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बिहार महाभारतः क्या पार्टियां ‘यादव’ कार्ड का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं?

September 26, 2015


राजनीतिक दल ‘यादव’ समुदाय पर पूरा जुआं खेल रहे हैं

पिछले चुनावों से सबक लेते हुए सभी राजनीतिक दल ‘यादव’ समुदाय पर पूरा जुआं खेल रहे हैं, लेकिन क्या यह बुद्धिमानीभरी रणनीति है? 12 अक्टूबर को पहले चरण में 49 सीटों पर होने वाली वोटिंग के लिए अब तक 89 यादव उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है। यह दिखाता है कि तकरीबन सभी पार्टियों ने यादव उम्मीदवारों पर बहुत ज्यादा भरोसा किया है।

हर पार्टी का अपना एजेंडा और रणनीति है। लालू प्रसाद यादव की आरजेडी यादव समुदाय के वोटों पर अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए उनकी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरना चाहती है। बीजेपी भी चाहती है कि यादव समुदाय को लालू से तोड़ा जाए और यादव वोटबैंक पर आरजेडी की पकड़ ढीली की जाए। मुलायम सिंह यादव भी इस समुदाय पर लालू की पकड़ को कमजोर करना चाहते हैं। यह साबित करना चाहते हैं कि जरूरी नहीं कि सभी यादव लालू में ही अपना नेता देखते हैं। हर एक के पास यादव वोटबैंक को ध्यान में रखकर रणनीति बनाने का अपना कारण है।

आंकड़े अपनी कहानी खुद बयां कर रहे हैं। आरजेडी ने 48 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। जबकि बीजेपी ने 22 यादव उम्मीदवारों को। जेडी(यू) ने 12 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। तीसरा मोर्चा लालू प्रसाद की आरजेडी के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ यादव उम्मीदवार ही उतार रहा है। यह किसी चुनावी रणनीति के बजाय प्रतिक्रियात्मक रणनीति ही नजर आती है।

यह भी सच है कि 2010 के विधानसभा चुनावों में 39 यादव उम्मीदवार जीते थे। इनमें से 27 एनडीए के थे और 10 आरजेडी के। इस वजह से यह आसानी से समझा जा सकता है कि सभी पार्टियां यादव उम्मीदवारों पर भरोसा क्यों कर रही हैं। लेकिन वह जमीनी हकीकतों को भी नजरअंदाज कर रही हैं। 2014 के लोक सभा चुनावों में यादव युवाओं ने मोदी लहर में एनडीए को वोट दिया। इस बार मोदी लहर तो नहीं है, लेकिन युवा पारंपरिक जातिगत राजनीति से प्रभावित नहीं हैं। वे मुद्दाआधारित राजनीति की ओर झुक रहे हैं, जो जातिवाद से कहीं आगे है। 2010 के मुकाबले सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्रभावित करने की क्षमता बहुत ज्यादा है। युवाओं को तो पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है, लेकिन महिलाओं को सीमित अवसर दिए गए हैं। जो यह दिखाता है कि यादव फेक्टर को सभी पार्टियों ने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है।

राहुल गांधी 28 सितंबर को लौटेंगे चुनाव अभियान में

राहुल गांधी अपनी अमेरिका यात्रा को लेकर फिर विवादों में है। इसे टाला जा सकता था। अब खबरें बता रही हैं कि वे 28 सितंबर को लौट आएंगे और बिहार के चुनाव अभियान में फिर शामिल होंगे। राहुल की पश्चिम चंपारन की रैली में अपनी अनुपस्थिति पर नीतीश कुमार ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस को रैली स्थगित करने का अनुरोध किया था। क्योंकि उस समय टिकट आवंटन और घोषणाओं का दौर था। वहां उनका मौजूद रहना जरूरी था। चूंकि कांग्रेस ने रैली की तारीख आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया, इस वजह से उन्हें दूरी बनानी पड़ी। हालांकि, उन्होंने सभी गठबंधन सहयोगियों को सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में अभियान में सक्रियता के साथ भाग लेने की अपील की है। श्रीमती सोनिया गांधी भी इन प्रयासों में जल्द ही शामिल होने वाली हैं। इस बीच, नरेंद्र मोदी 2 अक्टूबर की रैली के साथ बिहार में चुनाव अभियान में दोबारा नजर आएंगे।

