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सोशल मीडिया का अनुचित उपयोग या दुरुपयोग

July 27, 2017


power-of-social-media-hindiसोशल मीडिया एक नई घटना है और यह दुनिया भर में बनी रहने वाली है। सोशल मीडिया ने लोगों को एक ही समय पर अगल-अलग होने के बावजूद एक साथ जुड़ने में सक्षम बना दिया है और सोशल मीडिया ने लोगों के हित, लगाव और व्यवहार के नए पहलुओं को उत्पन्न किया है।

सोशल मीडिया के माध्यम से सामान्य जानकारी से लेकर आपदाओं की जानकारी, लोगों तक आसानी से पहुँच जाती है जैसा कि पहले नहीं होता था। लेकिन लोगों का इन घटनाओं को व्यक्त करने का तरीका और उस पर लोगों की प्रतिक्रिया, सोशल मीडिया को एक दोधारी तलवार बना देती है।

कल ही, नोएडा मेट्रो स्टेशन के बाहर गरीब परिवार का एक स्कूली बच्चा बहुत दयनीय स्थित में बैठा, वजन मापने वाली मशीन के माध्यम से कुछ पैसे कमाने की कोशिश कर रहा था और साथ में पढ़ाई भी कर रहा था, बच्चे की इन परिस्थितियों को एक आगंतुक ने देखा और उसका ध्यान उस बच्चे के उपर आकर्षित हुआ। आगंतुक ने उस बच्चे का फोटो खींचा और उसे सोशल साइट फेसबुक पर अपलोड कर दिया और वह तस्वीर वायरल हो गई। वायरल तस्वीर के जवाब में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित कई लोग बच्चे की मदद के लिए आगे आए, जिन्होंने कुछ काम किए बिना उस बच्चे के अध्ययन के लिए पूरा खर्च उठाने का वादा किया है। हालांकि यह सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव का एक उदाहरण हो सकता है, लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष भी खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है, शायद बहुत ही खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है।

2012 में, सोशल मीडिया के दुरुपयोग के शुरुआती मामलों में से एक मामला सरकार के सामने तब आया, जब भूकंप पीड़ितों की तस्वीरों और वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल करना शुरू कर दिया गया। अराजक तत्वों ने इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर फैलाया और यह दिखाया कि ये असम और बर्मा के सामूहिक दंगों के पीड़ित मुस्लिम थे। इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर निजी स्वार्थों के लिए और दंगों को भड़काने के लिए किया गया था और इसके कारण कई जगहों पर प्रतिक्रिया देखने को मिली थी।

सोशल मीडिया पर दक्षिण भारत में रहने वाले स्थानीय प्रवासियों के खिलाफ नफरत और बदले से भरे हुए संदेश को वायरल किया गया था, जिसने लोगों को प्रभावित किया और जल्द ही वहाँ से भारी मात्रा में पलायन हुआ जिसमें लोगों को असम और पूर्वोत्तर राज्यों में लौटने के लिए मजबूर किया गया था जहाँ से वह आए थे। यह सोशल मीडिया के नकारात्मक पक्ष का एक स्पष्ट उदाहरण था, जो बहुत ही कम समय में बड़े पैमाने पर उन्माद को फैलाने में सफल रहा।

व्यक्तिगत स्तर पर, सोशल मीडिया में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं, जहाँ पर किसी व्यक्ति का संबंध अपने पार्टनर से समाप्त हो जाता है तब वह अपने पूर्व पार्टनर से बदला लेने के लिए अंतरंगी तस्वीरें या विडियो अपलोड करता है। इसके बाद के कानूनी परिणाम जो भी हों, पीड़ित की प्रतिष्ठा को तुरंत नुकसान पहुँचता है और कुछ मामलों में बहुत घातक परिणाम सामने आते हैं।

सोशल मीडिया का एक और बुरा नतीजा यह है कि यह नाबालिगों के लिए सभी प्रकार की अश्लील (पोर्न) शैलियों पर पहुँच सुनिश्चित करता है, जो तेजी से खासकर युवा पीढ़ी के बीच सामाजिक व्यवहार और नैतिकता की परिभाषा को बदल रहा है। पोर्न में भाग लेने वाले अधिक लोग और यहाँ तक कि अधिक संख्या में इसका प्रयोग करने से, आसानी से पैसा बनाने का अवसर, इस उद्योग को तेजी से बढ़ने में मदद करता है। समाज न तो इससे दूर जा सकता है और न ही इसे अनदेखा कर सकता है।

समस्या यह है कि समाज तेजी से बदलती टेकनोलोजी के साथ तालमेल नहीं बना पा रहा है और अनजान सामाजिक परिणामों का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं, जो अगली पीढ़ी के द्वारा अपरिचित और संभवत: अस्वीकार्य, सामाजिक व्यवहार में होने वाला परिणाम होगा। कई जगहों पर सोशल मीडिया पुरानी पीढ़ी और युवाओं को करीब लाने के बजाय उनके बीच दूरी बढ़ा रहा है।

क्या सरकार समय-समय पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध या रोक लगाएगी?

