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बिहार चुनावः पीछे मुड़कर देखते हैं किसने क्या कहा

November 4, 2015


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आखिरकार बिहार में कटुता, नफरत, विवादों, ऊंचे स्वर वाले और कभी-कभी साफ तौर पर गुदगुदाने वाला चुनाव प्रचार मंगलवार को खत्म हो गया। किसी राज्य के चुनावों में इतनी गर्माहट कम ही देखने को मिलती है, जितनी इस बार देखने को मिली है। बिहार के आम लोगों के लिए यह शोर बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा।
एक महीने से भी ज्यादा वत्कत तक सरकार का पूरा राजनीतिक चेहरा, जिनमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, बिहार में धूल भरी सड़कों की खाक छानते रहा। एक रैली से दूसरी में पहुंचता रहा। राज्य के हर वोटर तक अपना संदेश पहुंचाने की कोशिश करता रहा। महागठबंधन के नेता भी पीछे नहीं रहे। एनडीए और महागठबंधन, दोनों के लिए ही यह करो या मरो की लड़ाई है। इससे दोनों पक्षों में खुलकर शब्दों का आदान-प्रदान हुआ। कुछ तो बहुत ही निचले स्तर के भी थे।
अभियान थम गया है और अंतिम दौर का मतदान कल होगा। यह अच्छा वक्त है जब हम यह देखने की कोशिश करते हैं कि पिछले महीनों में किसने कब और क्या कहा।
नरेंद्र मोदी
बीजेपी ने अपना बिहार अभियान जुलाई में शुरू कर दिया है। मुजफ्फरपुर में अपनी तरह की ‘परिवर्तन’ रैली हुई। यहीं पर उन्होंने अभियान की दिशा और दशा तय की, जो कि कुछ महीनों बाद शुरू होने वाला था। यहीं पर प्रधानमंत्री मोदी ने ‘रोजाना जंगल राज’ और ‘गुंडा राज’ के लौटने का डर जगाना शुरू किया। यह बीजेपी के अभियान की पहली कड़ी थी। इसके अलावा पार्टी ने यह भी बताया कि यदि बिहार में चुन ली जाती है तो वह किन विकास कार्यों को आगे बढ़ाएगी, यह संदेश भी जनता तक पहुंचाया। उन्होंने इन दो थीम पर पूरी अभियान प्रक्रिया की नींव रखी। ताकि बिहार के लोगों को यह भरोसा दिलाया जा सके कि वह एक अच्छे विकल्प साबित होंगे।
जुलाई में, बीजेपी बहुत मजबूत विकेट पर थी। ऐसा लगने लगा कि राज्य के लोग सरकार में बदलाव चाहते हैं। उम्मीद है कि बीजेपी वह करके दिखाएगी जो कांग्रेस, लालू प्रसाद और उनके बाद नीतीश कुमार करने में नाकाम रहे हैं।
लेकिन जैसे ही अभियान चरम पर आया, महागठबंधन खेमे से आरोपों का सिलसिला शुरू हो गया। खासकर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने तीके हमले किए। खुद मोदी और बीजेपी नेतृत्व को आरोपों का जवाब आरोपों से देने को मजबूर होना पड़ा। लेकिन कहीं न कहीं इस शोर में ‘विकास’ का मुद्दा पिछली सीट पर चला गया।
‘जंगल राज’ के जुमलों के बाद आरोप लगे कि लालू अपने ही परिवार को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं। कमजोर पड़ चुके नीतीश कुमार की सरकार को नियंत्रित रखने के लिए रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि नीतीश ने अपने कट्टर दुश्मन लालू प्रसाद से हाथ क्यों मिलाया। उन्हें अवसरवादी और सत्ता का लालची तक कहा। बीजेपी ने नीतीश कुमार की तांत्रिक से मुलाकात का वीडियो भी जारी किया। आरोप लगाया कि महागठबंधन ‘जंतर मंतर’ के आधार पर शासन करना चाहता है।
