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भारत अभी भी क्यों है एक गरीब देश?

August 2, 2017


भारत एक महाशक्ति के रूप मे विकसित होने का सपना देखता है लेकिन दुनिया के एक तिहाई गरीब लोग भारत में रहते हैं। भारत दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन यह कुपोषित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या रखता है। भारत की अधिकांश आबादी गाँवों में रहती है और इस समय भारत के गाँव गरीबी की समस्या से जूझ रहे हैं, यह गरीबी भारत के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। यद्यपि भारत आर्थिक रूप से प्रगति कर रहा है लेकिन इस तरह की वृद्धि समाज को दो भागों, गरीब और अमीर में बाँट रही है। प्रबल गरीबी और भूख देश के आर्थिक विकास को बाधित करते हैं और इसे मंद कर देते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी मानक के अनुसार प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डॉलर तक कमाई करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है, विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 32.7% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है, जबकि 68.7% भारतीय प्रतिदिन 2 अमेरिकी डॉलर से भी कम कमाई करते हैं। भारत के 45% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। भारत में शिशु मृत्यु दर बांग्लादेश और श्रीलंका से भी अधिक है। हालांकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कुछ समय से प्रभावशाली वृद्धि दिखाई दे रही है लेकिन फिर भी गरीबी के कारण क्षेत्रीय, आर्थिक और सामाजिक असमानता में कई गुना वृद्धि हुई है। ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जो भारत मे गरीबी से संबंधित मामलों के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण हैं और इन पर बहुत ज्यादा चर्चा की जाती है।

भारत के कुछ राज्यों जैसे पंजाब, उत्तरी हरियाणा और केरल में गरीबों की संख्या में कमी आई है लेकिन बिहार और असम में इसकी स्थित में कोई सुधार नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से समाज के उपेक्षित वर्गों जैसे अनुसूची जाति, अनुसूचित जनजाति, आदिवासियों और दलितों के उत्थान लिए किये गये कई प्रयासों के बावजूद भी इनकी गरीबी में कोई बदलाव नहीं हुआ है। स्वतंत्रता के 66 वर्ष बाद भी भारत गरीबी से ग्रस्त क्यों है? भ्रष्टाचार, शिक्षा की कमी, धन का वितरण, जनसंख्या विस्फोट, जाति व्यवस्था, लोगों की मानसिकता और कुप्रबंधन, भारत में गरीबी के प्रमुख कारण हैं। उदाहरण के तौर पर भारत में गरीबों के लिए सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी प्रणाली है। भारत के 21% वयस्क और पाँच वर्ष की आयु के आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। मुद्रास्फीति के कारण कई आवश्यक वस्तुओँ जैसे फलों और सब्जियों की कीमतों में भारी वृद्धि हो रही है जिसके कारण लोगों की सब्सिडी वाले भोजन पर निर्भरता बढ़ रही है। भ्रष्टाचार के कारण गरीबों और जरूरतमंदों तक सब्सिडी वाला अनाज कभी नहीं पहुँच पाता है। एशियाई डेवलपमेंट द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार – यदि घरेलू खाद्य कीमतों में 10% की वृद्धि होती है तो यह अतिरिक्त 66 मिलियन लोगों या एशिया की 3.3 बिलियन आबादी के 2 प्रतिशत हिस्से को 1.25 डॉलर प्रतिदिन की कमाई के साथ गरीबी रेखा से नीचे ले आयेगी।

भारत में गरीबी का कारण

भ्रष्टाचार

भारत, पूरी तरह से नहीं लेकिन कुछ हद तक भ्रष्टाचार का एक पर्यायवाची बन गया है। हाल ही के वर्षों में हुए घोटाले भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। लगभग सभी सरकारी विभाग भ्रष्टाचार से प्रभावित हैं। भारत में भ्रष्टाचार को गरीबी का सबसे बड़ा कारण माना जाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में किया गया भ्रष्टाचार इस प्रकार का सबसे बुरा भ्रष्टाचार है। गरीबों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे पात्रता कार्यक्रम और सामाजिक व्यय योजनाएं भारत में भ्रष्टाचार के मुख्य स्त्रोत हैं। उदाहरण के लिए, भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), योजना चलाई गई थी। 9 बिलियन डॉलर की लागत वाले इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को हर साल 100 दिन का रोजगार उपलब्ध करवाना था। लेकिन कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के कारण मनरेगा सुचारू रूप से नहीं चल पाई। मनरेगा की तरह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना भी असफल रही। इस योजना को लोगों को सशक्त बनाने के लिए संचालित किया गया था।

