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बिहार चुनावः अमित शाह ने बिहार में ‘विकास’ का मंत्र दिया

October 24, 2015


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दशहरे की छुट्टियों से लौटने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह नए जोश के साथ रैलियों में लौटे हैं। उन्होंने कहा कि बिहार काविकासउनकी शीर्ष प्राथमिकता है। उनके भाषणों में महिलाओं और युवाओं पर केंद्रित विकास पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।

विवादों के सिलसिलों ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है, इसके बाद शाह ने विरोधियों पर जोरशोर से हमले करने के बजाय विकास पर ध्यान केंद्रित करने का रास्ता अपनाया है। हालांकि, शाह ने लालू प्रसाद के राघौपुर के भाषण का जिक्र भी किया, जिसमें उन्होंने बेटे के समर्थन में आयोजित रैली में कहा था कि ये चुनावअगड़ोंऔरपिछड़ोंके बीच है। इसी भाषण ने चुनाव आयोग का ध्यान खींचा और लालू प्रसाद को नसीहत भी दी थी।

अमित शाह ने कहा कि बिहार को विकसित राज्य बनाने के लिए राज्य के महिलाओंयुवाओं को आगे आना होगा। उनकी पार्टी बिहार के विकास के लिए जो भी जरूरी होगा, वह करने को तैयार है। प्रतिबद्ध है।

शाह ने यह भी बताया कि लालू के जंगल राज में किस तरह दलितों और पिछड़ी जातियों को नुकसान उठाना पड़ा और अब वक्त गया है जब उन्हें मुख्य धारा का हिस्सा बनना होगा। दलितों, ईबीसी और ओबीसी के पक्ष में शाह के भाषण में इतनी तीव्रता देखकर लगता है कि बीजेपी पिछड़े वर्गों की हितैषी के तौर पर सामने आना चाहती है। यह कदम जेडी(यू)-आरजेडी को उनके ही गढ़ में चुनौती देने और बीएसपी के क्षेत्र में पैर रखना होगा। यूपी में 2017 में होने वाले चुनावों को देखते हुए यह काफी सोचासमझा कदम माना जा रहा है।

आरएसएस कहां है?

2014 के लोकसभा चुनावों में कई दशक तक परदों के पीछे रहने के बाद आरएसएस को सामने आने में मदद की। बीजेपी की जीत और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से आरएसएस को ही एक तरह से पुनरुद्धार हो गया। आरएसएस ने ही देशभर के अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट किया और लोकसभा चुनाव तक कई महीने उन्होंने अथक परिश्रम किया। बीजेपी का संदेश सभी तबकों को पहुंचाया। तब जाकर बीजेपी को सफलता मिली।

बीजेपी के साथ ही, आरएसएस को भी बड़ा फायदा हुआ। पिछले 17 महीनों में, आरएसएस की विचारधारा के प्रति युवाओं में रुझान बढ़ा है। जिन इलाकों में आरएसएस की मौजूदगी नहीं के बराबर थी, वहां भी सदस्यता बढ़ी है। आरएसएस कई बरसों से नए सदस्यों के लिए जूझ रहा था और मौजूदा सदस्यों की उम्र होती जा रही है। लेकिन 2014 के बाद युवा संगठन से जुड़े और इसे एक नई ऊर्जा दे रहे हैं।

बिहार में, बीजेपी को 30 में से 22 लोकसभा सीटों का जादुई आंकड़े दिलाने में सबसे बड़ा योगदान आरएसएस के कार्यकर्ताओं का था। उन्होंने अथक परिश्रम किया और बीजेपी का संदेश जनजन तक पहुंचाकर जीत को बीजेपी की झोली में डाला। हालांकि, विधानसभा चुनावों में आरएसएस नजर नहीं आया। उसके कार्यकर्ता प्रचार में कम ही दिखे हैं। अब तक बीजेपी के कार्यकर्ता ही आगे दिखाई दिए हैं। संगठनात्मक तौर पर आरएसएस में सक्रियता और जोश की कमी दिख रही है।