सोनिया गांधी पर, उन्होंने यूपीए के घोटालों, उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठाया। यह भी कहा कि देश ने उनके रिमोट कंट्रोल से चलने वाली सरकार और यूपीए को ठुकरा दिया है। उन्होंने राहुल गांधी पर ज्यादा वक्त नहीं गंवाया और उन्होंने ‘युवराज’ को महत्व देने से ही इनकार कर दिया। मोदी ने कहा कि नीतीश, लालू और सोनिया की तिकड़ी को महागठबंधन के थ्री इडियट्स भी कहा।
आखिरी दौर के प्रचार में, प्रधानमंत्री ने 1984 के सिख दंगों का मुद्दा उठाया। देश के विपक्ष और अन्य राजनीतिक प्रेक्षकों ने इस मुद्दे पर उनकी तीखी आलोचना भी की।
दुखद है कि प्रधानमंत्री ने खुद लालू प्रसाद के स्तर पर आकर बयानबाजी की। वे चाहते थे कि आरोप-प्रत्यारोप में ज्यादा वजनदार साबित हो। लेकिन इसमें प्रधानमंत्री पद की गरिमा को नुकसान पहुंचा है। नीतीश कुमार अब भी स्टेटमैनशिप के तौर पर उभरे हैं।
नीतीश कुमार
नीतीश कुमार ने दिखा दिया कि उन्होंने मोदी की सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना सीख लिया है। उन्होंने शुरुआत ही एक काल्पनिक व्यक्ति ‘जुमला बाबू’ बनाकर की। एक ऐसा शख्स जो बड़े सपने बेचता है, लेकिन उसके वादे कभी पूरे नहीं होते। उन्होंने मोदी के लिए जुमला बाबू शब्द का इस्तेमाल किया। मोदी ने अपनी रैलियों में जितने भी वादे किए, उनका जवाब महागठबंधन ने इसी शब्द से दिया। ऐसा लगा कि वे फंस गए हैं।
नीतीश कुमार ने मोदी के वादे पर सवाल उठाए कि विदेशों से काले धन को लाने और हर नागरिक के खाते में 15-20 लाख रुपए डालने के वादे का क्या हुआ। उन्होंने पूछा कि मोदी के अच्छे दिन के वादे का क्या हुआ। खाद्य मुद्रास्फीति, खासकर दाल की कीमतें, आज तक की सबसे महंगी कीमत पर बिक रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री विदेशों में ज्यादा वक्त बिता रहे हैं और भारत में कम। विकास के कई मुद्दों की अनदेखी कर रहे हैं।
देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा पैदा करने वाले मुद्दों पर पीएम की चुप्पी पर भी उन्होंने मजबूती से वार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि दादरी, बीफ विवाद और फरीदाबाद में दलित बच्चों की हत्या के मसले पर प्रधानमंत्री चुप रहे। ऐसा उन्होंने आरएसएस के कहने पर किया।
उन्होंने जब मोदी को लेकर ‘बाहरी बनाम बिहारी’ के विषय पर बहस छेड़ी तो विवाद हो गया। प्रधानमंत्री मोदी को नीतीश कुमार लगातार बहस की चुनौती देते रहे। जिसका मोदी ने जवाब ही नहीं दिया।
लालू प्रसाद यादव
लालू प्रसाद ने अपने बेटों के लिए प्रचार करते वक्त राघौपुर के भाषण में ही विवाद को जन्म दे दिया। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई ‘अगड़ों और पिछड़ों’ की है। उन्होंने अमित शाह के लिए भी ‘नरभक्षी’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने प्रधानमंत्री को ब्रह्मपिशाच कहा। इन टिप्पणियों पर बीजेपी ने भी तीखे जवाब दिए और एफआईआर दर्ज हुई। मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी उनकी इस पर आलोचना की।