सोशल मीडिया और आज की भाषा
जब तक कि इस ग्रह पर मानव जाति का अस्तिव है तब तक संचार एक या दूसरे रूप में मौजूद है। बेशक, यह कुछ वर्षों से और अधिक सुंस्कृत हो गया है लेकिन यह हमेशा हमारे इर्द-गिर्द ही मौजूद रहा है।
संचार का पता पहली बार हजारों वर्ष पहले चला था। लोगों ने सिगनल्स देकर और गुफाओं की दीवारों पर लकीर खींचकर संचार करना शुरू कर दिया था। हालांकि, संचार का पता स्पष्ट रूप से तब चला जब हमने भाषा की खोज की। तब से, पारस्परिक संबंधों के विकास के साथ-साथ हमारी प्रगति और अधिक तेज हुई है।
यह कहना दुखद है कि एक भाषा, जिसे हम ऊंचाईयों तक ले गए, अब उसे नीचे की ओर खींच रहे हैं। अगर आप नहीं समझ पा रहे कि मैं क्या कहना चाहती हूं? तो यह जानने के लिए कृपया नीचे का लेख पढ़िए !
भाषा और मानव जाति
भाषा साहित्य की जननी है। इस तरह से इसे देखते हुए, अगर हम हमारी भाषा की खोज नहीं करते तो हमारी कला का एक बड़ा हिस्सा संभाव नहीं होता। दुनिया ने हमें प्रतिभाशाली वक्ता, अद्भुत लेखकों को दिया है, वे हमें जो भी भाषा सिखाते हैं हम उसी के नक्शोकदम पर चलते हैं।
दुनिया भर में बोली जाने वाली 6500 से अधिक बोलियां लोगों को अलग पहचान देने की क्षमता रखती है। बदलते समय के साथ भाषा का बदलना ही भाषा को अनोखा बनाती है। उदाहरण के लिए, 19वीं शताब्दी में बोली जाने वाली अंग्रेजी आज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बोली जाने वाली अग्रेजी से मीलों दूर है। जो नहीं बदला वह है भाषा द्वारा प्रदान की गई इंटरलिंकिंग और जुड़ाव।
सोशल मीडिया के उदय के साथ, यह इंटरलिंकिंग और भी तेज़ और आसान हो गई है। क्या आप अपने प्रियजन को याद कर रहे हैं और उनसे बात करना चाहते हैं? बहुत आसान है, व्हाट्सएप या सोशल मीडिया पर एक टेक्ट्स मैसेज पर अपनी बात लिखकर अपने चाहने वाले से आसानी से बात कर सकते हैं, भले ही वे दुनिया के किसी कोने में बैठे हों। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट इत्यादि ने संचार के लिए मार्ग प्रशस्त किया है, जैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। कोई भी जगह दूर नहीं है और ऐसा लगता है कि इसके आने से हमारा जीवन बेहद आसान हो गया है।
आज का सोशल मीडिया
हालांकि कोई भी टेक्नॉलॉजी या सोशल मीडिया के उपहारों को नकार नहीं सकता है, जरा एक मिनट भी आप इसके बारे में सोंच कर तो देखिए कि इस नई पद्धति ने भाषा की दुनिया को कितना प्रभावित किया है? इसका एक उदाहरण यहाँ दिया गया है :
2018 में, ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में कुछ नए शब्द – normie, fam, douchebaggery, nothingburger और इसी तरह के कुछ शब्द जोड़े गए हैं, जो बहुत उत्तम दर्जे के हैं। है ना?
काफी समय के बाद, विशेष रुप से युवाओं में, भाषा की शैली का विकास हुआ है और यह एक चिंता का कारण है। जब पहली बार टेक्स्ट मैसेज का आविष्कार किया गया था, तो उसमें वर्ण की सीमा निर्धारित थी। इस समय वाक्य को छोटा बनाने के लिए here और there का प्रयोग किया जाता है। इसी तरह से “You” बन गया “u” तथा “thanks” बन गया “thx” और क्यूं नहीं। यह समय बचाता है, सुविधाजनक है। तो, नुकसान क्या है?
समस्या यह है कि इन पठित प्रस्तुतियों ने धीरे-धीरे अन्य आयामों पर अपना रास्ता बना लिया है। हालांकि उस लेखक का नाम इस समय मुझे याद नहीं जिसकी पुस्तक एक बार मैंने पढ़ी थी तो उसमें सामग्री के मुख्य पृष्ठ पर शॉर्ट फार्मों का उपयोग किया था। संक्षेप में एक-दो पृष्ठ की डायरी लिखने वाला प्रवक्ता माना जाता है।
भारत के कई अन्य लेखक अब अपनी किताबों में “हिंग्लिश” का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत अरुंधति राय, विक्रम सेठ आदि की भाषा में आप निराशा की लहर पाएंगे।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया को पूरी तरह से भाषा के “पतन” का दोषी ठहराना सही नहीं होगा। आखिरकार, वो हम ही हैं जो वेब को निर्देशित करते हैं, न कि कोई और। भाषा के क्षरण के लिए आंशिक रूप से हमारे दैनिक उपयोग को दोषी ठहराया जाना चाहिए। भाषा का स्तर, चाहे वह हिंदी हो या अंग्रेजी हो, समाचार पत्रों, किताबों और संक्षिप्त रुप आदि में भी गिर रहा है। किसी भी विषय को पढ़ने में आसान बनाने के लिए, उसमें अलग-अलग भाषाओं का एक साथ उपयोग किया जाता है। हिंग्लिश का उद्भव भी इसी का ही उदाहरण है और जो सामग्री हम पढ़ते वो वही मिश्रित भाषाओं का मिश्रण है जो एक मुख्यधारा में आकर प्रकाशित होता है।
आखिरकार, हम जो भी हैं, जहां भी हैं और जिन चीजों से घिरे हुए हैं वह काफी हद तक निर्धारित है।