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जॉन कैरी ने दी भारत-अमेरिका के कूटनीतिक रिश्तों को मजबूती

August 31, 2016


जॉन कैरी ने दी भारत-अमेरिका के कूटनीतिक रिश्तों को मजबूती

जॉन कैरी ने दी भारत-अमेरिका के कूटनीतिक रिश्तों को मजबूती

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी इस हफ्ते नई दिल्ली आए। उनकी यात्रा कई मायनों में यादगार हो गई है। कभी न भुलाई जाने वाली यात्राओं में से एक। बारिश की वजह से सड़कों पर पानी भर गया था। कैरी को ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा। हालात इतने बुरे थे कि एक वक्त तो ऐसा लगा कि वे अपना लाइफ जैकेट ही थामने वाले हैं!

कैरी ने दिल्ली की पानी से भरी शरारती सड़कों, गड्ढों और उबड़-खाबड़ रास्तों का सामना किया। उनका काफिला जब एयरपोर्ट से पॉश एसपी मार्ग स्थित उनके होटल को जाने को निकला तो रास्ते में जाम लग गया। अपना सीना पीटकर ‘सारे जहां से अच्छा कहने वाले’ क्षेत्रीय सुपरपावर के लिए यह शर्मिंदगी से भरे पल थे।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना ही क्या। राज्य सरकार और निष्क्रिय दिल्ली महानगर निगम (एमसीडी) पर नियंत्रण हासिल करने की उनकी कोशिशें अब तक नाकाम ही साबित हुई हैं। दिल्ली की रोड ड्रेनेज प्रणाली और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर उनका कोई जोर ही नहीं है।

अफरा-तफरी भरे स्वागत में कैरी ने भारत की गर्वित राजधानी की तस्वीर और वास्तविकता के बीच के अंतर को खुद महसूस किया। यह कहानी कई दशकों में बार-बार दोहराई जा चुकी है। सुधार के वादे भी जस के तस ही हैं। जितना काम नहीं हुआ, उससे ज्यादा बार तो वादे सुने जा चुके हैं।

यदि जॉन कैरी दिल्ली का ‘चलता है’ एटीट्यूड देखते तो उन्हें पता चलता कि भारत के आम लोग क्या सोचते हैं। लेकिन आईआईटी दिल्ली में बातचीत के दौरान उन्होंने ‘जुगाड़’ में लोगों की रुचि भी देखी। शहर में जगह-जगह पानी भरा था। इसके बाद भी लोगों, खासकर छात्रों की वहां भीड़ जुटी थी। कैरी ने मजाकिया लहजे में जिक्र भी किया। पूछ लिया कि क्या वे लोग बोट्स के जरिए कार्यक्रम में पहुंचे हैं।

दिल्ली के पास हर तरह की टेक्नोलॉजी उपलब्ध है। इसके बाद भी ऐसा होना, शहर के लिए शर्म की बात है। इससे साफ दिखाई देता है कि शहर की प्राथमिकता में मानसून के दौरान सड़कों पर भरने वाला पानी है ही नहीं। कोरी बयानबाजी के सिवा कुछ नहीं किया गया। मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने ही बुने जाल में लेफ्टिनेंट गवर्नर और केंद्र सरकार के खिलाफ उलझे पड़े हैं। उनका ध्यान दिल्ली पर है ही नहीं, जिसके ज्यादातर हिस्से पानी में डूबने की स्थिति में है।

ऐसे में प्रिय जॉन, हम अपनी आजादी के 70वें वर्ष में, हाथ जोड़कर और मुस्कराकर सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि “अतिथि देवो भव,” भले ही यह कहते हुए हम घुटनों तक पानी में क्यों न खड़े हो।

धर्मनिरपेक्षता रूपी भारत की गहरी जड़ों को करीब से देखने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री गौरीशंकर मंदिर, गुरुद्वारा साहिब और जामा मस्जिद जाने वाले थे। लेकिन इनके रास्तों में पानी भरा होने की वजह से उन्हें यह कार्यक्रम टालने पड़े।

भारत-अमेरिकी रिश्ते चले उत्तर की ओर

भारत तेजी से अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक सहयोगी के तौर पर उभर रहा है। दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय विचार-विमर्श और करारों से यह बात साफ होती है।
जिस समय जॉन कैरी भारत की यात्रा पर थे, हमारे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अमेरिका में थे और अमेरिकी सरकार से महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम एग्रीमेंट (एलआईएमओए) पर हस्ताक्षर कर रहे थे। यह दोनों देशों को एक-दूसरे के लॉजिस्टिक्स का इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। साथ ही दोनों देश एक-दूसरे की इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट सर्विसेस का भी इस्तेमाल कर सकेंगे।

यह एग्रीमेंट भारत की कूटनीतिक नीति में बदलाव का स्पष्ट संकेत है। अब तक हम गुटनिरपेक्ष थे। किसी बड़े डिफेंस ब्लॉक या अलायंस से दूर ही रहते थे। भारत यह भी समझ रहा है कि पूरी दुनिया में नया शक्ति संतुलन स्थापित हो रहा है। एलआईएमओए के जरिए भारत को पूरी दुनिया में अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में मदद मिलेगी। साथ ही अमेरिका की हिंद महासागर क्षेत्र, मध्य एशिया और मध्य-पूर्व में भी ताकत बढ़ेगी।

