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बेंगलुरू की नम्मा मेट्रो – प्रथम चरण के संचालन के लिये पूर्णतया तैयार

June 19, 2017


bengaluru's-namma-metro-hindiबेंगलुरू मेट्रो के प्रथम चरण का काम शुरू होने के बाद से लगभग एक दशक के बाद, तकनीकि विनिर्माण केन्द्र भारत के लोग रविवार 18 जून 2017 को अपनी पहली मेट्रो की सवारी का आनंद लेने के लिए तैयार हैं। 42 किलोमीटर की लंबाई वाले नम्मा मेट्रो का उद्घाटन, एक छोटे से समर्पण समारोह के बाद, भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा किया जायेगा। कई प्रमुख देरियों और लागत में वृद्धि ने इसके कार्यान्वयन के विकास में बाधा उत्पन्न कर दी थी। अब यह जनता के उपयोग के लिये तैयार है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि नम्मा मेट्रो बेंगलुरु वासियों के लिये एक वरदान साबित होगी। यह भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है, 2017 में इसकी अनुमानित आबादी 12.3 मिलियन है। यह शहर यातायात और बुनियादी ढाचें की समस्याओं से ग्रस्त है।

आराम लाना बहुत जरूरी

नम्मा मेट्रो के पहले चरण में दो अलग-अलग लाइनों को शामिल किया गया है, एक पूर्व-पश्चिम 18 किलोमीटर और दूसरी उत्तर-दक्षिण 24 किलोमीटर। नम्मा मेट्रो के प्रथम चरण (बेंगलुरु शहर का मेट्रो) का कार्य 2005 में शुरू किया गया था, अपनी तय समय सीमा समाप्त होने के बाद अब यह कार्य पूरा हो चुका है। मार्च 2015 में इस कार्य के पूरा होने की रूप रेखा तय हो चुकी थी। इस तरह के विलंब का अर्थ यह नहीं है कि शहर में मेट्रो सेवाएं पूरी तरह से उपलब्ध ही नहीं हैं। 2011 से आंशिक तौर पर मेट्रो ट्रेनें उपलब्ध हैं। हालांकि, रविवार को होने वाला उद्घाटन इस चरण के पूरा होने और इन हिस्सों के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करेगा। इसमें 40 से अधिक मेट्रो स्टेशन हैं जिनमें 7 भूमिगत स्टेशन भी शामिल हैं, इससे शहर के आपस में जुड़ने की संभावना है। बेंगलुरू यात्रा करने वाले लोगों के लिये काफी कष्टदायी है, जो शहर की यात्रा में अधिक समय व्यतीत करते हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस मेट्रो की शुरूआत से उत्तर-दक्षिण या पूर्व -पश्चिम तक जाने में लगने वाला अधिकतम समय 44 मिनट है।

लागत और नुकसान पर एक नजर

बेंगलुरु मेट्रो के प्रथम चरण के शुरुआत में 6,375 करोड़ की लागत लगने का अनुमान था। परियोजना में देरी और अतिरिक्त हिस्सों को जोड़ने के कारण बाद में इसकी लागत 13,854 करोड़ रुपये हो गयी थी। हालांकि, लागतों का बचाव करते हुए मेट्रो के अधिकारियों ने कहा है कि धन का समय मूल्य बढ़ती लागत को सही ठहराता है। इसके अलावा, आने वाले वर्षों में मेट्रो जो सुविधायें या बचत लायेगी उसके लिये यात्री स्वयं भुगतान करेंगे।

भौगोलिक चुनौतियों को नम्मा मेट्रो के प्रथम चरण में देरी का मुख्य कारण माना जा रहा है। बेंगलुरु दक्कन के पठार पर स्थित है इस कारण कठिन चट्टानी सतह में ड्रिलिंग सुरंगों को बनाना एक बड़ी चुनौती सामने आयी। बढ़ते शहरीकरण के कारण लोगों में असुविधा पैदा किए बिना पूरे दिन इस परियोजना पर काम करना असंभव था। यहाँ पर कई ऐसे स्थान हैं जहाँ पर केवल रात में ही कार्य किया गया था।

पर्यावरण को होने वाला बड़ा नुकसान बेंगलुरु मेट्रो के कार्यान्वयन में एक बड़ी चिंता के रूप में सामने आया। ऐसा लगता है कि इस कार्य की शुरूआत से पहले पर्यावरणीय नुकसान का आंकलन नहीं किया गया था। इसके निर्माण में बड़ी मात्रा में पेड़ों के विशाल गलियारों को तबाह कर दिया गया है। प्रदूषण के उच्च स्तर को देखते हुए कि बेंगलुरू पहले से ही इस समस्या का सामना कर रहा है, यह कार्य निश्चित रूप से एक निराश भरा कदम लगता है।

राष्ट्रपति के आगमन के लिए तैयार है शहर

हमें चिंताओं के बावजूद लाभ को स्वीकार करना चाहिए कि यह बेंगलुरु के लोगों के लिये आवागमन का एक मजबूत साधन साबित होगा। दैनिक आधार पर लगभग 5 लाख लोग प्रतिदिन मेट्रो का उपयोग करके अपना समय, लागत और ईंधन को बचाने की उम्मीद रखते हैं। शहर अब भारत के राष्ट्रपति का स्वागत करने के लिए तैयार है, कई यातायात प्रतिबंधों और डायवर्जनों को (केवल रविवार के लिए) लागू किया गया है। इसी समय आ रहीं हर्ष भरी खबरें संकेत करती हैं कि बेंगलुरू में मेट्रो के द्वितीय चरण का काम प्रगति पर है।