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महाबलीपुरम में शोर मंदिर के नाम से एक वास्तुकला का आश्चर्य

May 23, 2017


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स्थान : कोरोमंडल तट के किनारे, महाबलिपुरम, तमिलनाडु

बंगाल की खाड़ी के किनारे की ओर अग्रसर मूर्तिकला उत्कृष्टता का यह टुकड़ा महाबलीपुरम का प्रतीक है। एक टूटा हुआ मंदिर, खम्भे, रथ, और कला के कई टुकड़े बेहद शानदार चट्टानों पर खोद कर बनाये गये हैं। यहाँ का हर खंड सराहनीय है। यह अद्वितीय और भव्य है और इसका आकर्षण जादुई है। यही महाबलीपुरम का शोर मंदिर है।

यह महान रचना 8वीं शताब्दी की है और इसे पल्लव राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय द्वारा निर्मित कराया गया था, जब महाबलीपुरम पल्लव वंश का व्यापारिक बंदरगाह था। शोर मंदिर दक्षिणी भारत के सबसे पुराने पत्थर के मंदिरों में गिना जाता है और इसे 1984 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रुप में घोषित किया गया था।

शोर मंदिर में तीन मंदिर हैं जो एक दूसरे के समीप स्थित, भगवान शिव और भगवान विष्णु को समर्पित है। मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक पांच मंजिला ढाँचा है और यह ग्रेनाइट से बना है। शोर मंदिर का मुख्य आकर्षण पाँच रथ या पंच पांडव रथ हैं, जिनमें से चार का नाम पांडवों के नाम पर रखा गया है और पाँचवां द्रौपदी रथ के रूप में जाना जाता है। उस समय के कारीगरों के सौंदर्यवादी उत्कृष्टता की बात करते हुए इनमें से प्रत्येक रथ विशाल और एक-दूसरे से अलग है।

शोर मंदिर और पाँच रथों के लिए प्रवेश शुल्क:

  • भारतीय नागरिकों के लिए 10 रुपये
  • विदेशी नागरिकों के लिए 5 अमेरिकी डालर
  • 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए नि:शुल्क

समय : सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक

त्वरित सुझाव:

  • आसपास के स्मारकों में प्रवेश मुफ्त हैं।
  • फोटोग्राफी की अनुमति है तथा वीडियोग्राफी के लिए एक व्यक्ति को 25 रुपये का भुगतान करना पड़ता है।
  • प्रवेश टिकट की बिक्री 5:30 बजे बंद हो जाती है।
  • सूर्योदय और सूर्यास्त के समय शोर मंदिर में जाना सबसे अच्छा है।
  • इस वास्तुशिल्प के आश्चर्य की खोज करें और अपने विलक्षण आकर्षण का पता लगाएं। अपना कैमरा ले जाना न भूलें जिससे आप यहाँ के हर आकर्षण को कैद करने के लिए बहुत सारे फोटो खींच सकते हैं।