साझा हितों और चिंताओं पर करेंगे काम

दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के सामने कई साझा हित और चिंताएं हैं। दोनों देश उन पर गंभीरता से काम कर रहे हैं।

इस समय, अफगानिस्तान न केवल भारत बल्कि अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। अमेरिका अपनी फौजों को जल्द से जल्द अफगानिस्तान से निकालना चाहता है। लेकिन उस देश में एक बार फिर अराजकता की स्थिति बनने का डर उसे सता रहा है। उसे डर है कि यदि उसने अफगानिस्तान छोड़ा तो फिर हालात पहले जैसे हो जाएंगे।

दूसरी ओर भारत के अफगानिस्तान के साथ ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं। अमेरिका का हस्तक्षेप खत्म होने के बाद की स्थिति में भारत चाहेगा कि अफगानिस्तान मजबूत बनकर उभरे। इतना ताकतवर बन जाए कि पाकिस्तान का प्रभाव उस पर न हो। पाकिस्तानी रिमोट से चलने वाले समूहों का अस्तित्व अफगानिस्तान में खत्म हो जाए।

अमेरिका के लिए भारत सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ही ऐसी फौज है जो चीन के खिलाफ खड़ी हो सकती है और उसके प्रभाव को रोक सकती है। बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन को गिलगिट-बाल्टीस्तान के रास्ते जोड़ने के लिए 46 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा रहा है। यह भारत के साथ-साथ ईरान और अमेरिका के लिए भी चिंताजनक है। इन सभी को दक्षिण और मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व से खतरा महसूस हो रहा है।

आतंकवाद एक वैश्विक चुनौती बना हुआ है। पाकिस्तान की छवि एक छद्म रूप से सरकार-प्रायोजित आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश के तौर पर है। यह भारत के साथ-साथ अमेरिका के हितों को भी प्रभावित कर रहा है।

भारत कई बार सबूतों के जरिए यह साबित कर चुका है कि जम्मू-कश्मीर (जेएंडके) में पाकिस्तान सीमापार से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। भारत की कोशिश रही है कि अमेरिका के जरिए पाकिस्तान पर दबाव डालकर जेएंडके में उसकी गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके।

अमेरिका भी इसी तरह जवाब दे रहा है। पाकिस्तान को उसने 700 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता का वादा किया था, लेकिन अब वह उसे पूरा करने में आनाकानी कर रहा है। साफ कह दिया है कि जब तक पाकिस्तान अपनी कार्रवाई से यह साबित नहीं कर देता कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है तब तक उसे मदद नहीं दी जा सकती। वह अफगानिस्तान और जेएंडके में आतंकियों को मदद करना बंद नहीं कर देता, तब तक उसे गंभीरता से नहीं लिया जाएगा।

जॉन कैरी की भारत यात्रा दोनों देशों के आपसी सहयोग से जुड़ी चुनौतियों और साझा हितों को पहचानने के लिए थी। इस यात्रा का महत्व इस बात से पता चलता है कि कैरी जी-20 मीट के लिए चीन जाने से पहले अपनी दो-दिवसीय भारत यात्रा पर आए।

दोस्ती दरकिनार, अमेरिका की भी चिंताएं हैं

यह कोई गुप्त बात नहीं रही कि भारत-अमेरिका के रिश्ते और मजबूत हो रहे हैं। लेकिन अमेरिका की चिंता भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण के बढ़ते मामलों और जाति के आधार पर होने वाला भेदभाव भी है।

अमेरिका अब तक कश्मीर घाटी के आंदोलन पर चुप है। लेकिन वह जम्मू-कश्मीर के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में मानव अधिकार उल्लंघनों के मामले में एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमर राइट्स वॉच के निष्कर्षों को लेकर गंभीर है।

बीफ पॉलिटिक्स को लेकर हिंसा की बढ़ती वारदातें भारत की छवि को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पर धक्का पहुंचा रही है। हकीकत तो यह है कि जॉन कैरी ने साफ-साफ कहा कि भारत को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सहयोग और प्रोत्साहन देना चाहिए। यह अमेरिका में लोगों के दिल के करीब का मसला है।

यदि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और समग्र राष्ट्र के तौर पर अपने सम्मान को कायम रखना है तो उसे घरेलू स्तर पर जल्द से जल्द एकजुटता दिखानी होगी और हिंसा की घटनाओं को खत्म करना होगा।

और जब केंद्र सरकार इस मसले का हल निकाल रही हो, हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से यह आशा कर सकते हैं कि वह दिल्ली में मानसून के दौरान सड़कों पर भरने वाले पानी की समस्या को दूर करेंगे। ताकि हम भी पैदल चलकर और आगे बढ़कर बोल सके- ‘अतिथि देवो भव’।