क्या मिजोरम में दिखेगी त्रिशंकु विधानसभा?
मिजोरम विधानसभा के लोगों ने 209 उम्मीदवारों में से 40 प्रतिनिधियों का चयन करने के लिए 28 नवंबर 2018 को मतदान किया था। परिणाम 11 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे। पूर्वोत्तर राज्य अपने लोकतंत्र को गंभीरता से लेता है, और 80% से अधिक लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं।
लाल थान्हावला की अगुवाई वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 2008 से दो बार लगातार सत्ता में है और मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) पार्टी के पूर्व प्रतिद्वंद्वी मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा से एक मजबूत विरोधी सत्ता के रुप में सामना कर रही है। मिजोरम की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए, भाजपा ने 40 में से 39 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा है।
मतदान के एग्जिट पोल के अनुसार ज़ोरमथांगा की नेतृत्व वाली एमएनएफ पार्टी की सत्ता में वापसी करने की उम्मीद है, लेकिन कांग्रेस और एमएनएफ के संभावित नतीजों में काफी नजदीकी है जिससे ऐसा होने की भी संभावना है कि इन दोनों पार्टियों की टक्कर में सत्ता किसी अन्य पार्टी के हाथों लग जाए।
कुल सीटेः 40
बहुमत: 21
व्यक्तिगत एग्जिट पोल के विभिन्न परिणाम निम्न हैं:
मीडिया | कांग्रेस | एमएनएफ | अन्य |
टाइम्स नाउ-सीएनएक्स | 16 | 18 | 6 |
रिपब्लिक टीवी- सीवोटर | 14-18 | 16-20 | 3-10 |
मैप्स ऑफ इंडिया | 16 | 16 | 8 |
2008 में, कांग्रेस ने 40 सीटों में से 32 सीटें जीती थी और ज़ोरमथांगा की एमएनएफ को काफी सीटों से हार का सामना करना पड़ा था तथा इसे मात्र 3 सीटें ही प्राप्त हो सकी थीं। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने 40 में से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी और एमएनएफ को 5 सीटें प्राप्त हुईं थीं। परन्तु, 2018 के चुनाव में, ऐसा लग रहा है कि लाल थान्हावाला की नेतृत्व वाली कांग्रेस को विपरीत परिस्थितयों का सामना करना पड़ रहा और संभावित रूप से ज़ोरमथांगा की पार्टी बड़ी कुर्सी पर बैठकर एक बड़ा शॉट दे रही थी।
त्रिपुरा में शरणार्थी शिविरों में 11,987 ब्रू मतदाता (त्रिपुरा का एक अनुसूचित जनजातीय समुदाय है जो पहले मिजोरम में रहता था) निवास करते हैं, जो किसी भी पार्टी की गणना को खराब कर सकते हैं?
1997 में, जातीय हिंसा ने 30,000 से अधिक ब्रू समुदाय के सदस्यों को मिजोरम से भागने और त्रिपुरा में आश्रय लेने के लिए मजबूर किया था। इन ब्रू समुदाय के 30,000 सदस्यों को अभी हाल ही में वोटिंग का अधिकार मिला है, जिनमें से 11,987 सदस्य मिजोरम के मतदाता हैं। इस बार इन मतदाताओं ने भी मतदान किया है जिससे चुनाव परिणाम कांग्रेस और एमएनएफ में से किसी की ओर भी मुड़ सकता है।
मिजोरम राज्य देश के सबसे तेजी से विकसित हो रहे राज्यों में से एक है और यहाँ साक्षरता दर भी काफी अच्छी है लेकिन फिर भी राज्य के बुनियादी ढांचे में निवेश की कमी है और नई नौकरियों का भी निर्माण नहीं हो रहा है। इसके अतिरिक्त, राज्य शराब की समस्या से भी ग्रसित है। निषेध मतदान का एक संवेदनशील मुद्दा है जिसमें लगभग सभी पार्टियां समर्थन में या कुल प्रतिबंध के खिलाफ पद ग्रहण करती हैं। एमएनएफ और जेडपीएम जैसी पार्टियों ने मिजोरम राज्य के लोगों से वादा किया है कि यदि वे उहें वोट करते हैं तो वे राज्य को शराब निषेध राज्य के रुप में हटा देंगें और इसे हटाने के लिए एमएलपीसी एक्ट – 2014 को लागू करेंगे, जो शराब की दुकानों को फिर से चलाने की अनुमति देगा।
11 दिसंबर को ही पता चलेगा कि लोगों का रूझान किस तरफ है।
संदर्भः