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भारत के 45 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में दीपक मिश्रा को किया गया नियुक्त

August 11, 2017


Dipak-Misra-hindiदीपक मिश्रा को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा 45 वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में नियुक्त किया गया है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने ही सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच (पीठ) का नेतृत्व किया था जिसने दिल्ली में होने वाले सामूहिक बलात्कार के चार आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। यह उस बेंच (पीठ) का भी एक हिस्सा रह चुके हैं जिसने थियेटरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान बजाने की बात कही थी। वास्तव में, न्यायाधीश मिश्रा अपने पूरे कैरियर के दौरान उन मामलों को निपटाने में सफल रहे जिन पर हमेशा जनता के द्वारा अधिक ध्यान दिया गया है। न्यायाधीश मिश्रा भारत के सर्वोच्च न्यायिक निकाय में हमेशा सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश भी बनते हुए आ रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदग्रहण

न्यायाधीश मिश्रा वर्तमान में सीजेआई के न्यायमूर्ति जेएस खेहर का पद ग्रहण करेंगे। न्यायामूर्ति खेहर के रिटायर होने के अगले दिन, 28 अगस्त को वह पद ग्रहण करेंगे और 13 से 14 महीनों के लिए अपनी सेवा प्रदान करेंगे। न्यायाधीश मिश्रा 27 अगस्त को स्वयं अपनी शपथ ग्रहण करेंगे।

मिश्रा उड़ीसा उच्च न्यायालय और ट्रिब्यूनल में कई बड़े मामलों के संबंध में अभ्यास कर रहे हैं, इन मामलों का नीचे उल्लेख किया जा सकता है-

  • संवैधानिक मामले
  • नागरिक से संबंधित मामले
  • अपराधी से संबंधित मामले
  • राजस्व से संबंधित मामले
  • सेवा (सर्विस) से संबंधित मामले
  • बिक्री कर से संबंधिक मामले

इन्होंने उड़ीसा उच्च न्यायालय और ट्रिब्यूनल में अपने कैरियर की शुरूआत की थी इसके बाद इन्हें उड़ीसा उच्च न्यायालय की बेंच (पीठ) में पदोन्नत किया गया था। इन्होंने एक वकील के रूप में 14 जनवरी 1977 को अपने कैरियर की शुरूआत की। जनवरी 1996 में भी मिश्रा ने उड़ीसा उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में अपनी सेवा प्रदान की थी।

प्रसिद्ध शब्द

“कोई भी विचाराधीन फैसला या कैदी कानूनी सहायता के बिना नहीं रहेगा। प्रत्येक मामले में एक मानव का चेहरा छिपा होता है” यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मिश्रा की सबसे प्रसिद्ध टिप्पणियों में से एक है। केन्द्र सरकार ने 8 अगस्त को मिश्रा को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिए मंजूरी दे दी थी। उम्मीद की जा रही है कि वह 2 अक्टूबर 2018 तक इस पद पर तैनात रहेंगे। न्यायामूर्ति मिश्रा को 10 अक्टूबर 2011 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत (प्रमोट) किया गया था। उड़ीसा उच्च न्यायालय में कार्य करने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अपनी सेवा प्रदान की।

यहाँ पर दिसंबर 1997 में वह एक स्थायी न्यायाधीश बन गए थे और पटना उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के रूप में 2009 में नियुक्त होने से पहले तक इसी पद पर कार्य किया था। बाद में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया। इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवा प्रदान की, इसमें इन्होंने सामान्य नागरिकों के कल्याण और लाभ के लिए एक कार्यक्रम की शुरूआत की। कार्यक्रम के अनुसार, राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण का कार्यालय मुकदमे बाजी के लिए प्रदान कर रही सेवाओँ का केन्द्र (हब) बन गया है ताकि वह मामलों की स्थिति और न्यायालय के कागजों का सही उपयोग करने के लिए जरूरी कानूनी सहायता प्राप्त कर सकें।

मुंबई सीरियल ब्लास्ट

इस विशेष मामले में नरमी से बात करने वाले न्यायाधीश की राष्ट्रीय स्तर पर गिनती की गई और मामले के महत्व के हिसाब से ही प्रदान किये गये फैसले के लिए धन्यवाद किया गया। वह फाँसी की सजा पाए हुए याकूब मेमन की फाँसी के अनुरोध पर सहमत हो गये थे और उसे उन्होंने खुले न्यायालय में सूचीबद्ध किया। वह 29 जुलाई को रात में फाँसी के समय पर सहमत हुए और एक बेंच का नेतृत्व किया जो फाँसी की कार्यवाई पर विस्तृत रूप से सुनवाई करना चाहती थी। मेमन की याचिका को अस्वीकार करके 30 जुलाई को फाँसी दे दी गई थी।