क्या मध्यप्रदेश में बनेगी कांग्रेस की सरकार?
आठ में से पांच एग्जिट पोल के अनुसार मध्यप्रदेश में कांग्रेस को भाजपा की तुलना थोड़ा अधिक फायदा मिलने की संभावना जताई जा रही है और यह भी उम्मीद की जा रही है कि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस अपनी सरकार का गठन कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, क्योंकि यह वह जगह है जहां शिवराज सिंह चौहान तीन बार लगातार सत्ता में रहे और यह संभावना भी जताई जा रही थी कि चौथी बार भी यह अपनी सत्ता पर काबिज रहेंगे।
बता दें कि 28 नवंबर को मध्यप्रदेश में 230 सीटों पर प्रतिनिधियों के भाग्य का फैसला करने के लिए लोगों ने मतदान किया था। इसके नतीजे 11 दिसंबर को घोषित किए जाएंगें।
यह बात तो पानी की तरह एकदम साफ कि 2013 के विपरीत 2018 के चुनाव में भाजपा को, एक बार फिर से उठ खड़े होने वाली कांग्रेस से कड़ा सामना करना पड़ रहा है। एग्जिट पोल, छत्तीगढ़ की तरह, एक कड़ी टक्कर होने की ओर इशारा कर रहे हैं, जहां कोई भी पार्टी जीत दर्ज कर सकती है। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे भाजपा अपना दावा ठोंक सके। यदि यह चुनाव भाजपा के हाथ से निकलता है तो यह 2019 के आम चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा। उम्मींद की जा रही है कि 11 दिसंबर को जब जनता का फैसला सामने आएगा तो भाजपा की नींद उड़ जाएगी।
कुल सीटें: 230
बहुमत: 116
व्यक्तिगत एग्जिट पोलों के विभिन्न परिणाम निम्न हैं:
मीडिया | भाजपा | कांग्रेस | बसपा | अन्य |
एबीपी सीएसडीएस | 94 | 126 | 0 | 10 |
रिपब्लिक टीवी – सी वोटर | 90-106 | 110-126 | 0 | 6-22 |
इंडिया टुडे एक्सिस | 102-120 | 104-122 | 1-3 | 3-8 |
इंडिया टीवी – सीएनएक्स | 122-130 | 86-92 | 4-8 | 8-10 |
रिपब्लिक जन की बात | 108-128 | 95-115 | 0 | 7 |
टाइम्स नाउ – सीएनएक्स | 126 | 89 | 6 | 9 |
समाचार 24 – पेस | 103 | 125 | 0 | 2 |
न्यूज 24 – पेस | 106 | 112 | 4 | 8 |
मैप्स ऑफ इंडिया | 111 | 111 | – | 8 |
2013 में, भाजपा ने 44.88% वोट शेयर के साथ 165 सीटें जीती थी जो कांग्रेस की तुलना बहुत अधिक था, क्योंकि कांग्रेस ने 36.38% वोट शेयर के साथ महज 58 सीटें ही अपने नाम कर पाईं थी। इस बार करीबी प्रतियोगिता मौजूदा मुख्यमंत्री और भाजपा दोनों के लिए लोकप्रियता में बड़ी कमी की ओर इशारा करती है।
तो, राज्य में सत्ताधारी पार्टी को बदलने के बारे में जनता ने क्या सोचा और भाजपा 2013 की तरह एक बार फिर से अपने प्रदर्शन को दोहरा क्यों नहीं पाई? इसके कई सारे उत्तर मतदाताओं के जहन में हैं।
छत्तीसगढ़ की तरह, मध्य प्रदेश मुख्य रूप से एक कृषि राज्य है। जहां पर भारी संख्या में ऐसे लोग रहते हैं जो अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि पर ही निर्भर हैं। खराब मॉनसून और कम कृषि आय से कई किसानों ने आत्महत्या कर ली और कई विरोध प्रदर्शन हुए। पूरे राज्य में लोग सत्तारूढ़ पार्टी को इसका दोषी मान रहे थे, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान इसका कोई हल ढूंढ़ पाने में कामयाब नहीं हो पाए।
राजधानी में दल-नीति के विपरीत, आम आदमी विमुद्रीकरण से प्रभावित हुआ है। युवाओं के लिए बढ़ती कीमतों और नौकरियों की कमी ने मुख्यमंत्री की, तीन बार पद पर बरकरार रहने की उम्मीद पर भी पानी फेर दिया है।
इसलिए 2019 के चुनाव के लिए भाजपा को चिंतित होना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस गठबंधन करने में कामयाब रही है जबकि भाजपा गठबंधन करने के लिए सक्षम नहीं है। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी के करिश्माई नेता होने बावजूद भी लोगों की धारणा पर खरे न उतरने की विफलता ने 2019 के आम चुनावों में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित किया है।
कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए किसी निश्चित उम्मीदवार की घोषणा न किए जाने की वजह से भाजपा मुखरित रही है और कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में तीन नाम – कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह कांग्रेस के लिए बहुत फायदेमंद रहे हैं। भाजपा ने कांग्रेस पार्टी में आपसी मतभेद बनाने की भी कोशिश की, लेकिन एग्जिट पोलों के संभावित परिणामों का संकेत है कि कांग्रेस, भाजपा से अधिक समेकित पार्टी है अन्यथा इनके नतीजों में इतनी नजदीकी नहीं होती।
व्यापम विवाद, सत्तारूढ़ दल पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला एक और मुद्दा है जो लोगों के लिए कोई भूलने वाला विषय नहीं है। युवा, शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ बिना किसी स्पष्ट परिणाम के होने वाली विस्तारित जांच और वाद-विवाद से परेशान हैं। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे का फायदा उठाते हुए, 2018 के चुनावों में काफी अच्छा लाभ कमाया है और हो सकता है कि कांग्रेस 2018 की रन-अप हो। जो कुछ भी 11 दिसंबर को सबके सामने आ जाएगा।
मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम से अन्य राज्यों के चुनाव पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ यह 2019 के आम चुनावों को भी बहुत प्रभावित करेगा।
भाजपा के लिए, अब देखना यह है कि क्या 2019 में ब्रांड मोदी अपनी शान बरकरार रख पाएंगे या 2019 में भी कोई अचंभा उन्हें ले डूबेगा।
संदर्भः