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भारत में स्ट्रीट लाइटः कुशल ऊर्जा समाधान की आवश्यकता

May 23, 2017


solar-street-lightsभाजपा की अगवाई वाली एनडीए सरकार वित्तीय वर्ष 2015-16 का बजट पेश करने के लिए तैयार है। विकास को गति देने के लिये भविष्य में अपनायी जाने वाली नीतियों को दिशा देने के लिये जनता की सारी उम्मीदें सरकार पर ही होंगी।

चाहे बजट में इस मुद्दे पर प्रकाश डाला गया हो या नहीं, बिजली के लिये जनता की बढ़ती मांग, देश के लिये एक ऐसी चुनौती है जो चिंता को जारी रखेगी। बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच का फासला यह तय करेगा कि किस प्रकार सरकार अपने विकास के उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम होगी। समाधान केवल बिजली उत्पादन को बढ़ाने के लिए निवेश में वृद्धि करना नहीं है, यह तो प्रमुख आवश्यकता है ही, बल्कि कुशल तकनीक के उपयोग के जरिये कुशल बिजली वितरण और बिजली की खपत के लिये निवेश करना है।

दुनिया भर में बिजली की खपत का एक महत्वपूर्ण अंग स्ट्रीट लाईटें हैं। भारत इससे अलग नहीं है। स्ट्रीट लाईट के बारे में वैश्विक रूप से आये रूझानों से यह पता चलता है कि बिजली का 18-33% बिल स्ट्रीट लाईट की ओर से आता है। अगर हम बिजली की खपत के साथ ही इसकी क्षमता में सुधार करना चाहते हैं तो हमें इस क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।

31 दिसंबर 2014 को विद्युत मंत्रालय के सीईए के अनुसार, भारत में 255681.46 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इनमें से कोयला आधारित इकाइयाँ- 154170.89 मेगावाट, गैस आधारित इकाइयाँ- 22971.25 मेगावाट, डीजल- 1199.75 मेगावाट, परमाणु- 4780 मेगावाट, हाइड्रो- 40867.43 मेगावाट और अक्षय ऊर्जा से- 31902.14 मेगावाट का उत्पादन होता है।

क्षेत्र के अनुसार, राज्य के स्वामित्व वाली इकाइयों से 37%, निजी इकाइयों से 36% और केन्द्रीय इकाइयों से 27% बिजली प्राप्त होती है।

12 वीं योजना के तहत, बिजली के उत्पादन के लिये कुल क्षमता 88537 मेगावाट थी, इसके बावजूद दिसंबर 2014 में वास्तविक उत्पादन क्षमता 4958.22 मेगावाट थी। स्पष्ट है कि बढ़ती बिजली उत्पादन क्षमता में बिजली वितरण और खपत में सुधार की चुनौती का सामना करने के लिये सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है।

अंतिम उपभोक्ता तक बिजली का कुशल संचालन (दरें, टैरिफ और वितरण आदि) एक राज्य का विषय है, इसलिये संबंधित राज्य में बिजली के वितरण और उपयोगिताओं में सुधार के लिये राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। बिजली की दरें (टैरिफ) और उपभोक्ता की प्राथमिकताऐं ज्यादातर बहस का विषय रही है, ऊर्जा की लागत को कम करने के लिये बिजली बचत के उपायों पर कभी ज्यादा जोर नहीं दिया गया था।

राज्य स्तर पर, ज्यादातर राज्य विद्युत बोर्ड सब्सिडी के संयोजन और कम वसूली के कारण अपनी लक्षित वसूली से नीचे रहकर घाटे में जा रहे हैं। 2006 की राष्ट्रीय टैरिफ पॉलिसी में कहा गया है कि राज्य विद्युत विनियामक आयोग (एसईआरसी) आपूर्ति की लागत के +/- 20% में टैरिफ को तय करे।

दुर्भाग्य से, ज्यादातर राज्य इस दिशा निर्देश को पूरा करने के में असफल रहे, इसका नतीजा यह निकला कि ज्यादातर राज्यों में बिजली का क्षेत्र एक वित्तीय संकट में है। अधिक ऊर्जा कुशल बिजली वितरण उपकरण, नवीनतम बिजली मीटरिंग और निगरानी प्रणालियों में निवेश करने में यह एक बड़ी बाधा साबित होती है। स्ट्रीट लाईट को इस बारे में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

