बिहार महाभारतः बीजेपी ने 22 यादव उम्मीदवार उतारकर जेडी(यू)-आरजेडी को उनके गढ़ों में दी चुनौती
बिहार की राजनीति से जाति को अलग नहीं किया जा सकता। कई बार तो जातिगत मुद्दे अन्य सभी मुद्दों को दरकिनार कर देते हैं। बीजेपी ने यह महसूस कर लिया है। यादव समुदाय राज्य की 14 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। यह समुदाय पारंपरिक रूप से आरजेडी-जेडी(यू) गठबंधन का मजबूत गढ़ रहा है। बीजेपी यादव वोटों को बांटकर नीतीश-लालू गठबंधन को मात देने की तैयारी कर रही है। इसी वजह से, बीजेपी ने कल जारी तीसरी सूची में 3 और यादव उम्मीदवारों को शामिल किया। इससे राज्य में बीजेपी के यादव उम्मीदवारों की संख्या बढ़कर 22 हो गई है। यह पहला मौका है, जब बीजेपी ने इतनी बड़ी संख्या में यादवों को अपना प्रत्याशी बनाया है। यह तीन उम्मीदवार हैं- फुलपारस से रामसुंदर यादव, गोविंदपुर से फुला देवी यादव और इस्लामपुर से बीरेंद्र गोपे। इसके साथ ही, बीजेपी के अमित शाह ने इन चुनावों को और रोचक बना दिया है। अब सभी निगाहें बीजेपी के इन 22 यादव उम्मीदवारों पर ही है।
एआईएमआईएम का गेम प्लान क्या है?
जब एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम समुदाय के साथ ही धर्मनिरपेक्ष धड़े के अन्य सदस्यों की सलाह को दरकिनार कर बिहार की जटिल राजनीति में कदम रखा था, तो कई विश्लेषकों ने सिर्फ यह ही सवाल पूछा था कि चुनावों को लेकर उनका गेमप्लान क्या है। वे बिहार की चुनावी राजनीति में क्यों दाखिल होना चाहते हैं, इसके पीछे उनकी मंशा क्या है? कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के कयास हैं कि महागठबंधन को कमजोर करने के लिए यह बीजेपी की दोधारी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अब बीजेपी ने 22 यादव उम्मीदवार उतारे हैं, जो यादव वोटों को बांटेंगे। वहीं ओवैसी आरजेडी-जेडी(यू) के मुस्लिम वोटबैंक को काट सकते हैं। बीजेपी ने पहले ही कोचधमन विधानसभा सीट से अब्दुल रहमान को टिकट देने की घोषणा कर दी है। इसे सांप्रदायिक सद्भाव की बीजेपी की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए। एक अन्य मुस्लिम उम्मीदवार की घोषणा पहले भी की गई थी। पुर्णिया जिले के आमर से सबा जफर को टिकट दिया गया है।
इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए यादव और मुस्लिम समुदाय मिलकर कुल वोटरों का 30 प्रतिशत बनाते हैं। इस समीकरण में कोई भी बिखराव होता है तो यह बीजेपी को फायदा ही पहुंचाएगा। ओवैसी ने निश्चित तौर पर इस मदद के बदले में अपने घर में पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए कोई समझौता किया होगा। ओवैसी को भी यह पता है कि यहां जो भी वे फायदा उठाएंगे, वे नए राज्यों में पार्टी के प्रवेश का रास्ता मजबूत करेगा।
नेपाल में नए संविधान के खिलाफ आंदोलन का बिहार चुनावों पर पड़ेगा असर
संसद में नए संविधान को पारित करने के बाद नेपाल में सड़कों पर उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाले अन्य समुदायों को खासी निराशा हुई है। इस वजह से नेपाल की सीमा पर लगे बिहार के इलाकों में कई लोग ऐसे हैं जिनके सीमा पार पारिवारिक और व्यापारिक रिश्ते हैं। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नेपाल के हिंसक प्रदर्शनों का असर बिहार के चुनावों पर नहीं होगा।
गया में इमामगंज में उदय नारायण चौधरी को चुनौती देंगे जीतन मांझी
हम के जीतन मांझी की जेडी(यू) के उदय नारायण चौधरी से दुश्मनी काफी पुरानी है। इसी वजह से मांझी ने बीजेपी से दूसरी सीट के तौर पर इमामगंज की सीट लेकर चौधरी को चुनौती देने का फैसला किया है। साल की शुरुआत में जब नीतीश और मांझी में सत्ता संघर्ष शुरू हुआ था, तब चौधरी ने ही विधानसभा स्पीकर के तौर पर मांझी के विधायकों पर प्रतिबंध लगा दिए थे। दोनों के बीच घमासान तगड़ा होने के आसार हैं। मांझी एक मूसर हैं, जबकि चौधरी पासी। दोनों ही महादलितों का सच्चा प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं। मांझी के लिए यह चुनाव आसान नहीं रहने वाला क्योंकि चौधरी छह बार से इस सीट पर बैठे हैं। उन्हें यहां बहुत कुछ नहीं करना है।
चर्चा में नेताः मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, आरजेडी (जन्म 4 जनवरी 1943)
मोहम्मद तस्लीमुद्दीन अररिया से मौजूदा सांसद है। वे पांच दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं। पंचायत स्तर से शुरू करते हुए तस्लीमुद्दीन ने सभी स्तरों पर काम किया है। सीमांचल में उनका व्यापक जनाधार है। इस इलाके के मुस्लिमबहुल विधानसभा क्षेत्र उन्हें लंबे अरसे से समर्थन दे रहे हैं।
बिहार की राजनीति में यह आम है कि कोई भी नेता कई-कई पार्टियों में रहा है। तस्लीमुद्दीन के साथ भी ऐसा ही है। वे सात बार विधायक और पांच बार सांसद रहे हैं। उनका अररिया, पुर्णिया, किशनगंज और कटिहार में जनाधार बहुत अच्छा है। 1998 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने आरजेडी के टिकट पर लड़ते हुए बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को हराया था। हालांकि, बाद में हुसैन से हारे भी और 2004 में फिर यह सीट जीत ली। उनका प्रभाव ही है कि 2014 के चुनावों में पूरे देश और बिहार में मोदी लहर के बावजूद अररिया के मौजूदा सांसद को हराकर उन्होंने जीत हासिल की। वे केंद्र में कृषि राज्यमंत्री, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक मामलों के राज्यमंत्री भी रहे हैं।
चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः पुर्णिया
2010 विधानसभा चुनाव परिणामः
- 2010 विधानसभा चुनाव विजेताः राज किशोर केशरी, बीजेपी
- जीत का अंतरः 15,5999; 11.83% कुल वैध मतों का
- निकटतम प्रतिद्वंद्वीः राम चरित्र यादव, कांग्रेस
- पुरुष वोटरः 73,738; महिला वोटरः 58,037; कुलः 1,31,847
- मतदान प्रतिशतः 60.86
- पुरुष उम्मीदवारः 13; महिला उम्मीदवारः 0
- मतदान केंद्रः 228