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बिहार महाभारतः चुनावों में काले धन का इस्तेमाल रोकने के लिए प्रतिबद्ध है चुनाव आयोग

September 14, 2015


चुनावों में काले धन का इस्तेमाल रोकने के लिए प्रतिबद्ध है चुनाव आयोग

बिहार चुनाव आयुक्त का दफ्तर बिहार के आने वाले विधानसभा चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। पांच चरणों में होने वाली मतदान की तारीखें तय करने से पहले सावधानी से चुनावों की योजना बनाई गई। चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित किया है कि आने वाले त्योहारी मौसम से मतदान की तारीखें न टकराए। साथ ही तारीखों के बीच अर्द्धसैनिक बलों को एक जगह से दूसरी तक पहुंचने के लिए पर्याप्त वक्त मिल जाए। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अर्द्धसैनिक बलों के 50 हजार जवानों को राज्य के अलगअलग हिस्सों में तैनात किया जाएगा।

बिहार ने पिछले कुछ वर्षों में वोट हासिल करने के लिए कई तरह की अवैध गतिविधियों को भी देखा है। इनमें काले धन के बढ़ते इस्तेमाल, नकली नोटों को बाजार में लाना, शराब बांटना और वैध व अवैध हथियारों का जखीरा बनाना शामिल है। चुनाव आयोग ने 62 विधानसभा क्षेत्रों की पहचान की है, जहां काले धन के वितरण की संभावना है। इसे रोकने के उपाय भी किए हैं।

हाल ही में प्रशासन ने पश्चिम चंपारन जिले से 10 लाख रुपए के नकली नोट बरामद किए थे। एहतियात के तौर पर, इन गतिविधियों पर नजर रखने के लिए 40 ऑब्जर्वर तैनात किए गए हैं। इन्हें आय कर, केंद्रीय अंकेक्षण सेवाएं और कस्टम्स से लाया गया है। चुनाव संहिता का कड़ाई से पालन करवाने के लिए इन्हें अलगअलग जगहों पर तैनात किया गया है। इससे पहले, चुनाव आयोग ने चुनावों के दौरान सभी संबंधित अधिकारियों को मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी या स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए एक दिन की कार्यशाला का आयोजन किया।

वोटिंग की व्यवस्था को मजबूती देने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने घोषणा की है कि इस बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सभी उम्मीदवारों की तस्वीर भी होगी। इससे मतदाताओं को मदद मिलेगी। आयोग ने महसूस किया कि एक जैसे नामों की वजह से मतदाता भ्रमित होते हैं। इस वजह से तस्वीरें लगाने का कदम उठाया गया। यह नई सुविधा मतदाताओं को अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट डालने में भी मदद करेगी।

शुक्रवार को, एक मीडिया चैनल की ओर से आयोजित बिहार कॉन्क्लेव में सभी प्रमुख राजनेता मौजूद थे। कुछ वक्ता जिन्होंने ध्यान खींचा, उनमें नीतीश कुमार, हमेशा विविध रंगों में नजर आने वाले लालू प्रसाद यादव, बिहार से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद, बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों में से एक सुशील कुमार मोदी शामिल हैं। इनमें हर एक ने अपनी दलीलों से विरोधियों का मुंह बंद करने की कोशिश की।

लालू प्रसाद हमेशा की तरह अपने अलग अंदाज में दिखे। उन्होंने प्रधानमंत्री की अबु धाबी में मस्जिद जाने को लेकर आलोचना की। प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने पूछा कि पीएम ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी क्यों नहीं किए हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि हमारे यहां भी तो कई मस्जिदें हैं, प्रधानमंत्री को यूएई में ही मस्जिद में क्यों जाना पड़ा। रवि शंकर प्रसाद ने पीएम मोदी की उपलब्धियों का बचाव किया। यह भी बताया कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो क्या करेगी।

दलित वोटों का वास्तविक प्रतिनिधि कौन, इस पर अंदरूनी लड़ाई शुरू

बीजेपी बिहार के दो बड़े दलित नेताओं – राम विलास पासवान और जीतन राम मांझी को अपने खेमे में लाने में कामयाब रही है। अब समस्या यह है कि दोनों में दलितों का सच्चा प्रतिनिधि साबित करने की होड़सी मच गई है। राम विलास पासवान दावा करते हैं कि वे राष्ट्रीय स्तर के दलित नेता हैं। वहीं जीतन मांझी का कहना है कि वे मुख्यमंत्री रह चुके हैं, इस नाते दलितों के सच्चे प्रतिनिधि हैं। मांझी ने तो आगे बढ़कर राम विलास पासवान पर यह आरोप भी लगा दिया कि उन्होंने दलितों के लिए कुछ नहीं किया। सिर्फ अपने बेटे और भाइयों को ही राजनीति में आगे बढ़ाया है। इस दुश्मनी का दलित वोटरों पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा।

इस बीच, दोनों ही दलित नेता ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की कोशिश में है। इससे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए दोनों को खुश रखना बड़ी चुनौती बन गई है। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) को 25 विधानसभा सीटें और एक राज्यसभा सीट मिल सकती है। उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को भी 30 विधानसभा सीटें और एक राज्यसभा सीट मिल सकती है। बीजेपी किसी भी वक्त सीटों के बंटवारे के फार्मूले का ऐलान कर सकती है।

इन नेताओं पर रहेगी नजरः जीतन राम मांझी (जन्म 6 अक्टूबर 1944)

गया में जन्में जीतन राम मांझी बिहार के 23वें मुख्यमंत्री थे। दलित नेता मांझी कांग्रेस (1980-1990), जनता दल (1990-1996), राष्ट्रीय जनता दल (1996-2005) और जेडी(यू) (2005-2015) के सदस्य रहे हैं। उन्होंने बिहार के कई मुख्यमंत्रियों के मातहत काम किया है। इनमें सत्येंद्र नारायण सिन्हा, जगन्नाथ मिश्रा, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और नीतीश कुमार शामिल हैं।

उन्होंने जुलाई 2015 में अपनी पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) नाम से पार्टी बनाई। इससे पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के मंत्री रहे हैं। 2014 के लोक सभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। तब मांझी को इस कुर्सी पर बैठने का मौका मिला था। उन्होंने 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मतभेदों को लेकर इस्तीफा दे दिया।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः बेतिया

बेतिया पश्चिमी चंपारन जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह भारतनेपाल सीमा के पास स्थित है। बेतिया से ही महात्मा गांधी ने 1917 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलाई थी। 2011 की जनगणना के मुताबिक, शहर में 1,32,209 की आबादी है। साक्षरता दर है 82.54 प्रतिशत।

2010 के विधानसभा चुनावों में विजेताः रेणु देवी, बीजेपी

जीत का अंतरः 28,789 वोट्स; कुल वैध मतों का 27.12%

निकटतम प्रतिद्वंद्वीः अनिल कुमार झा, निर्दलीय

पुरुष मतदाताः 57,256; महिला मतदाताः 48,484; कुलः 1,06,174

मतदान प्रतिशतः 55.26

चुनाव लड़ने वाले पुरुष उम्मीदवारः 17; महिला उम्मीदवारः 1

मतदान केंद्रः 189