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जी 20 सम्मेलन 2016 से भारत के लिए निकले महत्वपूर्ण नतीजे

September 13, 2016


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जी 20 सम्मेलन 2016 से भारत के लिए निकले महत्वपूर्ण नतीजे

जी 20 सम्मेलन 2016 से भारत के लिए निकले महत्वपूर्ण नतीजे

चीन के हांगझाउ शहर में हाल ही में 11वां जी20 सम्मेलन संपन्न हुआ। इसमें विश्व के 20 बड़े देशों के नेताओं ने वैश्विक चिंताओं पर अपनी बातें रखीं। चीन के लिए, यह सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण समय पर आया। उसे हेग के आदेशों का दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो दक्षिण चीन सागर में उसके रुख के खिलाफ है।

लेकिन विविध देशों के सामान्य कूटनीतिक रुख से अलग करते हुए, जी 20 सम्मेलन के 11वें संस्करण को देखा जाए तो इसमें कुछ महत्वपूर्ण नतीजे सामने आए हैं। कई बरसों तक चली बातचीत के बाद अमेरिका और चीन इस बात पर सहमत हो गए हैं कि वे पेरिस एकॉर्ड को मंजूरी देंगे। कार्बन उत्सर्जन को घटाने के साथ ही जैव ईंधन पर सब्सिडी भी खत्म करेंगे।
दोनों ही देश दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले देश हैं। उनका साथ आकर करार करना एक महत्वपूर्ण कदम है। शुरू-शुरू में ऐसा लगा कि जी 20 सम्मेलन के घोषणा पत्र में इसका उल्लेख होगा और तारीख की घोषणा की जाएगी। लेकिन भारत जैसे कुछ देशों ने कहा कि वे अभी पेरिस एकॉर्ड पर सहमति जताने के लिए तैयार नहीं हैं और उन्हें अभी और वक्त की दरकार है।

वैश्विक जलवायु चर्चा में चीन और भारत एक ही स्वर में बोल रहे थे। लेकिन अब चीन ने खुद को पेरिस एकॉर्ड के लिए तैयार कर लिया है। ऐसे में भारत के पास उसका अनुसरण करने के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा है। भारत ने घोषणा के लिए वक्त मांगा तो कुछ अन्य देशों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया और अंतिम घोषणापत्र में कोई समयसीमा तय नहीं हो सकी।

भारत का नजरिया

हांगझाउ सम्मेलन भारत के लिए महत्वपूर्ण रहा। इसमें भारत ने चीन के साथ अपने तड़तड़ाहट भरे रिश्तों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए चिंताएं भी जाहिर की।

सामरिक कूटनीतिक कदम उठाते हुए, प्रधान मंत्री मोदी ने हांगझाउ से पहले वियतनाम की आधिकारिक यात्रा की। चीन दक्षिण और मध्य एशिया में अपनी मौजूदगी और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने में लगा है। चीन के ही कदमों का जवाब देते हुए भारत ने वियतनाम को 500 मिलियन डॉलर का पैकेज घोषित किया। यह सहायता सैन्य सहयोग के तौर पर दी जाएगी। चीन को एक संदेश भी दे दिया कि भारत उस इलाके में अपना असर और प्रभाव बढ़ा सकता है, जहां चीन अपना दबदबा कायम करना चाहता है।

इस वजह से जब प्रधान मंत्री मोदी ने हांगझाउ में कदम रखा, तब तक राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत के लिए उनका एजेंडा तय हो गया था। दोनों ही नेताओं ने पिछली बार शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन में मुलाकात की थी। उस समय भारत को औपचारिक रूप से संगठन का सदस्य बनाया गया था। लेकिन उसके बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में खटास आ गई थी। खासकर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को यूएन की आतंकियों की सूची में शामिल करने की कोशिशों को चीन ने झटका दिया था, तब से ही दोनों देशों के रिश्तों की गरमाहट बेपटरी हो गई थी।

इसके बाद चीन ने न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में भारत के प्रवेश का विरोध किया। इन कदमों को दोनों नेताओं के बीच विकसित हो रहे सकारात्मक रिश्तों के विपरीत देखा गया। यह देखना बाकी था कि पीएम मोदी जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलेंगे तब उनका रुख क्या रहता है।

हांगझाउ में सम्मेलन से इतर दोनों नेताओं की मुलाकात का नतीजा यह निकला कि चीन ने रिश्ते सुधारने के लिए प्रतिबद्धता दोहराई। दोनों नेताओं ने जहां से रिश्ता शुरू किया था, बात को फिर उसी जगह ले जाने की मंशा भी जताई। भारतीय नजरिये से यह एक सकारात्मक कदम था। दोनों देशों के आपसी रिश्तों में आई कड़वाहट का असर भारत में चीनी निवेश और प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन पर भी दिख रहा था। उनमें निरंतर कमी आ रही थी।

