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भारतीय छात्र क्यों चाहते हैं विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ना?

July 5, 2017


जब मैं कॉलेज में पढती थी, तो मेरे बैच के ज्यादातर छात्रों की इच्छा विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने की थी। उनमें से बहुत छात्र ऐसे भी थे जिन्होंने प्रवेश पा लिया है और अब वहाँ पर व्यवस्थित होकर अपने लिए अच्छी कमाई कर रहे हैं। क्या यह प्रवृत्ति आज भी वही है या समय के साथ और भी अधिक आक्रामक हो गई है? आईआईएम बैंगलोर के एक विभाग के अध्ययन के अनुसार, विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में 256% की भारी वृद्धि हुई है। भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका शीर्ष स्थानों में से एक है, उसके बाद ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया का स्थान है। भारतीय मुख्य समाचार पत्रों के अनुसार, अक्टूबर 2012 और फरवरी 2013 के बीच, 5600 भारतीय छात्रों का वीजा जारी किया गया था। पिछले साल वीजा को जारी करने की कुल संख्या में 50% की वृद्धि हुई है। क्या आपको नहीं लगता है कि यह हमारी शिक्षा प्रणाली पर एक बड़ा सवाल है जो विश्व में तीसरा सबसे बड़ा सवाल है? विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों को प्रवेश पाना भी भारत में प्रतिभा-पलायन की एक समस्या पैदा कर रहा है।

विदेश में पढाई करने का पहला और महत्वपूर्ण कारण भारत की शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही प्रतिस्पर्धा है। जो छात्र 90% अंक प्राप्त कर रहें है, वह भी भारत के कॉलेजों में अपनी पसंद का कोर्स नहीं कर पा रहे हैं। हाईस्कूल और इण्टर की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के बावजूद इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए अनावश्यक दबाव और मानसिक बोझ होता है। कुछ छात्र अधिक मेहनत करने के बाबजूद, प्रवेश परीक्षा पास करने में असमर्थ रहे हैं। क्या इसका मतलब यह है कि वे बुद्धिमान नहीं हैं? इस कारण वे किसी अन्य विकल्प को नहीं चुन पाते बल्कि न चाहते हुए भी अन्य व्यवसाय को अपनाते हैं। एक और चुनौती यह है कि सीमित सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा वाले छात्रों की संख्या बेहद बढ़ गयी है। सम्पूर्ण भारत में 15 आईआईटी कॉलेजों में छात्रों के प्रवेश के लिए लगभग 10,000 सीटें हैं, वर्ष 2012 में लगभग 5,00,000 छात्र प्रवेश परीक्षा के लिए बैठे थे। चूँकि यहाँ अत्यधिक प्रतिस्पर्धा होने के साथ-साथ शिक्षा में बहुत अधिक लागत लगने के कारण अधिकतर छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ना पसंद करते हैं।

निजी कॉलेजों में प्रवेश के लिए छात्रों को फीस के रुप में भारी मात्रा में रुपयों का भुगतान करना पड़ता है। इन महाविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करना चिंता का विषय है। जब आप गुणवत्ता पर समझौता करना चाहते हैं तो इतना पैसा खर्च करने से क्या फायदा है? इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता को अध्ययन करने के लिए विदेश जाना छात्रों की प्रवत्ति का एक और कारण है।

भारत में आरक्षण नीतियां शिक्षा प्रणाली को बिगाड़ती जा रही हैं। छात्र प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हैं लेकिन जब किसी छात्र को आरक्षण के आधार पर सीट दी जाती है तब छात्र मायूस हो जाते हैं। सामान्य श्रेणी में आरक्षण प्रणाली प्रतिस्पर्धा को और आगे बढ़ा रही है।

विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा एक साथ में दो कोर्स करवाने की प्रवृत्ति भारत के छात्रों को अधिक आकर्षित करती है। पाठ्यक्रमों के अनुसार भारतीय शिक्षा प्रणाली बहुत ही कठोर है जिस तरह यह सिखाई जाती  है।

लेकिन ज्यादातर विदेशी विश्वविद्यालय बहुत लचीले हैं, जिससे आप विषयों की एक श्रेणी को चुन सकते हैं। एक छात्र प्रमुख दोहरे और नि:शुल्क वैकल्पिक पाठ्यक्रमों का चयन कर सकता है।

इसके अलावा, बेहतर नौकरी की संभावनाएं, विदेशों में पढ़ाई की प्रवृत्ति के पीछे का एक प्रमुख कारण हैं। अधिकांश वैश्विक कंपनियां ऐसे लोगों को चुनती हैं जो अपने देश में काम करने के साथ-साथ विदेशों में भी अच्छी तरह से काम कर सकते हैं। इस प्रकार विदेशी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का एक अतिरिक्त फायदा मिलता है। विदेशों में अध्ययन करने से व्यक्ति के व्यक्तित्व, बातचीत में निपुणता और सामाजिक संपर्कों में सुधार आता है तथा समय के साथ अलग गुणवत्ता के जीवन का अनुभव करता है।

इसके अलावा यदि हम भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम की तुलना करते हैं, तो यह पूर्व के मुकाबले बेहतर है। विदेशी विश्वविद्यालयों में शिक्षण के अपरंपरागत तरीके छात्रों के व्यक्तित्व विकास में सहायता प्रदान करते हैं इसलिए यह छात्रों को अधिक आकर्षित करता है। विदेशी विश्वविद्यालय अपने शिक्षण कार्य के साथ बहुत सारे प्रयोग भी करते हैं जो भारत में नहीं किये जाते हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों की बुनियादी सुविधाएं भारत के विश्वविद्यालयों की तुलना में बेहतर हैं।

विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन करते समय काम करने का अवसर और छात्रवृत्ति के दौरान शुल्क का कुल भार कम रहता है लेकिन यह केवल भारत में अनिवार्य निवास सेवा के दौरान प्रदान किया जाता है।

भारतीय छात्रों का एक और भाग है इसमें कुछ ऐसे लोग शामिल हैं जो विदेशों में केवल प्रवासन के लिए छात्र के रूप में विदेशी वीजा प्राप्त करते हैं। ऐसे छात्र केवल ऐसे पाठ्यक्रमों में नामांकन करवाते हैं जो कम अवधि के हों और इनसे अप्रवासन प्राप्त करने की अधिक संभावनाएं हों।

शिक्षा, प्रतिस्पर्धा, जीवन की गुणवत्ता, पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी और समग्र व्यक्तित्व विकास आदि में मूलभूत मतभेदों के कारण, अधिकांश छात्रों के माता-पिता आगे के अध्ययन के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों में भेजना अधिक पसंद करते हैं।