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बिहार चुनावः लालू प्रसाद ने वोटर्स को दुविधा में डाला

October 21, 2015


दुविधा में हैं बिहार के वोटर

बिहार के वोटर्स इस समय दुविधा का सामना कर रहे हैं। वे सीधेसीधे नीतीश कुमार और उनकी जेडी(यू) को पसंद कर रहे हैं और उतना ही लालू प्रसाद और उनकी आरजेडी से बच भी रहे हैं। 10 साल से ज्यादा वक्त से बिहार इस पर स्पष्ट रहा है। लेकिन 2015 में उन्हें एनडीए के उम्मीदवारों के खिलाफ लालू के उम्मीदवारों को चुनना पड़ रहा है। यह उनके लिए हॉब्सन के चुनाव जैसा है। उन्हें ऐसा चुनाव करना पड़ रहा है, जो वे नहीं चाहते। एक तरफ बीजेपी है, जिसे ज्यादातर लोग ऊपरी जातियों और सांप्रदायिक ताकतों का पर्याय मानते हैं। निश्चित तौर पर वह चुनने लायक विकल्प तो नहीं है।

बिहार के धूल भरे गांवों से होकर गुजरने पर पता चलता है कि बड़ा हिस्सा कई दशकों से बदला नहीं है। रोजमर्रा की जिंदगी किसी संघर्ष से कम नहीं है। उनके वोट मांगने के लिए बाहरी लोग आए, तब अभियान के शोर से वे टूट पड़े। उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प है। अपनी जाति के किसी प्रत्याशी को वोट करो और प्रार्थना करो कि उनकी जिंदगी में कुछ न कुछ बदलाव आ जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि उनकी पसंद जेडी(यू) ही है। वे लालू पर नीतीश को प्राथमिकता दे रहे हैं।

लेकिन इस साल जेडी(यू) ने 100 विधानसभा क्षेत्र आरजेडी के लिए छोड़े हैं। अब इन इलाकों के लोग दुविधा में है। ज्यादातर के लिए लालू मनोरंजन करने वाले बने रहेंगे, लेकिन प्रशासन को लेकर उनका भरोसा सिर्फ नीतीश पर है। उनके सामने बीजेपी भी केंद्र में है और उन्हें पता है कि यदि बीजेपी राज्य में भी जीती या आरजेडी को वोट डाला तो लोगों को फिर पांच साल के लिए बदलाव का इंतजार करना पड़ेगा।

भले ही नीतीश कुमार ने अच्छे काम किए हैं, लेकिन सड़क पर चलने वाले लोगों के लिए पांच साल में बहुत ज्यादा चीजें नहीं बदली हैं। लेकिन अब उनके सामने विकल्प है कि वे जेडी(यू) के विस्तारित शाखा के तौर पर आरजेडी को चुने या बीजेपी के बड़ेबड़े वादों में डूब जाएं। यह आसान विकल्प नहीं है। यही तो वक्त है, जब उनकी बात मायने रखती है। इसके बाद पांच साल के लिए फिर चुप्पी हो जाएगी। लालू जी, आपने हमें कहां रखा है?

मोदी पर बरसे नीतीश कुमार – ‘वह मैं नहीं था’

एक टीवी चैनल से बातचीत में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी और उनके बीच पुराने विवादों को खोलकर रख दिया। वह 2010 के उन दिनों की याद कर रहे थे, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले थे और नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

गठबंधन सहयोगी होने के नाते, नरेंद्र मोदी बिहार में जेडी(यू) की सत्ता में भागीदार बीजेपी के पक्ष में प्रचार के लिए आने वाले थे। जून 2010 में नीतीश कुमार ने बिहार आने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेतृत्व के सम्मान में एक डिनर पार्टी रखी थी। उस समय नरेंद्र मोदी भी बिहार में थे। मुस्लिमों से अच्छाखासा समर्थन जुटाने वाले नीतीश कुमार ने मोदी से दूरी बनाई। गोधरा दंगों के समय उनके मुख्यमंत्री होने से जुड़े विवादों को आधार बनाया। बात आईगई हो गई। नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के प्रति असहमति जताने के लिए डिनर पार्टी रद्द कर दी। यहीं से दोनों के बीच मतभेदों का सिलसिला शुरू हुआ।

