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समाज के लिए खतरा: भारत में भिखारी

August 4, 2017


begging-in-india-hindiजैसा कि आप ट्रैफिक सिग्नल पर लाल बत्ती को देख कर अपनी कार रोक देते हैं, तो उसी वक्त एक गंदी महिला अपनी बाँह में एक बच्चा लिए कार की तरफ दौड़ती है या एक छोटा लड़का बहती हुई नाक के साथ या कोई विकलांग बूढ़ा आदमी भिक्षा मांगते हुए दिखाई देता है। यह भारत में एक आम दृश्य है। आपको रेलवे स्टेशनों, मेट्रो स्टेशनों, पर्यटन स्थलों, मंदिरों में भीख माँगते हुए कई लोग मिलेगें और कई क्षेत्रों पर तो नियमित रूप से मिलेगें जहाँ भीड़ होती है। कभी-कभी, तरस खाकर या ईर्ष्या से शापित होने के डर से बाहर आने के लिए हम उन्हें कुछ सिक्के या धन दे देते हैं और उन्हें दूर जाने को बोलते हैं।

भारत में गरीबी के कारण भीख मांगना

भारत में भीख मांगना सबसे गंभीर सामाजिक मुद्दों में से एक है। इतनी तेजी से आर्थिक विकास होने के बावजूद भारत एक गरीबी पर ही आधारित देश है, जो भिखारियों के विकास के लिए भी अग्रणी रहा है। उनमें से ज्यादातर बांग्लादेश से और कुछ भारत से हैं। देश में कुछ भिखारी असली हैं, जो कार्य करने में असमर्थ हैं क्योंकि वह बूढ़े या अंधे हैं, उन्हें मूलभूत जरूरतों के लिए पैसे की ज़रूरत है। इसीलिए वास्तव में वे बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भीख मांगते है। ऐसे कई लोग हैं जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं और अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए भीख मांगते हैं।

कुछ मामले हैं जिनमें पूरे परिवार के सदस्य भीख मांगने में शामिल हैं। परिवार के सदस्य विवाह और जन्म के साथ बढ़ते रहते हैं और उनमें से प्रत्येक सड़कों या मंदिरों पर भीख मांगते हैं। इस तरह के परिवारों के बच्चे स्कूल नहीं जाते बल्कि भीख मांगते हैं। वे भीख इसलिए भी मांगते हैं क्योंकि उनके परिवार की एक दिन की आय में पूरे परिवार को खिलाने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं है। भारत में गरीबी ऐसी स्थिति का एक बड़ा कारण है। लेकिन भीख मांगना इन परिस्थितियों से निपटने का समाधान नहीं है।

भारत में भीख मांगना एक घोटाले की तरह

भारत में गरीबी कहानी का सिर्फ एक पक्ष है। जबकि दूसरा पक्ष यह है कि भारत में गरीबी एक वास्तविकता है लेकिन गरीबी का मतलब भीख मांगना नहीं। भारत में भीख मांगने वालों का एक बड़ा रैकेट बन गया है। कई लोगों के लिए, भीख मांगना किसी अन्य पेशे की तरह है। वे पैसे कमाने के लिए बाहर जाते हैं, वे काम करके नहीं बल्कि भीख माँगकर कमाना चाहते हैं। वास्तव में, यह लोग गिरोह के साथ दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, मुंबई, कोलकाता आदि जैसे शहरों में भीख मांग रहे हैं। इन गिरोहों के अपने नेता होते हैं। प्रत्येक नेता भिखारियों के एक समूह को विशिष्ट क्षेत्र आवंटित करता है और प्रतिदिन की कमाई उनके बीच साझा करता है। भिखारियों का नेता अपने पास बड़ा हिस्सा रखता है और शेष हिस्सा भिखारियों में बाँट देता है। ये भिखारी भीख मांगने में इतने लिप्त हो जाते हैं कि इसके अलावा और कोई काम नहीं करना चाहते हैं। यह बहुत अजीब लेकिन सच है। यह अजीब है लेकिन सच है कि इनमें से कुछ भिखारी हजारों और लाखों में कमाते हैं जो एक सामान्य मध्यवर्गीय कार्यकर्ता की तुलना में बहुत अधिक है।

यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन असली भिखारी है और कौन बनावटी भिखारी है। क्योंकि दोनों देखने में एक जैसे ही लगते हैं। यहाँ तक उनके बच्चों को वांछित दिखने और गंदे चेहरे के साथ, उन्हें भीख मांगने और वास्तविक दिखने के लिए ठीक से प्रशिक्षित किया जाता है। जब हम एक जवान को उसके छोटे बच्चे को पकड़े हुए सड़कों पर भीख मांगते हुए देखते हैं तो कभी-कभी उनके चेहरे को देखकर हमारे दिल पसीज जाते हैं। ज्यादातर मामलों में, बच्चे को सोते (नशे की हालत में) हुए पाया जाता है, निश्चित रूप से यह एक घोटाला है। कई स्टिंग ऑपरेशनों से पता चला है कि भीख मंगवाने में विश्वसनीयता के लिए बच्चों को किराए पर लिया जाता है। कभी-कभी, बच्चों को पूरे दिन के लिए नशा दे दिया जाता है ताकि वे बीमार लगें और युवा महिला भिखारियों द्वारा उन्हें आसानी से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाया जा सके।

भिखारी को बहुत सशक्त बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि जब वह भीख मांग रहा हो तो आप उन्हें पैसे देने के लिए बाध्य हो जाएं। विशेष रूप से यह विदेशियों के लिए है, उन्हें मालूम नहीं कि इस तरह की परिस्थितियों में प्रतिक्रिया कैसे दें और आखिरकार वे भिखारियों को धन दे देते हैं। कुछ युवा भिखारी देश में असामाजिक तत्व बन जाते हैं। वे सभी ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं। ड्रग्स खरीदने के लिए, पहले वे भीख मांगना शुरू करते हैं फिर जब जेब खर्च धीरे-धीरे बढ़ता है तो यह लोग लूट और हत्या जैसे बड़े घोटालों में शामिल हो जाते हैं।

हमें क्या करना चाहिए?

भारत में एक महत्वपूर्ण दर से भिखारियों की वृद्धि हो रही है। यह अनुमान है कि भारत में पाँच लाख के करीब भिखारी हैं। सरकार, विभिन्न संगठन, कार्यकर्ता दावा करते हैं कि भिखारीयों को समाप्त करने के लिए कई उपाय किए गये हैं और यह कुछ हद तक सफल भी हुए है। लेकिन भीख मांगने की प्रवृत्ति अभी भी जारी है। हमें भी दोषी ठहराया जाना चाहिए क्योंकि हम भारतीयों के रूप में बहुत रूढ़िवादी और ईश्वर से डरने वाले हैं और हमने अपने मन को धार्मिक सीमा से बाँध कर रखा है। यह हमें दान करने के लिए मजबूर करता है और दान करने का सबसे आसान तरीका है कि पास के मंदिर जाए और वहाँ पर भिखारियों को भीख दे।

लेकिन इस देश के नागरिक के रूप में, इस संकट को रोकने की हमारी नैतिक जिम्मेदारी है और सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम भीख देना बंद कर दें। ऐसा लगेगा कि हम बेरहम हैं, एक छोटा बच्चा सड़क पर भीख मांगने के लिए आए और हम उसे पैसा न दें लेकिन यह एक कदम है जिससे हम भिखारियों को कम करने में कुछ हद तक मदद कर सकते हैं। यदि अधिक से अधिक लोग इसके लिए आगे आए और प्रतिज्ञा करें कि वे किसी भी भिखारी को उनकी ज़रूरत के बावजूद एक फूटी कौड़ी भी नही देंगे तो मुझे यकीन है कि हमारे देश से भिक्षावृत्ति पूरी तरह से या जड़ से उखड़ जाएगी। इस दौरान सरकार को अपनी गरीबी उन्मूलन योजनाओं को जारी रखना चाहिए और भारत को रहने के लिए एक बेहतर स्थान बनाना चाहिए।