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बिहार महाभारतः क्या बिहार में सभी राजनीतिक दलों ने मुस्लिम समुदाय को छोड़ दिया है?

September 28, 2015


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लगता तो ऐसा ही है। आर्थिक, शैक्षणिक, भौतिक सुविधाओं और स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं के कई सूचकांक पर हालिया एनएसएसओ की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है।

बिहार के सभी हिस्सों में, खास तौर पर मुस्लिम बहुलता वाले सीमांचल इलाके में, मुस्लिम समुदाय का प्रदर्शन सभी सूचकांकों पर सामान्य से भी कमतर रहा है। यह समुदाय अब भी सरकारी अनदेखी का खामियाजा भुगत रहा है। बिहार में यह समुदाय 14.6 प्रतिशत है। लेकिन तुलनात्मक रूप से इनकी बेहतरी के लिए काफी कम पैसा खर्च किया गया है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनावदरचुनाव, सभी पार्टियों ने अपने मुस्लिम उम्मीदवारों के जरिये यह जताने की कोशिश की है कि वे समुदाय को अपना मानते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत से साबित होता है कि एक बार चुनाव खत्म होने के बाद समुदाय को अपनी पुरानी हालत पर छोड़ दिया जाता है। राज्य में सरकार चला रही सरकार के लिए यह समुदाय विकास और निवेश की प्राथमिकता में पीछे चला जाता है।

आजादी के बाद से बिहार में राज करने वाली हर सरकार ने आंकड़ेबाजी के जरिए यह साबित करने की कोशिश की है कि उसने उससे पहले की सरकार के मुकाबले राज्य में बहुत बड़ा बदलाव लाया है। नीतीश कुमार सरकार का बीजेपी के साथ का शासन हो या बिना बीजेपी वाला शासन, बिहार में हमेशा से विकास और आर्थिक तरक्की को लेकर बड़ेबड़े दावे होते रहे हैं। हो सकता है कि यह आंकड़े सच हो, या उसका कुछ हिस्सा ही सच हो, हकीकत यह ही है कि मुस्लिम समुदाय तक विकास की बूंदें काफी कम पहुंची हैं। यह समुदाय आज भी बहुत खराब जीवन जीने को मजबूर है।

लालू प्रसाद की सरकार का प्रदर्शन तो और भी खराब था। लेकिन यह विडंबना ही है कि हर पार्टी और गठबंधन ने समुदाय को लगातार सीढ़ी बनाकर सत्ता हासिल की। लेकिन सत्ता में आने के बाद यह समुदाय सरकार की प्राथमिकताओं में पिछड़ता ही रहा।

इसका दोष कई मुस्लिम नेताओं को भी जाता है, जिन्होंने चुने जाने के बाद अपने विधानसभा क्षेत्रों में कुछ बड़े काम नहीं किए। क्या यह चुनाव कुछ अलग साबित होंगे? सभी पार्टियों के लिए इस मुद्दे पर सहमत होने का वक्त आ गया है कि 14.6 प्रतिशत आबादी को पीछे छोड़कर आप सिर्फ ओबीसी, ईबीसी, एससी और एसटी के लिए काम करने से बिहार आगे नहीं बढ़ सकेगा। राजनीतिक दलों को इस बात पर सहमत होना होगा कि बदलाव का वक्त आ गया है। बिहार को आगे लाना है तो सभी समुदायों को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा।

क्या मोदी की सफल अमेरिका यात्रा का बिहार चुनावों पर असर पड़ेगा?

नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा व्यक्तिगत और देश के नजरिए से सफल कहा जा सकता है। यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में बदलाव लाने के लिए जी-4 को साथ लाने और पहली बार जीसम्मेलन की मेजबानी करने में भारत सफल रहा। इसके बाद उनकी फेसबुक, एपल, टेस्ला और सैप ऑफिसों की हाईप्रोफाइल यात्रा हुई, जहां उन्होंने सार्वजनिक तौर पर भाषण भी दिए। फेसबुक में उनकी मुलाकात सबसे महत्वपूर्ण रही। अपनी जिंदगी में मां के योगदान की बात करते हुए प्रधानमंत्री की आंखों में आंसू आ गए। हकीकत यह है कि पूरे दौरे को मीडिया ने सक्रियता के साथ कवर किया। इससे नरेंद्र मोदी और भारत का रुतबा बढ़ा है।

उनके दौरे का प्रसारण बिहार में भी देखा गया होगा और निश्चित तौर पर एनडीए के चुनाव अभियान पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। फिर गूगल ने 500 रेलवे स्टेशनों पर वाईफाई लगाने पर सहमति जताई है। इसमें कुछ स्टेशन बिहार में भी होंगे। वोटर्स के बीच यह एक सकारात्मक संदेश जाएगा। माइक्रोसॉफ्ट ने भी पांच लाख गांवों को कम लागत वाले ब्रॉडबैंड कनेक्शन पहुंचाने की पेशकश की है। बिहार के गांवों को भी इसका लाभ मिलने वाला है। नरेंद्र मोदी को अब चुनाव अभियान में लौटना होगा और बिहार के लोगों को बताना होगा कि उनके प्रयासों का उन्हें किस तरह फायदा होने वाला है।

