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लद्दाख में मिली 10,500 साल पुरानी कैम्पिंग साइट

August 21, 2016


लद्दाख में मिली 10,500 साल पुरानी कैम्पिंग साइट

लद्दाख में मिली 10,500 साल पुरानी कैम्पिंग साइट

हाल ही में रितिक रोशन की फिल्म रिलीज हुई है मोहेंजो दड़ो। फिल्म में सिंधु घाटी की सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व) और भारत के पुराने इतिहास का चित्रण किया गया है। एक तरह से पुराने दृश्य को परदे पर उतारने की कोशिश की गई है। इस फिल्म की वजह से ऐतिहासिक और पुरातत्व विरासतों को जानने की एक उत्सुकता सी जाग गई है। इसमें भी पिछले ही हफ्ते भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया है कि लद्दाख में 10,500 साल पुरानी कैम्पिंग साइट मिली है। यह चौंकाने वाला है कि लद्दाख में 14 हजार फीट की ऊंचाई पर प्राचीन भारतीय मनुष्यों की गतिविधियों, हड्डियां और कलात्मक वस्तुओं के अवशेष मिले हैं।

आकस्मिक खोज

एएसआई को यह कैम्पिंग साइट लद्दाख क्षेत्र में काराकोरम दर्रे के पास मिली है। यह जगह नुब्रा वैली में सासेर ला के रास्ते पर है। यह खोज एकाएक हुई। उस समय एएसआई के पुरातत्वविदों की टीम जॉइंट डायरेक्टर-जनरल डॉ. सिमद्री बी. ओटा के नेतृत्व में नुब्रा वैली में एक वेंटेज पॉइंट पर पहाड़ी और घाटी में खुदाई का काम कर रहे थे। करीब 22 किलोमीटर आगे, सासेर नदी के साथ की सड़क पर किसी निर्माण कार्य की वजह से खुदाई हुई थी। जब टीम वहां से गुजर रही थी तो वह नीचे से गड्ढे से निकाले गए मलबे को देखकर रुक गए। बारीकी से अध्ययन करने पर पता चला कि जली हुई सामग्री की सतत परतें वहां थी।

एएसआई टीम ने इसके बाद उस स्थान से जुटाए चारकोल के नमूनों को रेडियोकार्बन जांच के लिए अमेरिका के फ्लोरिडा में बीईटीए लैब को भेजा। रेडियोकार्बन जांच पुरातन वस्तुओं की उम्र को पता करने की एक प्रक्रिया का नाम है। इसमें रेडियोकार्बन का इस्तेमाल करते हुए जैविक सामग्री की डेटिंग की जाती है। जैविक सामग्री में रेडियोएक्टिव कार्बन आइसोटोप्स को जब कार्बन 14 डेटिंग प्रक्रिया में परखा जाता है, तब वह हर 5,370 साल में आधा हो जाता है। इससे किसी भी नमूने की उम्र तय करने में मदद मिलती है।

नतीजों ने एएसआई के पुरातत्वविदों को चकित कर दिया। लैब रिपोर्ट कहती है कि चारकोल सैम्पल 8500 बीसी (ईसा पूर्व) के हैं। मंत्रालय ने बयान में कहा- “नतीजा आया 8500 ईसा पूर्व (10,500 साल पहले)। यह तो कभी एएसआई ने भी नहीं सोचा था। वैज्ञानिक प्रक्रिया से जो तारीख सामने आई है, वह चौंकाने वाली है। इस क्षेत्र में इतनी पुरानी कोई सामग्री अब तक किसी को नहीं मिली थी।”

