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क्या विमुद्रीकरण द्वारा अर्थव्यवस्था से काले धन की प्राप्ति हुई है?

September 1, 2017


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क्या विमुद्रीकरण द्वारा अर्थव्यवस्था से काले धन की प्राप्ति हुई है?

पिछले साल 8 नवंबर 2016 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में अब तक देखे गए सबसे बड़े विमुद्रीकरण कार्यक्रम का आरंभ किया था। प्रधानमंत्री ने “ब्लैक मनी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक में”, 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को कानूनी निविदा (वैध मुद्रा) के रूप में वापस कर लिया था। यह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया एक अचानक और कठोर कदम था। बहुत सी परेशानियों को झेलने के बावजूद भी भारत के लोग इस बात से प्रसन्न थे कि चलो मोदी द्वारा उठाए गए इस कदम से साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था का प्रस्तुतीकरण होगा।

आरबीआई की हालिया रिपोर्ट और इसका मतलब क्या है

भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक देश के केंद्रीय बैंक में, पिछले साल 1000 और 500 रुपये के 98.6 प्रतिशत पुराने (मुद्राचलन में लगभग 1,716.50 करोड़ नोटों की संख्या) नोटों का विमुद्रीकरण किया गया था, उन नोटों की वापसी जून 2017 के अंत तक हो गई है। वित्त राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने पहले ही संसद को सूचित कर दिया था कि जो 15.44 खरब डॉलर की राशि प्रतिबंधित नोटों के रूप में प्रचलन में थी, जिसमें से अब तक 15.28 खरब डालर राशि की प्राप्ति हो चुकी है।

यह विमुद्रीकरण अभियान, देश के विभिन्न हिस्सों में भारी मात्रा में अवैध नकदी के रूप में छिपाए हुए नोटों को प्रचलन में लाने के लिए चलाया गया था। यहाँ तक ​​कि अगर हम भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्राप्त नकली नोटों की छोटी सी राशि के बारे में भी विचार करते हैं, तो ऐसा लगता है कि यह पूरी मेहनत बेकार है। अब भी ऐसा महसूस होता है कि विमुद्रीकरण केवल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.1 प्रतिशत का काला धन निकालने में सक्षम हुआ है। हालांकि, नकदी में कमी के कारण अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत कम हो गई है। क्या यह पूरा अभियान श्रेय के काबिल था, नमो सरकार के आलोचकों से पूछिए।

अब ​​काले धन की प्रप्ति संचयकर्ता को किसी अन्य सामित्व (एक तरह की जायजात) में लगाते समय होती है या यूँ कहें कि जब संचयकर्ता अपने काले धन को वैध रूप से नई मुद्रा में परिवर्तित करने के लिए किसी रास्ते की तलाश कर रहा होता है, तब इसकी प्राप्ति होती है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष की आलोचनाओं के बावजूद आवेगपूर्ण ढंग से विमुद्रीकरण अभियान पर जोर दिया था। जेटली ने अभियान को एक बड़ी सफलता बताते हुए कहा कि “विमुद्रीकरण का उद्देश्य पैसों को जब्त करना नहीं था”। उन्होंने कहा कि आरबीआई के विवरणों से पता चला है कि नकदी के प्रचलन में 17 प्रतिशत कमी आई है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि डिजिटल करेंसी या इलेक्ट्रॉनिक मनी (विभिन्न ऐप्सो के माध्यम) का उपयोग अधिक मात्रा में हो रहा है। नकद लेन-देन कम करने का फायदा यह है कि आईटी विभाग द्वारा भुगतान के अन्य सभी साधनों, जिस जगह काले धन का प्रचलन हो रहा है,उन सभी का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

कर चोर

जब तक हमें विमुद्रीकरण से पुराने 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों का लाभ मिलता रहा, सरकार तब तक निश्चित रूप से 18 लाख कर चोरी करने वालों की पहचान करने में सक्षम रही है। आयकर विभाग ने सूचना दी कि जब ये लोग विमुद्रीकरण अभियान के समय अपनी नकदी जमा कर रहे थे, तो यह लोग अपनी आईटी प्रोफाइल के अनुरूप नहीं थे। इन लोगों को जमा राशि की उचित तरीके से व्याख्या करने के लिए भी सूचित किया गया था। कर विभाग को 13.33 लाख खातों में 2.89 लाख करोड़ रुपये की जमा राशि के साथ 9.27 लाख जवाब मिले हैं। ये सभी लोग अब आईटी विभाग के स्कैनर की गिरफ्त में आ गए हैं। विभाग के नए डेटा एनालिटिक्स सिस्टम द्वारा 5.56 लाख लोगों की पहचान की गई है। इस सिस्टम की बदौलत हम कर विभाग के द्वारा जारी नोटिस पर प्रतिक्रिया न देने वाले कम से कम 1 लाख लोगों के खिलाफ कार्रवाई को देख सकते हैं। हालांकि, पिछले वित्तीय वर्ष के लिए दायर आईटी रिटर्न की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका अर्थ यह है कि बहुत से लोग अब टैक्समेन (टैक्स अधीक्षक) की निगरानी में हैं और इससे काले धन के प्रचलन की संभानाएं भी कम होगीं।

खर्च में वृद्धि

विमुद्रीकरण अभियान के नतीजों पर चर्चा करते हुए, हमें यह भी उल्लेख करना होगा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा विमुद्रीकरण के बाद बड़े पैमाने पर मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि 500 रुपए और 2000 रुपए के नए नोटों की छपाई की लागत लगभग 7,965 करोड़ रुपये आँकी गई है। यह लागत पिछले वर्ष नोटों की छपाई के लिए खर्च की गई धनराशि की तुलना में लगभग दोगुनी है (पिछले वर्ष के अनुमान के मुताबिक करीब 3,421 करोड़ रुपये)। हम अभी तक जल्द ही प्रचलन में आने वाले 200 रुपए और 50 रुपए के नए नोटों की छपाई करने की लागत को जानने में असमर्थ हैं।

देश में काले धन की मात्रा को कम करने में विमुद्रीकरण अधिक सफल नहीं हुआ है, लेकिन यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए सरकार के लिए एक बड़ी राजनैतिक सफलता रही है। आधुनिक समय में विमुद्रीकरण को बड़े पैमाने पर काले धन का विरोध करने वाले सबसे बड़े कार्यों में से एक माना जाता है – एक धारणा यह है कि देश के क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में भी गिरावट आने की संभावना है।