खलनायक – बॉलीवुड के बदलते चेहरे
वह चलती गाड़ी में लड़की को बचाने के लिए, निडरता से कूद जाता है। वह एक तरफ से अपने मुक्के को घुमाते हुए अपराधी के चेहरे पर मारता है तो दूसरी तरफ वह दूसरे अपराधी को मारता है जो कार से बाहर हो जाता है। अंत में, वह लड़की को बचा लेता है और अपराधियों को मार डालता है। वह हमारी बॉलीवुड मूवी का नायक है या फिर उसकी एक ऐसी तस्वीर है जिसने भारतीय सिनेमा के बड़े हिस्से को लेकर हमारे दिमाग पर कब्जा कर लिया है। हमारा सिनेमा जल्दी ही आगे बढ़ गया है और साथ ही साथ इसके अवलोकन में भी व्रद्धि हुई है। अब ऐसे पात्र नहीं होते जो अपने चरम चोर पर होते हैं। बॉलीवुड ने नई ऊंचाइयों को छुआ है और इस खलनायक विरोधी फिल्म उद्योग ने “ग्रे कैरेक्टर्स” को भी अपनाया है।
कालानुक्रम में:
किस्मत (1943)
अशोक कुमार द्ववारा अभिनीत, इस फिल्म ने बॉलीवुड की पहली खलनायक फिल्म होने के नाते “नायक” प्रधान पात्रों को ठहरा दिया। अशोक कुमार द्वारा अभिनीत यह प्रतिष्ठित फिल्म एक युवा चोर की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है। यह पहली फिल्म थी जिसकी मुख्यधारा में एक”नायक” की भूमिका निभाने वाले को खलनायक की भूमिका के रूप में देखा गया था। अपने प्रशंसकों को चौंकाने वाली प्रतिक्रियाओं के बावजूद, यह फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट थी। यह पहली बॉलीवुड फिल्म थी जिसने “करोड़ के क्लब” को छुआ था, जिसमें एक करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। किस्मत फिल्म तीन वर्षों तक लगातार स्क्रीन पर छाई रही, और यह अपने समय में एक रिकॉर्ड कायम कर रही थी।
मदर इंडिया (1957)
यद्यपि इस सूची में एक और नाम स्पष्ट है, मदर इंडिया, जिसको हमेशा अपने समय की प्रतिष्ठित एंटी-हीरो फिल्म के रूप में भी देखा गया है। इस फिल्म में सुनील दत्त, एक ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने पड़ोसन जैसी फिल्मों में अभिनय करके दर्शकों के दिल जीते हैं, ने नकारात्मक भूमिका निभाई थी। यहां, इन्होंने एक गांव में डाकू की भूमिका निभाई और इस फिल्म ने दर्शकों का दिल जीता और उन्होंने चारों ओर से प्रशंसा प्राप्त की। इसके बाद सुनील दत्त ने36 घंटे (1974), मुझे जीने दो (1963) जैसी फिल्मों में नकारात्मक पात्र की भूमिका निभायी।
गंगा जमुना (1961)
गंगा जमुना दिलीप कुमार द्वारा अभिनीत फिल्म है इस फिल्म ने ‘दो भाइयों के अपराध के खिलाफ लड़ने’ की प्रवृत्ति को ट्रेंड में लाया। फिल्म में दिलीप कुमार द्वारा, गंगा की भूमिका निभाई गई है जिसमें बाद में वह उस गांव का एक डाकू बन जाता है, जो आने वाली मुसीबतों और अन्याय का खात्मा करता है। उनके भाई, जमुना जो पुलिस बल में शामिल हो जाता है, जिसके कारण इन दोनों मुख्य किरदारों के बीच टकराव होता है। इस फिल्म ने दीवार, अमर अकबर एंथनी आदि जैसी फिल्मों को एक थीम देकर उनको लोकप्रिय बनाया।
शोले (1975)
70 के दशक का समय हमारे सिनेमा के लिए एक प्रतिष्ठित समय था। जय-वीरू की जोड़ी ने दर्शकों का दिल जीता और गब्बर सिंह (अमजद खान) ने इसमें एक डाकू की भूमिका निभाकर दर्शकों को डराया। जब-जब सिनेमा की बात आएगी देश के लोग इस फिल्म में फिल्माए गए डायलाग “कितने आदमी थे” को हमेशा याद करेंगे। गब्बर सिंह ने हमारे सिनेमा देखने वाले दर्शकों को एक खलनायक दिया, जो एक नायक की प्रतिभा को बढ़ाने के लिए एक सहकलाकार से कहीं अधिक था।
डॉन (1978)
अमिताभ बच्चन ने फिल्म डॉन में एक नकारात्मक अभिनेता (अंरवर्ल्ड डॉन) की भूमिका निभाई है और इस फिल्म ने अमिताभ को सुर्खियों में ला दिया। फिल्म अब तक की सबसे सफल फिल्मों में से है। बॉलीवुड के बड़े पर्दे पर इस फिल्म के रीमेक को देखा गया है। इस रीमेक फिल्म के स्टार शाहरुख खान प्रमुख पात्र की भूमिका में हैं।
मि. इंडिया (1987)
