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शहरी बाढ़: भारतीय शहर भारी बारिश के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?

September 1, 2017


शहरी बाढ़: भारतीय शहर भारी बारिश के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?

कल, हमारे देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में 200 मिमी से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई। शहर में नियमित मॉनसून के दौरान 10 दिनों से ज्यादा होने वाली बारिश की तुलना में यह बारिश उससे कहीं अधिक हुई है। इन 12 घंटों में, जल देवता ने भारत के सबसे हलचल भरे और उद्यमशील शहर को घुटनों पर आने के लिए विवश कर दिया है। इस बारिश में 5 मुंबईवासियों की मृत्यु हो गई,  घरों और कार्यालयों में पानी भरने के साथ रेल सेवाएं बाधित हो गईं और कार्यालय जाने वाले अधिकांश लोग घर से बहुत दूर फंस गए। बढ़ते जलस्तर से बचाने के लिए लोगों ने राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) को बुलाया।

आज सुबह समाचार संवाददाता ने जोरशोर से इसे “अप्रत्याशित वर्षा” कहकर सम्बोधित किया। कुछ लोगों ने इस अजीब स्थिति का दोषी मौसम को ठहराया है जबकि अन्य लोगों ने काफी हद तक शहरी नियोजन में भागीदारी की कमी के लिए राजनेताओं और नगर निगम को दोषी ठहराया। आइए देखते है कि कैसे यह एक अलग घटना है। करीब 10 दिन पहले, 21 अगस्त 2017 को हरियाणा और पंजाब की राजधानी में लगभग 112 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई थी। कहा गया था कि मानसून के दौरान शहर में औसतन 23 बार बारिश हुई। भारत के सबसे साफ-सुथरे और सबसे अच्छे योजनाबद्ध शहर में काफी हद तक पानी का सैलाब आ गया था।

बस कुछ दिनों पहले ही, 15 अगस्त को आईटी राजधानी बेंगलुरु में- 24 घंटों के अन्दर रिकॉर्ड तोड़ बारिश (129 मिमी से अधिक) दर्ज की गई थी, “अप्रत्याशित बारिश” ने देश के सबसे बड़े शहरों में से एक मुबंई के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। शहर के कई हिस्सों में बाढ़ आ गई थी और वाहन पानी में तैरते हुए पाए गए। दो साल पहले 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ की यादें, जीवन और संपत्ति का बड़े पैमाने पर विनाश और बड़े पैमाने पर बचाव कार्य अभी भी हमारे मन में ताजा हैं।

यह हमें सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के बारे में अवगत कराता है कि कैसे – हम इन अप्रत्याशित बारिशों की अपेक्षा और ऐसी मौसम की स्थितियों से निपटने के लिए अपने शहरों को तैयार कब करेंगे?

खराब शहरी योजना

भारत के अधिकांश शहरों, विशेष रूप से बड़े महानगरीय क्षेत्रों में चल रही योजनाओं की स्थिति बहुत खराब है। ये शहर स्वाभाविक रूप से योजनाबद्ध जल निकासी और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के लाभ के बिना विकसित हुए हैं। नगर निगमों द्वारा समय-समय पर मरम्मत कार्य होते रहते हैं फिर भी ये शहर खराब संसाधनों, धन की कमी, राजनीतिक फ्रस्ट्रेशन और अन्य ऐसे कई संघर्षों से जूझते रहते हैं लेकिन संरचित योजना और इंजीनियरिंग प्रयासों से लगभग किसी भी शहर को लाभ नहीं प्राप्त हुआ है। शहरों में बारिश के पानी की निकासी के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली नालियाँ अक्सर एक होती है, जो शहरों के सीवेज को बाहर निकलती हैं। इससे बारिश के पानी का पुनर्चक्रण, बाढ़ की रोकथाम और बाढ़ के पानी को जल्द से जल्द हटा देना असंभव है। कुछ शहरों में, जैसे चेन्नई में पानी की बड़ी नालियाँ हैं लेकिन इनका निर्माण शहर में बारिश और बाढ़ के स्वरूप को जाने बिना किया गया था।

प्रभावी कचरा निपटान प्रणाली के अभाव पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। प्लास्टिक के अंधाधुन्ध उपयोग के कारण वर्षा जल निपटान प्रणाली और जल निकासी की समस्या उत्पन्न हो गई है। एक तथ्य यह भी है कि हमारे कुछ प्रमुख शहरों में हरे-भरे (पेड़ पौधे वाले) स्थानों को पूर्णतया नष्ट करके शहरीकरण (बिल्डिंगों और सड़कों का निर्माण) कर दिया गया है। कंक्रीट, टार और तारकोल भूमि की जल अवशोषण की प्रवृत्ति को बाधित करते हैं, इसके कारण शहरी और इसके पड़ोसी क्षेत्रों में बाढ़ और भूजल स्तर के गिरने की समस्या सामने आ रही हैं।

भारी वर्षा की भविष्यवाणी करने की खराब क्षमता

हमारे देश में गरीब शहरी नियोजन के अलावा शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदा प्रमुख कारणों में से एक है और शहरों में रहने वाले सैकड़ों और हजारों लोग इस आपदा को झेल रहे है, मौसम विभाग के पास भारी बारिश का सही अनुमान लगाने की क्षमता नहीं है। अत्यधिक वर्षा की घटनाएं भारत के शहरों में लगातार बढ़ती ही जा रही हैं और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग इस तरह की घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हैं। अगर कभी भी अमेरिका, देश में तूफान की शुरुआत और अन्य इसी तरह की मौसम की घटनाओं का सटीक अनुमान लगाने में असमर्थ हो जाता हैं, तो देश और उनके प्रशासन आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणालियों को जगह दी गई है और एक जागरूकता प्रोटोकॉल भी बनाया है जो नागरिकों को ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की अनुमति देता है।

जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक वर्षा

हालांकि, हम इस बात को मानते हैं कि हमारे शहर अत्यधिक वर्षा की मार झेलने के लिए अधिक सक्षम नहीं हैं और इन प्राकृतिक आपदाओं में हम अपनी भूमिका को पहचानने में विफल हैं। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और हरे आवरण की कमी ने हमारे शहरों को शहरी रेगिस्तान में बदल दिया है। ये अभूतपूर्व बारिश और बाढ़ अंततः मानव निर्मित आपदाएं हैं। अभी बहुत देर नहीं हुई है, हम कुछ वर्षों में इन आपदाओं से निपट सकते हैं। इसके लिए हम सभी को प्लास्टिक के उपयोग को कम करना, कंक्रीट निर्माण और पर्यावरण आवरण के बीच एक बढ़िया सामंजस्य बनाए रखना आवश्यक है। हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण क्या है, भविष्य की आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के संरक्षण के मूल्य को सिखाना या अधिक पेड़ लगाए जाने से होने वाली महत्वता को समझाना।