Home / / बिहार महाभारतः चुनावी बिगुल बज गया

बिहार महाभारतः चुनावी बिगुल बज गया

September 10, 2015


बिहार चुनाव 2015 तिथियाँ

बिहार का चुनावी बिगुल बज गया है! सरकार ने बिहार में चुनावों की तारीखें घोषित कर दी हैं। वोटिंग इन चरणों और तारीखों को होगीः

तारीख चरण सीटें
12 अक्टूबर (सोमवार) 1 49
16 अक्टूबर (शुक्रवार) 2 32
28 अक्टूबर (बुधवार)  3 50
1 नवंबर (रविवार) 4 55
5 नवंबर (गुरुवार) 5 57

वोटों की गिनती रविवार, 8 नवंबर को शुरू होगी।

आज से चुनावों के नतीजे घोषित होने तक, इस कॉलम में चुनावी विश्लेषण किया जाएगा। बिहार के चुनावी घमासान के सभी रोचक तथ्यों को इसमें शामिल रहेंगे।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए केंद्र सरकार ने बिहार में 50 हजार अर्द्धसैनिक बलों को तैनात करने का फैसला किया है।

2015 में बिहार का राजनीतिक परिदृश्य

कुल विधानसभा क्षेत्रः 243 (सामान्य श्रेणी 203, अनुसूचित जातिः 38, अनुसूचित जनजाति 2)

कुल मतदान केंद्रः 62,779

गठबंधन में महत्वपूर्ण दलः

बीजेपी + एलजेपी + आरएलएसपी + एचएएम

जेडी-(यू) + आरजेडी + कांग्रेस

2010 के विधानसभा चुनावों में मुख्य राजनीतिक दल थेः

जनता दल (यूनाइटेड) – जेडी (यू)

भारतीय जनता पार्टी – (बीजेपी)

राष्ट्रीय जनता दल – आरजेडी

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसआईएनसी

लोक जनशक्ति पार्टी एलजेपी

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टीएनसीपी

समाजवादी पार्टी एसपी

बहुजन समाज पार्टीबीएसपी

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीसीपीआई

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सीपीएम

जनता दल (सेकुलर) जेडीएस

झारखंड मुक्ति मोर्चा – जेएमएम

झारखंड विकास मोर्चा – प्रजातांत्रिक – जेवीएम

अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लॉक एआईएफबी

रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी – आरएसपी

शिव सेना—एसएचएस

2010 के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों का प्रदर्शन

पार्टी चुनाव लड़े जीते वोट प्रतिशत
जेडी(यू) 141 115 22.58%
बीजेपी 102 91 16.49%
निर्दलीय 1342 6 13.22%
कांग्रेस 243 4 8.37%
एलजेपी 75 3 6.74%
सीपीआई 56 1 1.69%
जेएमएम 41 1 0.61%

कुल उम्मीदवारः 3,523

पुरुष उम्मीदवारः 3,216; निर्वाचितः 209

महिला उम्मीदवारः 307; निर्वाचितः 34

जमानत जब्तः 3,019 पुरुषः 2,777 महिलाः 242

प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में औसत उम्मीदवारः 14

कुल मतदान केंद्रः 58,694

प्रति मतदान केंद्र में औसत मतदाताः 939

2015 में किसका होगा राज?

बिहार का सियासी पारा चढ़ रहा है। सभी सियासी दल और गठबंधन अब जातिगत, महिलापुरुष मतदाताओं और स्थानीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुट गए हैं।

बीजेपी जो कर सकती थी, अब तक उसने वह सब किया भी है। इन चुनावों में नरेंद्र मोदी की साख दांव पर है। नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार केंद्र में काबिज होने के बाद पार्टी बिहार के तौर पर पहले बड़े चुनाव का सामना कर रही है। इसी की वजह से बिहार के लिए 1.25 लाख करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की घोषणा और सभी केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 6 प्रतिशत बढ़ाने से लेकर पर चुनावों से ठीक पहले धर्मआधारित जनगणना के आंकड़े जारी करने तक, मतदाताओं को अपने पाले में लाने की हर एक कोशिश की है।

बीजेपी खेमे के गठबंधन सहयोगी सीटों के बंटवारे का इंतजार कर रहे हैं। इस वक्त इंतजार के सिवा कुछ कर भी नहीं सकते। न तो राम विलास पासवान और न ही उपेंद्र कुशवाहा इस स्थिति में है कि वे अपनी ताकत से कुछ कर सके। उनके पास बीजेपी की बात मानने के सिवा कोई विकल्प भी नहीं है। उपेंद्र कुशवाहा ने कल कहा कि उन्होंने सीटों के बंटवारे के फार्मूले का फैसला भाजपा हाईकमान पर छोड़ दिया है। जीतन राम मांझी भी इसी नौका पर सवार है, लेकिन दलितमहादलित वोट बैंक के बूते मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद कर रहे हैं। पिछले साल हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों की ही तरह बीजेपी इस बार भी नतीजे आने तक अपने मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं करने वाली।

सेकुलर गठबंधन के नाम से दूसरे खेमे में शामिल जेडी(यू), आरजेडी और कांग्रेस ने नीतीश कुमार को अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पहले ही घोषित कर रखा है। मुलायम सिहं यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, लेकिन चुनावों के बाद वह जेडी(यू)-आरजेडीकांग्रेस खेमे को समर्थन दे सकते हैं। मुलायम सिंह को मुसलमानों का समर्थन मिलता आया है और वे बीजेपी खेमे में शामिल होकर इसे खोने का जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे। हालांकि, यदि बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन मजबूती से आगे आकर ताकत दिखाता है तो वह 180 डिग्री घूमकर उसे भी समर्थन की पेशकश कर सकते हैं।

बिहार के चुनावी घमासान से जुड़ी और गतिविधियों को जानने के लिए जुड़े रहिए।