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बिहार चुनावः दूसरे दौर की वोटिंग में आएंगे सबसे संवेदनशील जिले

October 14, 2015


दूसरे दौर में संवेदनशील जिलों में होगा मतदान

बिहार के विधानसभा चुनावों में दूसरे दौर का मतदान 16 अक्टूबर, शुक्रवार को होगा। सबसे संवेदनशील समझे जाने वाले जिले भी इसमें शामिल रहेंगे। कुछ नक्सल प्रभावित, जबकि कुछ जाति से जुड़ी हिंसा से। जिन छह जिलों में मतदान होना है, वे हैंकैमूर (भबुआ), रोहताश, अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद और गया।

सुरक्षा बलों के साथ मिलकर चुनाव आयोग शुक्रवार को होने वाले मतदान के लिए कमर कसकर तैयार हो गया है। वे चूक के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते। इसी वजह से निगरानी बढ़ा दी गई है। ऊपर बताए जिलों में ही नहीं बल्कि उनके आसपास के जिलों में भी छापेमारी की जा रही है। 13 अक्टूबर को सीआरपीएफ जवानों ने रोहताश पुलिस थाना क्षेत्र में आने वाले ढांसा में छापे मारे। वहां से डिटोनेटर समेत 7 किलो बारूदी सुरंग बरामद की गई है। इसका इस्तेमाल सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाने के लिए हो सकता था। बमों को निष्क्रिय करने के लिए तत्काल बम डिस्पोजल स्क्वाड को भेजा गया। यदि सुरक्षाकर्मी सतर्क न होते तो यह बारूदी सुरंगें एक बड़े हादसे की वजह बन सकती थी।

गया जिले के बाराचत्ती इलाके में मारे गए एक अलग छापे में, सीआरपीएफ ने भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट बरामद किया है। यह रसायन बम बनाने में इस्तेमाल होता है। औरंगाबाद जिले के देव गांव में सुरक्षाकर्मियों ने डिटोनेटर के साथ तीन केन बम बरामद किए हैं। इसके अलावा चुनाव आयोग की निगरानी में सुरक्षाकर्मी और पुलिसकर्मी रोज ही कई छोटे हथियार, गोलाबारूद और नगदी बरामद कर रहे हैं।

जाति आधारित तनावों की वजह से ऊपर बताए जिलों में कई हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं। नक्सलवाद इन जिलों में बेहद मजबूत है। कई दशकों तक सरकार की अनदेखी की वजह से उसे फलनेफूलने का भी भरपूर मौका मिला। 1990 के दशक में ऊंची जातियों के समर्थन वाली रणवीर सेना के सदस्यों की अन्य जातियों और भाकपा (माले) के कार्यकर्ताओं से टकराव नियमित होती थी। दोनों ही पक्षों ने इस दौरान क्रूरता की हदें पार की। भीषण हिंसा का दौर था। दुर्भाग्य से सभी राजनीतिक दल सियासी लाभों के लिए इस तनावपूर्ण स्थिति का अपनेअपने हिसाब से इस्तेमाल करती रही है।

विकास और सामाजिक न्याय के मामले में यह जिले बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इसी का नतीजा है कि नक्सलियों को ग्रामीण समुदायों में व्यापक जनसमर्थन मिलता है। गांवों में लोग गरीबी में जी रहे हैं। सरकारी सुविधाएं तो न के बराबर है। यह भी सच है कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के बाद काफी उपाय किए हैं। नाकाफी होने के बावजूद वह काफी महत्वपूर्ण हैं। इनकी वजह से ही इन ग्रामीण इलाकों में माओवादियों का असर कमजोर हुआ है, जो पारंपरिक तौर पर उनका गढ़ हुआ करता था।

हर चुनावों की तरह, माओवादियों ने इस बार भी लोगों को चुनावों का बहिष्कार करने की चेतावनी दी है। लेकिन सुरक्षा व्यवस्थाओं को देखकर इसका बहुत ज्यादा असर होने की उम्मीद नहीं है। हवाई निगरानी की जा रही है। हर स्तर पर सुरक्षा की जांच हो रही है। जंगल के इलाकों में भी सघन गश्त की जा रही है। ताकि सुरक्षा क्षेत्र में किसी भी घुसपैठ को रोका जा सके।

क्या पीएम अनुचित लाभ उठा रहे हैं?