और खोज की जरूरत

फ्लोरिडा से आई खोज की अप्रत्याशित खबर ने पुरातत्वविदों को उत्साहित कर दिया है। डॉ. ओटा के साथ एएसआई के वरिष्ठ पुरातत्वविदों की एक और टीम ने जुलाई 2016 में उस स्थान का दौरा किया। अध्ययन किया गया कि क्या उस इलाके में कोई प्राचीन स्थल मिल सकती है। एक बार फिर, टीम ने विभिन्न परतों से हड्डियों और चारकोल के अवशेषों के नमूने जुटाए और जांच के लिए भेजे। निचले अवशेष 8500 ईसापूर्व (10,500 वर्ष पहले) के थे, जबकि उससे ऊपर के अवशेष 7300 ईसा पूर्व (9300 वर्ष पहले) के हैं। इस पर आई रिपोर्ट से यह बात पुष्ट होती है कि इस जगह पर कम से कम 900 साल (नवपाषाण युग) तक बसाहट थी।

नवपाषाण युग के बारे में

संस्कृति मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि कैम्पिंग साइट 8500 ईसा पूर्व की है। यह नवपाषाण युग के इंसान के पलायन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। डॉ. ओटा ने इस खोज को इस तरह समझाया- “यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्थान ‘ड्राय स्नो डेजर्ट’ के तौर पर जाना जाता है। एक ऐसा इलाका, जहां तापमान -30 से -40 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है। यहां पर वनस्पति नहीं के बराबर है। रिहाइश तो बहुत ही मुश्किल है। यह खोज ऐतिहासिक है क्योंकि इससे साबित होता है कि मुश्किल परिस्थितियों से निपटना मनुष्य को आता था। जबकि अब तक हम ऐसा नहीं सोचते थे।”

लद्दाख में नवपाषाण युग के अवशेष मिलने का यह पहला अवसर नहीं है। कश्मीर के अन्य हिस्सों, जैसे कि बुर्जुमान में भी इसी कालखंड की गुफा पेंटिंग्स मिली हैं। इससे संकेत मिलता है कि प्राचीन काल में भी मनुष्य हिमालय के दर्रे को पार करता था। प्रमुख पुरातत्ववदों और विशेषज्ञों के मुताबिक, उस समय मकान बनाकर रहने के कोई अवशेष नहीं है। इसका साफ इशारा इस ओर है कि वह तब तक गुफाओं में ही रहता था। यह वह कालखंड था, जब मनुष्य एक शिकारी से शुरुआती किसान में तब्दील हो रहा था।

पुणे में डेक्कन कॉलेज के प्रमुख जैव-पुरातत्वविद प्रोफेसर प्रमोद पी. जोगलेकर ने क्षेत्र से निकली हड्डियों के अवशेषों का अध्ययन किया है। उनका मानना है कि जो जैव सामग्री मिली, उसमें याक और गोरल के होने के प्रमाण मिलते हैं। इससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि इन जानवरों को मनुष्य ने उस समय पालतू बनाना शुरू कर दिया था। इस दिशा में और अध्ययन करने के बाद ही उस काल के बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकेगी। एएसआई की टीम जल्द ही क्षेत्र में खुदाई काम शुरू करना चाहती है। एएसआई ने स्वीकार किया कि 14 हजार फीट की ऊंचाई पर इस तरह की खुदाई को अंजाम देना आसान नहीं होगा। खासकर इन प्रतिकूल परिस्थितियों में। हालांकि, जिन लोगों को पुरातत्व काम में रुचि है, नई खोज की उम्मीद में जुनून के साथ इस काम में लग सकते हैं।

यह खोज महत्वपूर्ण है। इस बात की गवाह भी कि प्राचीन काल से मनुष्य का प्रकृति के प्रति प्रेम रहा है। इस जगह को कैम्पिंग साइट के तौर पर चुनने की वजह यहां की प्राकृतिक सुंदरता हो सकती है। मंत्रालय ने बयान में इस क्षेत्र के बारे में बताया कि “यह एक छोटा समतल इलाका है। एक तरफ बर्फ से ढंकी चोटियां हैं, सूखी बिना वनस्पति वाली धरती। कई सारी चट्टानें यहां-वहां दिख जाती है। पास ही में गहरी पश्चिमी खाइयों में बहती नदी है। यह बेहतरीन नजारे के बीच कैम्पिंग के लिए एक बहुत ही अच्छी जगह है।“