हालांकि सरकार संयुक्त रूप से विकास करने का प्रयास तो कर रही है लेकिन इसमें भ्रष्टाचार भी अपनी भूमिका निभा रहा है। इसलिए गरीब और जरूरतमंदों के लिए बनाये गए सभी कार्यक्रम उन तक प्रभावी रूप से पहुँचने में असफल रह जाते हैं। गरीबों को उनकी आवश्यकताओं और मूल अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। भ्रष्टाचार भारत के लिए एक अभिशाप की तरह है। भ्रष्टाचार भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है तथा सामाजिक आसमानता का कारण बनता है। गरीबों के उत्थान के लिए प्रदान किये गये धन का दुरूपयोग किया जाता है। प्रशासनिक स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार के कारण गरीबी और आगे बढ़ जाती है। यहाँ तक कि छोटे से छोटा काम भी रिश्वत के बिना नहीं किया जाता है। भ्रष्टाचार आर्थिक विकास को धीमा करता है तथा उसके मार्ग को बदल देता है।

ब्लूमबर्ग द्वारा एकत्र किये गये आँकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के भ्रष्ट नेताओं ने लगभग 14.5 अरब डॉलर के करीब खाद्यान को हड़प लिया था। खाद्यान में हुए इस भ्रष्टाचार के कारण गरीबों को अपनी आवश्यक मात्रा से कम भोजन के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ा और बच्चों को कुपोषण का सामना करना पड़ा। प्रशासनिक स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आये है, यह गरीबों को और अधिक गरीब बना रहा है।

आर्थिक नीतियाँ

ऐसा माना जाता है कि 1990 के दशक में शुरू किया गया आर्थिक सुधार भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की गिरावट के लिए जिम्मेदार है। इससे कृषि पर संकट के बादल छा गये। भारी कर्ज में दबे हुए किसानों के सामने आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1997 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई थी। सरकार द्वारा अपनायी नई नीतियाँ किसानों को परंपरागत फसलों के स्थान पर नकद फसलों को उगाने पर अधिक बल देती हैं। लेकिन इसने खेती की लागत में वृद्धि को जन्म दिया और इस प्रकार आर्थिक बोझ बढ़ने से गरीबी में बढ़ोतरी हुई। जबकि भारत के गाँव नई कृषि प्रणाली को अपनाने को लेकर आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं। ज्यादातर ग्रामीण युवा अशिक्षित हैं तथा उनमें कौशल और खेती में लगन की कमी है। यह सभी कारक संकटपूर्ण और गरीब भविष्य के लिए पर्याप्त हैं। सरकार को गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने वाली योजनाओं को संचालित करना चाहिए। युवाओँ को कौशल आधारित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

गलत प्रबंधन और दोषपूर्ण विकास मॉडल

गरीबी को दूर करने के लिए चलाई गई ज्यादातर योजनायें तथा आवंटिक किये गये फंड प्रशासनिक लागत में ही खत्म हो जाते हैं। इस प्रकार धन की यह कमी गरीबों का उत्थान करने के लिए बनाई गई पूरी श्रृंख्ला को प्रभावी ढंग से लागू नहीं होने देती है।

उच्च जनसंख्या वृद्धि दर

बढ़ती जनसंख्या कभी भी गरीबी का सीधा कारण नहीं है, लेकिन यह गरीबी पर एक प्रभाव जरूर डालती है। यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि बहुत बुरी चीज है। यह बात गरीबी के मामले में भी सही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही अधिक संसाधन और भोजन आदि की जरूरत पड़ती है, लेकिन अगर यह जनसंख्या सही तरीके से प्रशिक्षित होती है तो यह देश के आर्थिक विकास में अपना सहयोग प्रदान कर सकती है।