इस विवाद पर नीतीश कुमार ने साफ किया कि डिनर उन्होंने नहीं किया। बल्कि उन्होंने पूरा दोष बीजेपी नेता और उस समय के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा कि यह फैसला बीजेपी का था, मेरा नहीं। उन्होंने दावा किया कि उन्हें बताया गया था कि डिनर कैंसल कर दिया गया है। इसमें उनका कोई हाथ नहीं था। वे यह भी साफ कर गए कि व्यक्तिगत रूप से उन्हें मोदी से कोई बैर नहीं है। लेकिन उनका रुख सैद्धांतिक है। जिसे वे आज भी बनाए रखे हैं।

दशहरे पर लालू को बीजेपी में दिखा ‘पॉलिटिकल रावण’

लालू फिर मुखर हो गए हैं। चुनाव आयोग हो या न हो, लालू को सुर्खियों में आने से कोई नहीं रोक सकता। दुर्गा पूजा चल रही है और मां दुर्गा दशहरे पर दैत्य महिषासुर वध के लिए तैयार है। लेकिन लालू के लिए यह मौका मां दुर्गा को बीजेपी के पॉलिटिकल रावण को खत्म करते हुए देखने का है।

लालू प्रसाद इस बात से पूरी तरह अनजान बने हुए हैं कि उन्हें चारा घोटाले में दोषी ठहराया गया है। उन्हें कुछ वक्त जेल में भी रहना पड़ा था। चुनाव भी नहीं लड़ पा रहे हैं। लेकिन लालू को कोई चिंता नहीं है। वे इसके बारे में बात तक नहीं करना चाहते। वे नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। उनके खिलाफ पिछले महीने एक एफआईआर दर्ज हुई थी। चुनाव आयोग ने उन्हें प्रचार के दौरान संयम बरतने को कहा है। लेकिन लालू तो लालू हैं, वे अपना काम पहले जैसा ही कर रहे हैं। उनका सिंगल पॉइंट एजेंडा हैदोनों बेटों की जीत। आखिरकार यही तो प्रासंगिक बने रहने की उनकी इकलौती उम्मीद है।

तीसरे दौर के मतदान में बक्सर में मुलायम सिंह की परछाई

बिहार के पश्चिमी सिरे पर स्थित बक्सर जिले में 28 अक्टूबर को मतदान होगा। पूर्वी उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा जिला होने से दोनों ही राज्यों में एकदूसरे का अच्छा असर देखा जा सकता है। मुलायम सिंह भी इन इलाकों के नतीजे बारीकी से देख रहे हैं।

वे महागठबंधन से बाहर निकले हैं। इस वजह से उनका काफी कुछ दांव पर है। वे मुस्लिम वोट बैंक से समझौता किए बिना बीजेपी के पास नजर आ रहे हैं। मुलायम सिहं की सपा और उनका तीसरा मोर्चा सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। लेकिन बक्सर सपा के लिए महत्वपूर्ण है। यहां की जीतहार का असर पूर्वी उत्तरप्रदेश की उनके निर्वाचन क्षेत्र में भी दिखेगा।

उत्तर में गंगा है तो दक्षिण में बिहार भभुआ और रोहताश जिले और बीच में बसा है बक्सर जिला। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि पूर्वी उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती जिलों में गाजीपुर और बलिया शामिल है। गाजीपुर में मनोज कुमार सिन्हा मौजूदा बीजेपी सांसद है, जबकि बलिया में भरत सिंह बीजेपी के सांसद हैं। दोनों का ही जिले में अच्छाखासा असर है, लेकिन विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा है। यह बिहार के सीमावर्ती इलाकों में वोटर्स पर असर दिखाता है।

बक्सर में चार विधानसभा सीटें हैं। महागठबंधन का ब्रेकअप यह है कि जेडी(यू) दो, आरजेडी और कांग्रेस 1-1 सीट पर चुनाव लड़ रही हैं। इस वजह से मुलायम फेक्टर किसी भी अन्य जिलों के मुकाबले यहां ज्यादा महत्वपूर्ण है।