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बिहार चुनावः बीफ पर सियासत की चपेट में बिहार

October 6, 2015


लालू की टिप्पणी से बीजेपी को मिला चुनावों में बीफ पर राजनीति का मौका

बीफ खाने के महज संदेह पर दादरीयूपी में एक मुस्लिम की दुखद हत्या तेजी से राजनीति का गंदा खेल बन रही है। सभी पार्टियां इस घटना का सियासी फायदा उठाने के लिए सक्रिय हो गई हैं।

यूपी में जो भी हुआ, उसका असर अब बिहार में भी दिखने लगा है। कई विश्लेषकों आश्चर्य के साथ ही यह भी कहने लगे हैं कि क्या बिहार चुनावों से ठीक पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए यह घटना हुई है। यूपी और बिहार के राजनीतिक दलों के बयानों से इतना तो संकेत साफ है कि ध्रुवीकरण हो रहा है। दादरी घटना पर बोलने की शुरुआत लालू प्रसाद ने की। कड़े शब्दों में निंदा करते हुए उन्होंने बीजेपी और आरएसएस को चेताया कि इस मुद्दे पर वोटर्स का ध्रुवीकरण करने की कोशिश न करें। लेकिन बातोंबातों में वे इससे आगे बढ़ गए। यह भी कह गए कि विदेश जाने पर हिंदू भी बीफ खाते हैं। इस पर ‘गोहत्या’ को एक चुनावी मुद्दा बना रहे बीजेपी और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों ने इस मुद्दे को लपक लिया है।

लालू प्रसाद की टिप्पणी का जवाब देते हुए बीजेपी के सुशील कुमार मोदी ने कहा कि चुनावी मुकाबला अब गोमांस खाने और न खाने वालों के बीच हो गया है। विवाद को आगे बढ़ाते हुए, मोदी ने सवाल उठाया कि क्या यदुवंशी (यादव समुदाय के सदस्य) गोहत्या के पक्ष में हैं। उन्होंने महागठबंधन को चुनौती भी दे डाली कि वे बिहार में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाकर दिखाएं। उन्होंने यह भी कहा कि सत्ता में आने पर बीजेपी राज्य में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाएगी। जैसा कि राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ और गुजरात में किया है।

घटनाओं ने खतरनाक मोड़ ले लिया है। यूपी के विवादित सपा नेता आजम खान ने कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूएन जाने की धमकी तक दे डाली। उनका कहना है कि आरएसएस और बीजेपी समेत अन्य दक्षिणपंथी धार्मिक समूहों से मुस्लिम समुदाय को खतरा है। यह समूह गोहत्या के बहाने सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि केंद्र इन कट्टर तत्वों पर नकेल कसने में नाकाम या अनिच्छुक है तो मदद मांगने के लिए यूएन जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह जाता।

यह घटनाक्रम बहुत ही खतरनाक है। इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर दिख सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका असर बिहार के चुनावों पर भी दिखेगा। सपा राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसे मुस्लिम समुदाय के साथ ही यादवों का भी समर्थन मिला हुआ है। यह दोनों समुदाय मिलकर राज्य की 30 प्रतिशत आबादी हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि वह गोमांस खाने और न खाने वालों के बीच वोटरों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब होती है तो यादव वोटबैंक टूटेगा और यादव समुदाय का कुछ हिस्सा बीजेपी को समर्थन दे सकता है। यह दोधारी तलवार है और इस वजह से सभी को ध्रुवीकरण की इन कोशिशों को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।

सपा के नेतृत्व वाली यूपी सरकार को सक्रियता दिखानी पड़ी और अपराध के कथित साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार करना पड़ा। लेकिन इससे दादरी में ध्रुवीकरण को और बढ़ावा मिल गया। अब दादरी से शुरू होकर सांप्रदायिक तनाव अन्य इलाकों में भी फैलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

