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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 – भारत के पर्यावरण की रक्षा

July 25, 2018
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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम1986- भारत के पर्यावरण की रक्षा

दिसंबर 1984 में ठंडी सर्दियों की वह मध्यरात्रि जिसमें भोपाल शहर गहरी नींद में सो रहा था और यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र अपने नियमित कार्य को पूरा कर रहे थे, उस समय शहर को अपनी चपेट में लेने वाली दुर्घटना के बारे किसी को कोई भी जानकारी नहीं थी। अचानक, आसपास के इलाकों में रहने वाले परिवारों और श्रमिकों को आपातकालीन अलार्म घंटी की आवाज सुनाई दी और एक घ्रणास्पद गंध का एहसास हुआ जो हवा में फैल चुकी थी जिससे स्थानीय आबादी को सांस लेने में मुश्किलें उत्पन्न हो रही थीं। सुबह तक, यूसीआईएल संयंत्र के अंदर हुआ यह गैस का रिसाव वातावरण में पूरी तरह से फैल चुका था जिससे हजारों लोगों की मृत्यु भी हुई थी। वायुमंडल में फैली इस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस ने लोगों की आंखों, श्वसन पथों में जलन और ब्लीफार्स्पस्म, खांसी, आदि को गंभीर तरीके से फैला दिया था। अब तक कई परिवार उस भयानक आपदा से पीड़ित (भयभीत) हैं। यूसीआईएल में होने वाले गैस के उस रिसाव से 500,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे, जबकि यूसीआईएल के मालिक खराब वातावरण और नागरिक कानूनों के कारण घटना स्थल से फरार हो गए।

भीषण आपदा जिसने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के निर्माण को जन्म दिया

भोपाल गैस त्रासदी दुनिया में सबसे खराब औद्योगिक आपदा मानी जाती है, यह भारत और भारत देश की संसद के लिए एक भीषण आपदा का समय था, इस लिए कानून निर्माता मजबूत मानदंडों, नियमों, नीतियों और कानूनों को तैयार करने के लिए एकत्रित हुए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी भयानक घटनाएं भारत में फिर से न हों। 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (ईपीए) भारत सरकार द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी के बाद भारत की प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप जून 1972 में मानव पर्यावरण को ले कर संयुक्त राष्ट्र की बैठक, जो स्काटहोम में संपन्न हुई, का अनुसरण करते हुए आया था। इस सम्मेलन में 122 राष्ट्रों ने भाग लिया था, जो स्टॉकहोम में की गई घोषणा पर सहमति जता चुके थे। इस सम्मेलन में  विकास, पर्यावरणऔर पर्यावरण के मामले में मानव संपर्क की आवश्यकता पर आधारित 26 सिद्धांत शामिल हैं। 1986 के इस पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य मानव पर्यावरण में सुधार और संरक्षण करना है। इस सिद्धान्त की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह घटित होने वाले खतरों को और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाने वाले कारणों को रोंकने का कार्य करता है।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधान

19 नवंबर, 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू हुआ और इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। इस अधिनियम में विभिन्न सरकारी कर्मचारियों और एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों से संबंधित 4 अध्याय और 26 खंड शामिल हैं। अध्याय 1 अधिनियम, क्षेत्राधिकार और उसके विस्तार के शीर्षक से संबंधित है, जब अधिनियम लागू किया गया था तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि शर्तों की परिभाषा अधिनियम में शामिल थी। अध्याय 2 अधिनियम से संबंधित उस शक्ति पर जोर देता है जो  केंद्र सरकार के पास है , जबकि अध्याय 3 उन कार्यवाइयों के बारे में बात करता है जो केंद्र सरकार पर्यावरण की रक्षा करने के लिए ले सकती है। अंतिम अध्याय में 1986 के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार की शक्ति को रेखांकित किया गया है।

1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम केंद्र सरकार को , प्रक्रिया हेतु कार्य करने या दिशा निर्देशों को बनाने में, अधिनियम के नियमों और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाली किसी भी संस्था को बंद करने में, किसी उद्गयोग विशेष पर विनियमन और निषेध लगाने में और साथ ही कई ऐसी कई चीजें जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का पालन करती उनको  सुनिश्चित करने में, सक्षम बनाता है।

इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार पर्यावरण प्रदूषण को प्रशासित करने के लिए नियम और अधिनियम भी बना सकती है। 1986 के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में इसके किसी भी नियम का उल्लंघन करने की स्थित में दंड को भी शामिल किया गया है। यदि इस प्रकार का कोई भी उल्लंघन हो, तो विभाग और कार्यालय प्रभारी का मुखिया उस अपराध के लिए उत्तरदायी होगा।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम ने, अलवर में अरावली क्षेत्र, राजस्थान, तटीय संवेदनशील क्षेत्रों और उत्तराखंड में डून घाटी जैसे कुछ क्षेत्रों को पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता के कारण प्रतिबंधित गलियारों के रूप में परिभाषित किया है।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को लागू करने ले लिए उठाया गया एक कदम

2015 में, नव निर्वाचित केंद्र सरकार बिल में नए संशोधन करना चाहती थी लेकिन ये संशोधन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को मजबूत करने के बजाय इसे कमजोर कर रहे थे। 1986 से देश के पर्यावरण को निजी ठेकेदारों और खनिकों के हाथों से होने वाले शोषण से बचने में मदद मिली है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पहुंचने से पहले, प्रस्तावित संशोधनों में से एक निर्णायक निकाय संविधान में शामिल था जहां शिकायतों को सुना जा सकता था

इन प्रस्तावित संशोधनों में से एक में निर्णायक निकाय का संविधान भी था जहाँ राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल तक पहुंचने से पहले शिकायतों को सुनाया जा सकता था। जबकि दूसरा प्रस्ताव किसी भी परियोजना के आगे जाने से पहले तीन सर्वोपरि बिंदुओं के मूल्यांकन के प्रभाव की समीक्षा करता है।

हालांकि, कई पर्यावरणविदों और नागरिक समाज के सदस्यों के विरोध के बाद जिन्होंने पर्यावरण और वन मंत्रालय को प्रस्तावित संशोधनों को वापस लेने के लिए पत्र लिखा था। सरकार द्वारा लिया गया यह कदम ठंठे बस्ते में डाल दिया गया और तब से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को बरकरार रखा गया है।

 

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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 - भारत के पर्यावरण की रक्षा
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1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी और 1972 में स्टॉकहोम स्वीडन में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत की भागीदारी के लिए एक प्रतिक्रिया के रूप में आया था। इस अधिनियम में केंद्र सरकार को, उपचार के उपायों के साथ-साथ देश में पर्यावरण की रक्षा के लिए कार्रवाई करने की शक्तियां भी दी गयी हैं।
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