फिल्म के नायक के बाद, हम सभी ने फिल्म मि. इंडिया का एक डायलॉग “मुगैम्बो खुश हुआ” जो कि हम सबने सुना है। यह फिल्म भारत को अपना एक ‘सुपरहीरो’ देने के साथ-साथ एक ‘सुपरविलेन’ (खलनायक) देने के लिए काफी प्रसिद्ध हुई थी। इस फिल्म में अमरीश पुरी द्वारा एक खलनायक की भूमिका में मुगैम्बो का रोल फिल्माया गया था । इस फिल्म ने दर्शकों का दिल जीता और लगातार ऐसा करने में सफल रही।
सत्या (1998)
फिल्म सत्या को समीक्षकों द्वारा राम गोपाल वर्मा की बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है, इस फिल्म ने बॉलीवुड में खुद के लिए एक जगह बनाई है। यह फिल्म भारत में संगठित अपराधों के बारे में है, इस फिल्म का कथानक सौरभ शुक्ला और अनुराग कश्यप ने लिखा था। यह फिल्म अनुराग कश्यप और मनोज बाजपेयी के लिए उनके कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कारगर साबित हुई (मनोज बाजपेई, जिन्होंने फिल्म में भिकु म्हात्रे का किरदार निभाया था)। फिल्म को अपने दशक की सबसे प्रभावशाली फिल्मों में से एक माना जाता है और 2000 के दशक में सीक्वल्स बनाने के लिए यह प्रेरणादायक रही है।
ओमकारा (2006)
यह फिल्म विलियम शेक्सपियर की कृति ओथेलो का आधुनिक सिनेरूपांतरण है जिसे बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है। फिल्म को राजनीतिक अंडरप्ले के शानदार तरीके से फिल्माया गया है, ईश्वरत्यागी उर्फ’लंगडा’ त्यागी जो अपने किरदार के माध्यम से दर्शको का खून खौलाने में सक्षम हैं। सैफ अली खान द्वारा इस भूमिका को निभाया गया (सराहनीय रूप से) – एक ऐसे अभिनेता जिनका नाम कई “सकारात्मक” पात्रों को निभाने के लिए जाना जाता है। विशाल भारद्वाज ने एक शानदार फिल्म बनायी जिसने आसानी से पैरलल सिनेमा (मुख्यधारा से हटकर) और मुख्यधारा के सिनेमा को एक साथ लाया।
कमीने (2009)
शाहिद कपूर अभिनीत, यह फिल्म दो जुड़वां बच्चों के बीच होने वाले मुकाबले की एक कहानी है। आलोचकों से प्रशंसा प्राप्त करते हुए, इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया। शाहिद, एक ऐसे अभिनेता जो आमतौर पर सकारात्मक पात्रों को निभाते हैं। शाहिद कपूर ने इस फिल्म के नकारात्मक किरदार को पर्दे पर अच्छी तरह से निभाया है। इस फिल्म में यथार्थवादी पात्रों की सराहना की गई थी और यह बताया गया अच्छाई और बुराई का कोई अंत नहीं होता और हमें इन दोनों के बीच के अंतर को समझना चाहिए|
गैंग्स ऑफ वासेपुर (2012)
गैंग्स आफ वासेपुर फिल्म को अक्सर ओमकारा फिल्म के समान ही देखा जाता है, फिल्म को आधुनिक दिनों की कल्ट फिल्म माना जाता है। मुख्यधारा की फिल्मों के समान पर्याप्त कलेक्शन न होने के बावजूद, गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म को काफी दर्शक और बेहद प्रशंसा प्राप्त हुई है। मनोज बाजपेयी जिन्होंने इस फिल्म में प्रसिद्ध संवादों के साथ खलनायक सरदार खान की भूमिका निभाई है, यह एक ऐसा खलनायक (किरदार) है जिससे आप घर्णा नहीं कर सकते हैं।
हैदर (2014)
हैदर फिल्म शेक्सपियर की कृति हेमलेट के जीवन पर आधारित है। यह फिल्म कर्फ्यू नाइट का भी एक रूपांतरण है, जोबशरत पीर द्वारा 1995 के कश्मीर संघर्षों का एक संस्मरण है। यह हैदर (शाहिद कपूर) के जीवन पर आधारित है, एक ऐसा आदमी अपने पिता की तलाश में निकलता है और अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है। यह फिल्म मानव जीवन और हमारी क्षमताओं के गहरे पक्षों से संबंधित है।
पद्मवत जैसी नई फिल्मों की बड़ी स्क्रीन पर, बड़ी सफलता के साथ, खिलजी (रणवीर सिंह) जैसे किरदारों को दिखाया जा रहा है, हमने सिनेमा के प्रति दर्शकों की बदलती धारणा को देखा है। नायकों को जितना “नायकों” के रूप में अधिक पसंद किया गया उससे कहीं ज्यादा वे खलनायक (एंटी हीरो) के रूप में उभरकर सामने आए हैं। 1943 में फिल्म किस्मत द्वारा शुरू हुआ यह एंटी हीरो का सफर, अब तक की पद्मावत जैसी फिल्मों के साथ आगे बढ़ा और यह जमाना खलनायकों (एंटी हीरो) के उठान पर है।