कभी-कभी आर्थिक असमानता बढ़ रही है

भारत के विकास मॉडल ने व्यापारियों को निश्चित रूप से बहुत लाभ पहुँचाया है, लेकिन जब हम देश के लगभग 213 मिलियन लोगों को रात में भूखा सोते हुए देखते हैं तो भारत का यह विकास मॉडल कुछ असफल प्रतीत होता है। संगठित और असंगठित श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। श्रमिकों को बढ़ती हुई मुद्रास्फीति और औद्योगिक विकास के हिसाब से कम भुगतान किया जाता है या भुगतान ही नहीं किया जाता है। इस प्रकार की असमानता के कारण हर साल लाखों लड़कियों का यौन शोषण और तस्करी की जाती है, यह सब पैसों के लिए किया जाता है। इस असमानता ने बाल श्रम को बढ़ावा दिया है। इस प्रकार अमीर और अधिक अमीर होते जा रहे हैं। असमानता के इस दृश्य में, शीर्ष 5 प्रतिशत घर भारत की कुल परिसंपत्ति का 38 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं, जबकि नीचे के 60 प्रतिशत घर भारत की कुल परिसंपत्ति का केवल 13 प्रतिशत हिस्सा ही रखते हैं।

छोटे उद्योगों की कमी

बड़ी संख्या में बनाई गई आर्थिक नीतियाँ और सुधार लघु उद्योगों के अनुकूल नहीं होते हैं। यह नीतियाँ नौकरशाहों को बढ़ावा दे रही हैं तथा छोटे उद्यमियों की स्थिति को और खराब कर रही हैं।

गरीबों की मानसिकता

गरीबी में एक बड़ी बाधा है और वह यह है कि गरीब केवल दिखावे में ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी गरीब हैं। आपने सिग्नलों पर भीख माँगते हुए ऐसे भिखारियों को देखा होगा जो पूर्णतया स्वस्थ होते हैं। यदि आप उनको भीख माँगने के बजाय कुछ काम करने के लिए कहते हैं तो उनका सीधा एक ही जवाब होता है और वह होता है नहीं। यहाँ तक कि उनके बच्चे भी स्कूल न जाकर भीख ही माँगते हैं। वे इस भीख माँगने और गरीबी से चक्र से कभी भी बाहर नहीं निकल सकते हैं। गरीबी से उबरने के लिए उनको अपनी मानसिकता को बदलना होगा। गरीबों को शिक्षा के महत्व और जीवन भर मिलने वाले लाभों को समझना चाहिए। भारत में रोजगार की कोई कमी नहीं है। अगर कोई व्यक्ति पढ़ा लिखा नहीं है तब भी उसके पास कई नौकरियाँ हैं जैसे रंगाई करना, रंगों की पैकिंग करना, रेडीमेड या पहले से सिले हुए कपड़ों या स्वेटर में बटन लगाना, इलेक्ट्रानिक सामान या बिजली के बोर्ड बनाना आदि कई काम हैं। मैंने कई लोगों को इस प्रकार की नौकरियों से कमाई करते और एक बेहतर भविष्य के लिए बच्चों को स्कूल भेजते देखा है।

भारत को कुछ ऐसे नेताओं की जरूरत जो देश को आगे बढ़ाने के लिए सही दिशा निर्देश दे सकें। हमें उत्पादकता बढ़ाने और उत्पादकता में मानव संसाधन का उपयोग कैसे किया जाए इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिए। भारत वासियों को अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहिए ताकि भारत को एक और संसाधन प्रदान किया जा सके। भारत को एक स्पष्ट आर्थिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, क्योंकि भारत में इस दृष्टिकोण के पालन के लिए एक महान प्रणाली उपलब्ध हैं। उलझी हुई विचार धाराओं को स्पष्ट रूप से कटौती करके परिणाम उन्मुख लोगों से अलग कर देना चाहिए। भारत को समृद्ध बनने के लिए भ्रष्टाचार से मुक्त होना चाहिए।