प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार के लिए दी गई हालिया अनुमति से जुड़े विवाद ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। खासकर यह कि क्या सबको बराबरी से मौके नहीं दिए जा रहे हैं? पहले चरण के मतदान के दिन प्रधानमंत्री की रैली की अनुमति के लिए बीजेपी का उच्चशक्तिसंपन्न प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से मिला था। महागठबंधन की लिखित आपत्तियों के बाद भी चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री को रैली करने की अनुमति दी थी। विपक्ष कह रहा था कि इससे पीएम को अनुचित लाभ मिलेगा। इन दलील का भी कुछ आधार तो था।

12 अक्टूबर को पहले चरण की वोटिंग थी। इसी दौरान जहानाबाद और भबुआ की रैलियों में पीएम के भाषण के कुछ हिस्से कई चैनलों ने प्रसारित किए। इसमें कोई संदेह नहीं कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कई वोटर्स ने भी यह भाषण देखे होंगे और इसका असर भी हुआ होगा। बड़ी संख्या में वोटर्स एक बजे के बाद ही मतदान केंद्रों पर पहुंचे। तब तक पहली रैली के भाषण के अंश टीवी और सोशल मीडिया पर अच्छेसे प्रासरित हो चुके थे।

इसका निश्चित ही पीएम और बीजेपी को अनुचित लाभ मिला होगा। टीवी चैनल्स ने विरोधी खेमे के किसी भी अन्य नेता या पार्टी को कवर नहीं किया। इस वजह से, भले ही चुनाव आयोग ने पीएम को रैली की अनुमति देने में कोई गलती न की हो, उनका कानून की व्याख्या का फैसला मीडिया और राजनेताओं पर छोड़ना एक पक्ष को मौका भूनाने की अनुमति देता है।

यह अनुमति, सभी को समान मौके देने की भावना के खिलाफ है। भले ही इसकी कोई कानूनी बाध्यता न हो। यह विवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। भविष्य में जब भी चुनाव चरणों में होंगे, तब यह विवाद सामने आ सकते हैं। इस वजह से यह बेहद जरूरी है कि सभी राजनीतिक पार्टियों में इस पर व्यापक बहस हो और सभी को बराबर मौके मिलने पर सर्वसम्मति बनना चाहिए।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने दी मोदी को चुनौती

प्रधानमंत्री अपनी रैलियों में ज्यादातर जंगल राज का जिक्र करते हैं। इससे सीधेसीधे नीतीश कुमार निशाने पर आ जाते हैं। इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के डुमरिया में एक रैली को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पीएम को चुनौती दे डाली। व्यापमं और ललित गेट समेत अन्य घोटालों पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर उन्होंने सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि उनकी पार्टी ने तो अवधेश कौशल से इस्तीफा लेकर तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें हटाया, लेकिन नरेंद्र मोदी ने पार्टी के अपने दागी सहयोगियों के खिलाफ क्या कदम उठाए हैं।

उन्होंने नवादा के सांसद गिरिराज सिंह के घर से बरामद 2 करोड़ रुपए का मुद्दा उठाया। जो लोकसभा चुनावों के दौरान सिंह के घर से मिले थे। इसका कोई हिसाब भी नहीं था। लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय केंद्र सरकार में राज्यमंत्री पद से नवाजा गया। उन्होंने बिहार को सुधारने के लिए पार्टी की ओर से किए गए विकासात्मक उपायों के बारे भी बात की और यह भी बताया कि सत्ता में लौटे तो उनके पास क्या योजनाएं हैं।

पिपरा में दागी अवधेश कुशवाहा की जगह जेडी(यू) के कृष्ण चंद्र

जेडी(यू) ने घोषणा की है कि पूर्वी चंपारन जिले की पिपरा विधानसभा क्षेत्र से अवधेश कुशवाहा की जगह अब पार्टी की ओर से कृष्ण चंद्र चुनाव लड़ेंगे। उनके नाम का प्रस्ताव पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष बशिष्ट नारायण सिंह की अध्यक्षता वाली जेडी(यू) चुनाव समिति ने दिया था। कृष्ण चंद्र नामांकन की आखिरी तारीख पर आज नामांकन पर्चा दाखिल करेंगे।