अब, दक्षिण चीन सागर विवाद में अलग-थलग पड़े चीन को भारत का साथ चाहिए। भारत एक बड़ा राष्ट्र है, जिसका दुनिया के इस सबसे व्यस्ततम जलमार्गों में से एक पर प्रभावशाली नियंत्रण है। चीन की स्थिति के खिलाफ भारत खुलकर अमेरिका के रुख का सहयोग कर रहा था। ऐसे में क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन में यह एक बड़ा बदलाव माना जा रहा था।
इतना ही नहीं, चीन ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर पोर्ट से पीओके के रास्ते जुड़ने के लिए 46 अरब डॉलर के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया है। यह चीन के एक व्यापक प्लान का हिस्सा है, जिसमें वन चाइना वन बेल्ट का उसका पुराना सिद्धांत है।

यदि बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन और पीओके में नागरिक आंदोलन को भारत समर्थन देता है तो यह चीन के लिए परेशानी का सबब बन जाएगा। अस्थिरता उसके लिए हानिकारक होगी। निवेश को हकीकत बनाना उसकी प्राथमिकता होगी। उसे अपने पुराने सहयोगी पाकिस्तान के साथ भी रिश्ते अच्छे कायम रखने हैं। इस वजह से मोदी की जी 20 सम्मेलन के दौरान शी जिनपिंग से मुलाकात दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है।

आर्थिक एजेंडे पर भारत का प्रभुत्व

नीति आयोग के उपाध्यक्ष और जी 20 सम्मेलन में भारत के मुख्य वार्ताकार अरविंद पनगढ़िया ने सम्मेलन से निकले निचोड़ के बारे में बतया। उन्होंने कहा कि ज्यादातर देश संरक्षणवाद के खिलाफ और बहुलतावाद समर्थक थे। जी20 सदस्य देश क्षेत्रीय व्यापारिक करार के पक्ष में थे। वह भी बहुलतावादी व्यापार सुधारों के साथ।

बढ़ती क्षमता और उसकी वजह से होने वाले अंतरराष्ट्रीय डम्पिंग के मुद्दे पर चर्चा हुई। उदाहरण के लिए इस्पात का मुद्दा उठा। चीन को अलग-थलग न करते हुए देशों का यह मानना था कि बढ़ी हुई क्षमता को देखते हुए नियमन के लिए एक वैश्विक संस्था बनाई जानी चाहिए। यह संस्था ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के तहत काम करें। जी 20 सदस्य देश इसे पूरा सहयोग करेंगे।

पनगढ़िया ने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक चिंताओं से जुड़े मुद्दों पर भारत की आवाज को महत्व दिया गया। भारत ने ब्रेक्जिट जैसी अन्य चुनौतियों का सामना करने के लिए बनाए गए अंतिम कम्युनिक के शब्दों को तय करने में महती भूमिका निभाई। साथ ही यूरोप में बढ़ते आव्रजन के केस और एंटी-माइक्रोबायल रेजिस्टेंट (एएमआर) की समस्या पर भी चर्चा की गई। इसका संबंध बैक्टीरिया और वायरस में मौजूदा दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने से है।

कर चोरी करने वाले लोग टैक्स हेवन देशों में शरण ले रहे हैं। यह भी वैश्विक चिंता का विषय है। भारत ने इस मुद्दे पर विकल्प तलाशने पर जोर दिया और सभी सदस्य देशों को कर चोरों के लिए दरवाजे बंद करने का आह्वान किया।

भारत ने आतंकवाद पर चिंता जताई

अन्य जी 20 सम्मेलनों में ऐसा नहीं हुआ, लेकिन इस बार वैश्विक आतंकवाद मुख्य विषयों में शामिल रहा। भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका भरपूर इस्तेमाल भी किया। मोदी ने आतंकवाद को वित्तीय और अन्य सुविधाएं देने में पाकिस्तान की भूमिका की खिंचाई की। मसूद अजहर पर चीन के रुख का मुद्दा भी उठाया। वह भी बिना किसी का नाम लिए। लेकिन संदेश इतना स्पष्ट और साफ था कि विश्व के सभी प्रभावी नेता उसे अच्छे-से समझ गए। ज्यादातर को आतंकवाद का पक्ष लेने में कोई रुचि नहीं थी, क्योंकि ज्यादातर इसके भुक्तभोगी बन चुके हैं। सीधे-सीधे भारत ने अपनी बात दुनिया के सामने जरूर कह दी।

भारत के पास है मुस्कराने का कारण

एक ऐसे समय जब ज्यादातर देश अब भी मंदी से जूझ रहे हैं, भारत का आर्थिक प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए एक उम्मीद की किरण है। 11वें जी 20 सम्मेलन के नतीजे के तौर पर भारत के पास मुस्कराने का मौका आ गया कि वह सभी वैश्विक मुद्दों पर चर्चा में अपनी बात को वजनदार तरीके से कह पाया। वह अंतिम घोषणा पत्र में भी अपनी बात को शामिल करवा सका।

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