चुनाव आयोग की सतर्कता काम आई; नगदी, शराब और हथियार बरामद

कोलकाता में आयकर विभाग ने 27 करोड़ रुपए की नगदी बरामद की है। इनका इस्तेमाल बिहार चुनावों में होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि यह नगदी चुनावों में बांटने के लिए थी। यह पैसा दो बोरों में भरा था। जिसे ट्रेन के जरिए बिहार भेजा जाना था।

इस बीच, बिहार के अलगअलग हिस्सों में पुलिस ने चुनाव आयोग की निगरानी में 11.91 लाख रुपए नगद, 18,685 लीटर शराब और सभी तरह के हथियार और असलाह बरामद किया है। खगड़िया जिले में एक अवैध मिनिगन फैक्टरी और अवैध शराब फैक्टरी का भी पता चला है। इन्हें बंद कर दिया गया है।

पारंपरिक रूप से इनका इस्तेमाल बिहार चुनावों में होता आया है। सभी तरह के बाहुबलि सड़कों पर उतरकर वोटरों को निर्देशित करते देखे जाते रहे हैं। इस बार ज्यादातर बाहुबलि सलाखों के पीछे हैं या उन्हें चुनाव आयोग या पुलिस ने पहले ही धमकाकर रखा है। लेकिन आपराधिक इतिहास रखने वाले उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट मिलना एक चिंताजनक ट्रेंड है। 2010 के पिछले चुनावों में 124 विधायकों ने चुनाव आयोग को बताया है कि उनके खिलाफ आपराधिक केस पेंडिंग है। 85 के खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती मांगने जैसे गंभीर अपराध दर्ज है।

चर्चा में राजनेताः संतोष कुमार, जेडी(यू) (जन्म 5 फरवरी 1976)

संतोष कुमार पुर्णिया संसदीय क्षेत्र से 16वीं लोक सभा के मौजूदा सांसद हैं। उनका जन्म पुर्णिया जिले के कोचेल्ली में नेवीलाल विश्वास और रामसखी देवी के घर हुआ था। उन्होंने पुर्णिया के रामबाग में एसएनएसवाय कॉलेज से बीए किया था। राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर संतोष कुमार कॉलेज दिनों में ही राजनीति में आ गए थे। कॉलेज में रहते हुए बतौर सामाजिक कार्यकर्ता उन्होंने स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए। कई मुद्दों पर चर्चाएं करवाई। उनकी अन्य रुचियों में राजनीतिक हस्तियों की जीवनियां और आत्मकथाएं पढ़ना शामिल है।

2010 और 2014 के बीच, वे बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हैं। सांसद के तौर पर उन्होंने कई समितियों में भी काम किया है।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः झाझा

झाझा झारखंड की सीमा पर जमुई जिले का एक शहर है। जो 9.87 किमी में फैला है। यह शहर दो पक्षी अभयारण्यों के लिए पहचान रखता हैनागी और नक्टी डैम बर्ड सेंचुरी। निचली पहाड़ियों से घिरा यह हरियाली से भरा शहर रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।

2011 की जनगणना के मुताबिक, झाझा शहर की आबादी 40,646 है। इनमें 21,406 पुरुष और 19,240 महिलाएं हैं।

2010 विधानसभा चुनाव परिणाम

  • 2010 विधानसभा चुनावों में विजेताः दामोदर रावत जेडी(यू)
  • जीत का अंतरः 10,204 वोट्स; 8.22% कुल वैध मतों का
  • निकटतम प्रतिद्वंद्वीः बिनोद प्रसाद यादव, आरजेडी
  • पुरुष वोटर्सः 67,076; महिला वोटर्सः 57,034; कुलः 1,24,114
  • मतदान प्रतिशतः 51.62
  • पुरुष उम्मीदवारः 18; महिला उम्मीदवारः 0
  • मतदान केंद्रः 269

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