बीजेपी केंद्र में सत्तासीन है। उसकी जिम्मेदारी बनती है सांप्रदायिक ताकतों को काबू में रखें। लेकिन केंद्र में बीजेपी के पिछले डेढ़ साल के शासन में इसका उलट ही देखने को मिला है। इसके जैसे संवेदनशील मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी की वजह से तनाव बढ़ता जा रहा है। उनकी चुप्पी दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों को और मुखर बना रही है।

पिछले 16 महीनों में पीएम मोदी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भारत और उसकी क्षमताओं को प्रोजेक्ट कर बेहतरीन काम किया है। हालांकि, इन संवेदनशील मुद्दों पर उनकी चुप्पी अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आंखों में उनके अच्छे कामों पर पर्दा डाल रही है। भारत विकसित देश होने के मुहाने पर है, लेकिन यदि हमारे यहां घरेलू राजनीति की दिशादशा सही नहीं रही तो सदियों में एक बार सामने आया मौका भारत गंवा सकता है।

लालू के बेटों की उम्र पर भ्रम की स्थिति

लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने वैशाली जिले के महुआ विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया है, जबकि उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने इसी जिले के राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया है। अब, उनके नामांकनों से पता चला कि बड़े बेटे तेज प्रताप की उम्र 25 वर्ष, जबकि तेजस्वी की उम्र 26 वर्ष दिखाई गई है।

पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, तेजस्वी की उम्र 26 वर्ष सही है, जबकि उनके बड़े भाई की उम्र 28 वर्ष है। तो यह भ्रम की स्थिति बनी कैसे? क्या यह टाइपिंग की त्रुटि है या गुमराह करने की जानबूझकर की गई कोशिश? चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिका उम्मीदवारों के नामांकन पत्र और एफिडेविट स्वीकार करने तक ही सीमित है। नामांकन पत्रों की जांच बाद में होगी और यदि उसमें कोई सूचना गलत मिलती है तो नामांकन खारिज भी किया जा सकता है। हालांकि, सभी उम्मीदवारों को नामांकनों के चार सेट दाखिल करने का मौका दिया जाता है। इसमें आखिरी आवेदन को ही अंतिम मान लिया जाता है। ऐसे में लालू के बेटों के पास अब भी गलती सुधारने और रिकॉर्ड को सही करने का मौका है।

चर्चा में नेताः राजेश रंजन (पप्पू यादव), आरजेडी (जन्म 24 दिसंबर 1967)

राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव बिहार के मधेपुरा से 16वीं लोक सभा में मौजूदा सांसद हैं। उनका जन्म बिहार के पुर्णिया में चंद्र नारायण प्रसाद यादव और शांति प्रिया के घर हुआ था। पप्पू यादव 1990 में पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य बने। 1991 में वे 10वीं लोक सभा के लिए सांसद चुने गए। तब से अब तक पांच बार सांसद चुने गए हैं। वे केंद्र में कई समितियों के सदस्य रहे हैं। साथ ही राज्य की राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः सिकंदरा (अनुसूचित जाति)

मुंगेर संभाग के जमुई जिले की विधानसभा सीट है सिकंदरा। जमुई से पश्चिम में 23 किलोमीटर दूर स्थित सिकंदरा एक विकासखंड मुख्यालय है। सिकंदरा लखीसराय और जमुई जिलों की सीमा पर स्थित है। इससे आर्थिक तौर पर यह जमुई और लखीसराय दोनों ही जिलों से जुड़ा है। आसपास के अन्य शहरों में बरहिया और शेखपुरा शामिल है। निकटतम रेलवे स्टेशन जमुई रेलवे स्टेशन है।

2010 विधानसभा चुनाव परिणामः

  • 2010 विधानसभा चुनाव विजेताः रामेश्वर पासवान जेडी(यू)
  • जीत का अंतरः 12,361; कुल वैध मतों का 11.91%
  • निकटतम प्रतिद्वंद्वीः सुभाष चंद्र बोश, एलजेपी
  • पुरुष वोटर्सः 54,738; महिला वोटर्सः 49,085; कुलः 1,03,824
  • मतदान प्रतिशतः 45.57
  • पुरुष उम्मीदवारः 11; महिला उम्मीदवारः1
  • मतदान केंद्रः 271