बीजेपी और उसके मातृ संगठन आरएसएस के बीच रिश्ते भी साफ तौर पर उलझे हैं। खासकर पिछले दिनों के विवादों की वजह से। आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों में हमेशा से विरोधाभास देखने को मिला है। बीजेपी की मुख्य विचारधारा आरएसएस की ही है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर लोकप्रियता के लिए बीजेपी को समाज के सभी तबकों के साथ ही संतुलिक आर्थिक एजेंडे पर आगे बढ़ने के लिए मध्यमार्गी विचारधारा अपनानी पड़ती है। आरएसएस का कोर पारंपरिक रूप से ऊपरी जातियों से ही भरा हुआ है। ब्राह्मण हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी वजह से आरएसएस नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण के खिलाफ है। जब मोहन भागवत ने आरक्षण के खिलाफ टिप्पणी की तो यह बात और साफ हो गई।

बीजेपी बिहार के चुनावों में दलित, महादलित, ईबीसी, ओबीसी और एससी/एसटी का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। इन्हें ही आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ भी मिला है। इसलिए यदि बीजेपी को बिहार चुनाव जीतने के लिए गंभीर प्रयास करना है तो उसे अपने मातृसंगठन आरएसएस को कहना पड़ा कि राम मंदिर, आरक्षण और हिंदुत्व एजेंडे जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अपनी मुखरता कम करें। यह आरएसएस नेतृत्व और उसके कार्यकर्ताओं को अच्छा नहीं लगा।

बीजेपी अभी ऐसी स्थिति में है कि किया तो और नहीं किया तो भी धिक्कार ही मिलेगी। लेकिन यदि उसने बिहार जीता तो उसके आरएसएस से रिश्ते और खराब हो सकते हैं। उसे संगठन और उसके एजेंडे से दूरी बनानी होगी। लेकिन यदि बिहार में उसकी हार होती है तो आरएसएस मोदीशाह जोड़ी के पीछे पड़ जाएगा कि मूल मुद्दों से भटकाव की वजह से ही हारे। इसी वजह से बिहार के चुनावों को आने वाले वर्षों में भारत की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाला बताया जा रहा है।

ईबीसी नेता भीम सिंह ने बीजेपी के लिए जेडी(यू) छोड़ी

नीतीश कुमार कैबिनेट के पूर्वमंत्री भीम सिंह नीतीश खेमा छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं। तीसरे दौर के मतदान से ठीक पांच दिन पहले यहजीतबीजेपी के लिए अगले दौर के चुनाव में महत्वपूर्ण होगी। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि तीसरे दौर का मतदान उन इलाकों और नदियों के आसपास होने वाला है, जहां ज्यादातर ईबीसी वर्गों के लोग रहते हैं।

भीम सिंह इस समुदाय के बड़े नेता हैं। तीसरे दौर से ठीक पहले उनका पाला बदलना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित होगा। इससे यह भी पता चलता है कि बीजेपी कमजोर तबकों का विश्वास जीतने के लिए कितना जोर लगा रही है। खासकर हम, एलजेपी और आरएलएसपी जैसे गठबंधन सहयोगियों से।

लेकिन भारत की राजनीति विचारधारा और सिद्धांतों पर नहीं चलती। यह वही व्यक्ति है जिसने सेना के सैनिकों पर विवादित टिप्पणी की थी कि सीमा पर जान देना उनका काम है। यह टिप्पणी उस समय आई थी, जब सेना के जवानों की जम्मूकश्मीर में हत्या हुई थी। उस समय भीम सिंह नीतीश कुमार कैबिनेट में मंत्री थे। उनके इस बयान की व्यापक आलोचना हुई थी। बीजेपी ने बिहार में इस बयान के खिलाफ एक दिन की हड़ताल भी की थी।

भीम सिंह बीजेपी में शामिल हुए तो बड़ेबड़े नेता उनके स्वागत के लिए मौजूद थे। सब नेताओं ने भीम सिंह की तारीफ के कसीदे पढ़े। इससे एक बार फिर भारतीय राजनीति की हकीकत सामने गई। आखिर में, टेबल पर कितने वोट पड़ते हैं यह महत्व रखता है।

फोटो कैप्शनः अमित शाह के भाषणों में पूरा जोर विकास पर