अपने बेटे के समर्थन में लालू प्रसाद हुए आक्रामक

लालू प्रसाद का बेटा तेजस्वी ‘यादव’ बहुल राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहा है। उसके समर्थन में लालू प्रसाद ने पिता की भूमिका निभाई और तेरासिया गांव की रैली में पूरी ताकत से भावुक अपील की। तेजस्वी का मुकाबला लालू प्रसाद के ही पूर्व सहयोगी राम कृपाल यादव से है।

मोहन भागवत के कथित आरक्षण वापस लेने के दावे का डर दिखाकर लालू ने आरएसएस और बीजेपी को चुनौती दे दी कि वे आरक्षण हटाकर दिखाएं। लालू को पता है कि यह विधानसभा क्षेत्र यादव बहुल है। इसी वजह से उन्होंने वहां आए लोगों के मन की बात कहने की कोशिश की। उन्हें धार्मिक और जातिगत आधार पर उकसाया। लेकिन अपने यादव होने और जमीन के बेटे होने के दावे के बीच उन्होंने विकास पर काफी कम बात की। यह भी नहीं बताया कि राघोपुर में तेजस्वी क्या करने वाला है। अभी चुनावों तक लंबा इंतजार करना होगा। यह देखने के लिए कि लोग लालूतेजस्वी की संयुक्त अपील पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।

बिहार में पहली बार नोटा का भी होगा चिह्न; चुनाव आयोग ने दी मंजूरी

पहली बार बिहार के लोग वोटिंग के दौरान नोटा या ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ विकल्प का इस्तेमाल चिह्न देखकर कर सकेंगे। नया लोगो अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन ने डिजाइन किया है। व्यापक जमीनी सर्वेक्षणों और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों, खासकर अनपढ़ों की प्रतिक्रिया लेने के बाद इसका चुनाव किया गया है।

अब चुनाव आयोग के दफ्तर को यह सुनिश्चित करना है कि बिहार के लोग नोटा के विकल्प को अच्छेसे समझे और जहां इसका इस्तेमाल होना चाहिए, वहां करे।

चर्चा में राजनेताः असरारुल हक मोहम्मद, कांग्रेस (जन्म 15 फरवरी 1952)

असरारुल हक मोहम्मद 16वीं लोकसभा में किशनगंज से मौजूदा सांसद हैं। उनका जन्म किशनगंज जिले के ताराबाड़ी गांव में मुंशी उमेद अली और आमना खातुन के यहां हुआ था।

असरारुल मोहम्मद ने उत्तरप्रदेश के प्रसिद्ध दारुल उलूम –देवबंद के फाजिलदारुल उलूम देवबंद से पढ़ाई की। उन्होंने पूरी जिंदगी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम किया। सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर लिखने वाले वे प्रतिष्ठित लेखक भी हैं। लेखक के अपने करियर में उनके विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक विषय पर 10 हजार से ज्यादा आलेख छपे हैं।

वे ऑल इंडिया तालिमी व मिल्ली फाउंडेशन के अध्यक्ष, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के उपाध्यक्ष, जमायत उलेमाहिंद के सचिव और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य हैं। राजनीति में सक्रिय रहते हुए वे किशनगंज से 15वीं लोकसभा में सांसद चुने गए। 16वीं लोकसभा में दोबारा उनका चुनाव हुआ।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः दरभंगा

दरभंगा जिले में 18 विकासखंड और 329 पंचायतें हैं। यह जिला 2,279 वर्ग किमी में फैला है। चार प्रमुख नदियांकोसी, बागमती, कमला और कारेह, इससे होकर बहती है।

2011 की जनगणना के मुताबिक, कुल आबादी 39,37,385 लाख है। इनमें से 20,59,949 पुरुष और 18,77,436 महिलाएं हैं। यहां की मुख्य भाषाएं मैथिली, हिंदी और उर्दू है।

2010 विधानसभा चुनाव परिणामः

  • 2010 विधानसभा चुनाव में विजयीः संजय सराओगी, बीजेपी
  • जीत का अंतरः 22,554 वोट्स; कुल वैध मतों का 23.23%
  • निकटतम प्रतिद्वंद्वीः सुल्तान अहमद, आरजेडी
  • पुरुष वोटर्सः 64,225; महिला वोटर्सः 54,366; कुलः 1,18,600
  • मतदान प्रतिशतः 52.14
  • चुनाव लड़ने वाले पुरुष उम्मीदवारः 11; महिला उम्मीदवारः 0
  • मतदान केंद्रः 238

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