की स्थापना की जा रही है। राज्य सरकार संबंधित संस्थानों के लिए संबंधित बैंकों द्वारा मुफ्त जमीन उपलब्ध करायेगी।
  12. प्रधान मंत्री के श्रम पुरस्कार योजना (2012): इस योजना का उद्देश्य औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिभाषित श्रमिकों द्वारा सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में किए गए उत्कृष्ट योगदानों को पहचानना है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Comments

Like us on Facebook

Recent Comments

Archives
Select from the Drop Down to view archives