स्ट्रीट लाइटों की खराब स्थिति

ज्यादातर शहरों में स्ट्रीट लाइटों का नगर पालिकाओं द्वारा संचालन किया जाता है। अधिकांश शहरी, उप शहरी क्षेत्रों और कस्बों में स्ट्रीट लाईट के रूप में अभी भी फ्लोरोसेंट, सीएफएल, उच्च दबाव वाली सोडियम लैंप और धात्विक हैलाइड बल्बों का उपयोग किया जाता है, यह सभी उपकरण क्षेत्रीय प्रकाश की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार नही हैं। बहुत कम योजनाओं के द्वारा, सड़क उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिये, विभिन्न क्षेत्रों में प्रकाश की आवश्यकताओं को पूरा किया गया है। उदाहरण के तौर पर हाई स्पीड और कम स्पीड वाहनों के आवागमन वाली सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकताओं में भिन्नता है। इसी प्रकार क्रॉसिंग वाली सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता माध्यमिक सड़कों की आवश्यकताओं से अलग है। वाहनों के चलने वाली और पैदल चलने वाली सड़कों पर भी प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकताओं में भिन्नता है।

स्ट्रीट लाइटों का एक सुनियोजित तरीके से रखरखाव करने से बिजली का गलत उपयोग नहीं हो पाता है, इस प्रकार बची हुई बिजली का अन्य क्षेत्रों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है। स्ट्रीट लाईट से केवल प्रकाश ही नहीं होता है बल्कि यह उस स्थान की स्थिति के बारे में भी जानकारी होती है, यह उस विशेष क्षेत्र की आवश्यकताओं के आधार पर अलग- अलग होती हैं। क्षेत्र के हिसाब से अध्ययन की कमियों के कारण, मानक नियमों को पूरे शहर के आधार पर जारी किया जाता है, स्ट्रीट लाईट के रखरखाव में होने वाले व्यय में वृद्धि होती है। कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि सूर्योदय के बाद भी स्ट्रीट लाइटें जलती रहती हैं। इसका कारण यह है बिजली को, प्रकाश की जरूरत के समय के बजाय, अपने पूर्व निर्धारित समय पर बंद कर दिया जाता है। बिजली को बंद करने (काटने) का समय मौसम और स्थान के आधार पर भिन्न होता है। बिजली के दुरूपयोग को रोकने के लिये एक अनुशासन की जरूरत है। शायद, सरकार ऑटोमेटिक स्ट्रीट लाईट कंट्रोल सिस्टम (एलडीआर) के बारे में विचार कर सकती है, इस पर सूर्य की रोशनी पड़ने के दौरान लाईट अपने आप बंद हो जाती है। बड़े क्षेत्रों को छोड़कर अक्सर छोटे क्षेत्रों में पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था का अभाव और स्ट्रीट लाईट का खराब रखरखाव अधिकांश नागरिकों के लिये एक बड़ी समस्या है। नगर पालिकाओं को धन प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और यह उन नागरिकों के लिये होता है जो इस समस्या का सामना करते हैं।

सरकार और अन्य एजेंसियों की पहल

देश की तरक्की के लिये बिजली की जरूरत बढ़ती रहेगी यह ऊर्जा दक्षता के लिये एक विशाल अवसर को खोलता है। अकेले इस क्षेत्र के लिये भारत में बाजार की क्षमता लगभग 74000 करोड़ रूपये है। वर्तमान में, ऊर्जा सेवा कंपनियाँ (ईएससीओ) बाजार के 5% से कम के क्षेत्र को कवर करती हैं और नियामक, संस्थागत और वित्तीय बाधाओं के कारण प्रतिबंधित हैं। 2008 में, सरकार ने 8 राष्ट्रीय मिशनों के एक हिस्से के रूप में, इनहांस्ड एनर्जी इफीसिएंसी (एनएमईईई)  के लिये राष्ट्रीय मिशन शुरू किया था। 2014-15 तक, एनएमईईई पेट्रोलियम, कोयला और गैस उत्पादों में ईंधन की बचत को 23 एमटीओई तक बचाने का लक्ष्य था।

सरकार ने 2010 में एनर्जी इफीसिएंसी सर्विस लिमिटेड (ईईएसएल) की स्थापना की इसका लक्ष्य, एनटीपीसी लिमिटेड, पीएफसी, आरईसी और पावरग्रिड के बीच एक संयुक्त व्यापार से, निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना है। वर्तमान में, ईईएसएल एक प्रकार के ऊर्जा वितरण दक्षता परियोजना के लिये झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड, चामुंडेश्वरी विद्युत आपूर्ति निगम और बंगलौर विद्युत आपूर्ति निगम के साथ मिलकर काम कर रहा है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) स्ट्रीट लाईट के सभी हितधारकों के लिये एक मानक है जिसमें कुशल लैंप प्रौद्योगिकी, खंभो को लगाना उनका रखरखाव करना और दिखने योग्य प्रकाश का प्रबंध करना शामिल है।

ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) पारिस्थितिकी संतुलन और ऊर्जा दक्षता के साथ सतत जीवन में अग्रणी काम कर रहा है। वे अधिक कुशल ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये रूपांतरण की वकालतकर रहे हैं और निजी क्षेत्र के निकायों को टिकाऊ उपायों के लिये सलाह दे रहे हैं।

उपलब्ध हैं नई प्रौद्योगिकियाँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत कम से कम 100 शहरों को स्मार्ट शहर बनाने की योजना बना रहे हैं। यह कम से कम लाख निवासियों वाले शहर होंगे। इसके लिये 35,000 करोड़ रुपए का निवेश होने का अनुमान है। परिचालन लागत को कम करने के लिये, बिजली के क्षेत्र को कुशलता से तैयार किये जाने की आवश्यकता है, इसके लिये विद्युत उत्पादन और वितरण की निगरानी करनी होगी। सड़क पर प्रकाश की व्यवस्था के लिये सरकार को सौर ऊर्जा के साथ में एलईडी बल्ब के उपयोग पर भी ध्यान देना होगा।

हाल ही में हुऐ फोटोवोल्टिक मॉड्यूल (पीवी) के विकास के साथ सौर ऊर्जा उत्पादन और अधिक मजबूत हो गया है। कम ऊर्जा खपत और अधिक प्रकाश वाले एलईडी बल्बों के उपयोग से हर ग्रिड के आधार पर बचाई गयी ऊर्जा बहुत महत्वपूर्ण है।

अधिक मात्रा में उत्पादन होने के कारण, सौर पैनल और एलईडी बल्ब दोनों की कीमतों में गिरावट आयेगी, जिससे इसका उपयोग करना और भी अधिक प्रचलित हो जायेगा।

इसका इसी तथ्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चेन्नई निगम ने चेन्नई की सड़कों पर 2,14,008 स्ट्रीट लाइटें लगवाई हैं। इनमें से 70 वॉट के 84,664 सोडियम वाष्प लैंप, 40 वॉट की 49,420 ट्यूब लाईटें और 250 वॉट के 42,250 सोडियम वाष्प लैंप का उपयोग किया गया है। इसके कारण चेन्नई में कुल ऊर्जा खपत में 19 मेगावाट की कमी आयी है, जो प्रतिमाह करीब 200 लाख रुपए की लागत से आती है।

उच्च दबाव वाले सोडियम वाष्प लैंप (एसवीएल) के बजाय एलईडी लैंप के उपयोग के फायदे के बारे में ध्यान दें। एलईडी, एसवीएल की अपेक्षा 50-80% तक ऊर्जा की बचत करती है, एलईडी का जीवनकाल 50,000 घंटे होता है- जो प्रतिदिन 10 घंटे के हिसाब से 13 वर्ष तक के लिये जल सकता है, यह अवधि सोडियम वाष्प लैंप के जीवनकाल से 5-10 गुना अधिक है और इसका प्रकाश भी सोडियम वाष्प लैंप से अधिक होता है। एलईडी केवल आर्थिक रूप से ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिये भी फायदेमंद है।

हाल ही में, बीईएसटी ने दक्षिण मुंबई के प्रतिष्ठित मैरीन ड्राइव में एसवीएल आधारित लाइटों के स्थान पर एलईडी लाईटों को लगाने का फैसला लिया है। इसके परिणामस्वरूप प्रकाश बढ़ने और ऊर्जा में महत्वपूर्ण बचत होने की संभावना है। कई अन्य शहर भी इस मामले में आगे आ रहे हैं और स्ट्रीट लाईटों में एलईडी का उपयोग करने के लिये निवेश कर रहे हैं। यही सही रास्ता है।

यह सभी राज्यों के लिये आवश्यक है कि वे अपनी नगर पालिकाओं और इसी तरह के संस्थानों में एलईडी लाइटों के उपयोग को और सौर आधारित स्ट्रीट लाईटों को बढ़ावा दें। भारत को अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए यह कार्य करना ही होगा।