ऐसी दुनिया में, जहाँ हर रोज फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम स्थाई मुलाकात की जगह ले रहे हैं, इन प्लेटफार्मों का उपयोग करने की परिणामी जिम्मेदारी अब भी उभर रही है। भारत में इंटरनेट और मोबाइल का प्रयोग बढ़ता जा रहा है और जब उपयोगकर्ता इन प्लेटफार्मों (सोशल मीडिया) पर पहली बार आता है तब गंभीर परिणामों के साथ विस्तृत सामूहिक उन्माद या सांप्रदायिक प्रतिक्रियाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए, सरकार को समाज के सभी हितधारक नागरिकों को इकट्ठा करके मीडिया विनियमन के साथ मीडिया आजादी संतुलन के मुद्दे को समझाने की जरूरत है।

किसी भी मुक्त समाज में, यह एक संवेदनशील विषय है जिसके परिणामस्वरूप किसी भी तरह के प्रतिबंधों या विनियमों का विरोध होगा, लेकिन समस्या यह है कि सभी समाज समान नहीं होते हैं और इसलिए प्रत्येक समाज को एक स्वतंत्र सोशल मीडिया के नकारात्मक परिणामों से बचने के लिए अपने तंत्र को विकसित करना होगा।

हाल ही में गुजरात में पटेल आंदोलन के दौरान भारत सरकार ने एक दिन के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया को बंद कर दिया था। उन्होंने ऐसा ही ईद के महीने में जम्मू-कश्मीर में किया जो प्रतिबंधित उपाय था। गुजरात में अधिक शांतिपूर्ण माहौल रहा जबकि जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध के बावजूद, पुलिस के साथ हिंसा और संघर्ष हुआ। अगर इंटरनेट और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध न लगा होता तो स्थिति बहुत खराब हो सकती थी। ऐसे अवसरों का लाभ उठाने के लिए लोगों के पास पर्याप्त निहित स्वार्थ हैं इन अवसरों का अराजक तत्वों को इंतजार रहता है और इन अराजक तत्वों से निपटना सरकार की जिम्मेदारी है।

पुलिस की अज्ञानता और प्रशिक्षण की कमी समस्या खड़ी कर रही है

फेसबुक पर राजनेताओं या लोकप्रिय हस्तियों के खिलाफ टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तारी के मामलों में अक्सर, मौजूदा कानूनों को जाने बिना या सोशल मीडिया के पहलुओं को समझे बिना पुलिस कार्रवाई कर रही है।

मुंबई में बाल ठाकरे की मौत के बाद मुम्बई बंद के विरूद्ध दो लड़कियों की फेसबुक पर टिप्पणी के बाद गिरफ्तारी भी एक मामला है। अधिकांश राज्यों में पुलिस पूरी तरह से टेक्नोलोजी या सोशल मीडिया के विकास से अनजान है और इसलिए पुलिस को इसके उपयोग और दुरूपयोग का ज्ञान नहीं है। साइबर-अपराध या सोशल मीडिया में कोई जानकारी या प्रशिक्षण न होने के कारण अधिकतर पुलिस वाले पूरी तरह से तैयार नहीं हैं कि वे निवारक उपाय कर सकें या किसी भी नतीजे की परिस्थिति के साथ इसका समाधान कर सकें।

क्या साइबर कानून सभी विषम परिस्थितियों को दूर कर सकते हैं?

इसका जवाब ना है। सोशल मीडिया पिछले 8-10 वर्षों से लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है लेकिन सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं है। इससे संबंधित कई मुद्दे हैं जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। एक व्यक्तिगत स्तर पर, किसी व्यक्ति के भाषण की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा, व्यवसाय या आजीविका को धिक्कारने वाली प्रतिक्रिया करने वाले के बीच एक पतली रेखा है। फिर व्यक्तियों के पास गोपनीयता के मुद्दे और सूचना के अधिकार भी हैं, जिनमें से सभी को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए और सभी संबंधित मुद्दों का समाधान करने के लिए कानूनों को लिखा जाना चाहिए।

सोशल मीडिया की सामग्री के संदर्भ में, जहां आप क्या भाषण की स्वतंत्रता है और क्या अपमानजनक, राजद्रोहपूर्ण या सांप्रदायिक सामग्री है, के बीच एक रेखा खींचते हैं, हो सकता है कि अभिव्यक्ति की आजादी का पहलू सही हो और दूसरा पहलू गलत हो। फिर, वही अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ शहरी नागरिकों को सही लगता है और यह ग्रामीण लोगों को सामाजिक रुप से स्वीकार्य नहीं है। इस अभिव्यक्ति की आजादी जैसी सामग्री का सोशल मीडिया पर एक बार अपलोड होना और वायरल होना हिंसक प्रतिक्रिया को बढ़ावा देना है। ये वास्तविक रुप से बहुत ही गंभीर समस्याएं हैं और सरकार को इन उभरते हुए खतरों के लिए तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

सरकार द्वारा साइबर नीतियों और साइबर सुरक्षा कानून प्रबंधन को परिभाषित करने का समय

दुनिया के साथ ‘डिजिटल’ क्रांति के शिखर पर वेब और भारत के माध्यम से तेजी से जुड़ाव होने के साथ, सरकार को एक आवश्यक आधार पर स्पष्ट साइबर सुरक्षा कानून और साइबर प्रबंधन नीतियां स्थापित करनी चाहिए। जून 2015 तक, देश में पहले से ही 213 मिलियन मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया विकास राष्ट्र के लिए उत्प्रेरक के रूप में भी काम कर सकता है या इसके विपरीत राष्ट्रीय खतरा भी बन सकता है। इससे पहले इसकी स्थित और खतरनाक हो जाए सरकार को इसके उपर ठोस कदम उठाने चाहिए।