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बिहार चुनावः बिहार से ज्यादा बीजेपी का भविष्य तय होगा

November 7, 2015


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कल के नतीजे बताएंगे कि बिहार में अगले पांच साल तक किसका राज होगा। लेकिन क्या यह नतीजे बिहार के भविष्य के हैं या बीजेपी के भविष्य के?

2015 के बिहार विधानसभा चुनावों का असर देश की राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ने वाला है। इस लिहाज से देश के सभी राजनीतिक दलों की इन चुनावों पर करीबी नजर थी। 2019 के आम चुनावों तक के लिए राजनीति की दशादिशा भी इसी बात से तय होने वाली है।

यह चुनाव बिहार से ज्यादा बीजेपी के लिए अहम है। बिहार पर दशकों तक किसी किसी ऐसी पार्टी ने शासन किया, जिसमें विकास की गति धीमी थी। बिहार के नागरिकों ने धीमी गति के विकास को अपरिहार्य मानकर स्वीकार कर लिया है। फिर नीतीश कुमार आए, उन्होंने स्थानीय लोगों के मन में बदलाव की उम्मीद जगाई। कम से कम देश के अग्रणी राज्यों में शुमार करने का विश्वास तो जगाया ही। उन्होंने इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता भी दिखाई। बिहार ने दिखा दिया कि वह भारत के बाकी हिस्सों से होड़ करने को तेजी से तैयार हो रहा है। लेकिन 2014 के आम चुनावों में राजनीतिक समीकरण ही बदल दिए। 2015 में बिहार में अगली सरकार बनाने में बीजेपी सबसे तगड़ी दावेदार बनकर उभरी है।

यदि बीजेपी बिहार में जीती तो क्या होगा?

ऐसी पार्टी के लिए जिसने राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में अपना डंका बजाया हो, ऐसी बीजेपी के लिए बिहार का काफी महत्व है। लोक सभा में उसका विकेट मजबूत है, लेकिन राज्य सभा में कम संख्या होने की वजह से उसके विकास एजेंडे को कई अवरोधों का सामना करना पड़ रहा है। इस वजह से बिहार जीतना पार्टी के लिए सबसे अहम है। यहां की एक जीत पार्टी को राज्यसभा में मजबूत करेगी। ब्रांड मोदी को भी देश में बदलाव और विकास के शुभंकर के तौर पर दोबारा स्थापित कर सकेगी।

दिल्ली हारने के बाद बीजेपी के लिए बिहार इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि वह इसके जरिए क्षेत्रीय पार्टियों को यह मजबूत संकेत दे सकती है कि वह राज्यों में जमीनी स्तर की राजनीति को प्रभावित कर अपनी जगह बना सकती है। उनके क्षेत्र में आकर उन्हें हरा सकती है। असम, बंगाल, तमिलनाडु और केरल में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में यदि बिहार में उसे स्पष्ट बहुमत मिलता है तो इन राज्यों में उसे अच्छा रेस्पांस मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

यह जीत मोदीशाह को अजेय जोड़ी की राजनीतिक मान्यता भी ताकतवर होगी। लंबे अरसे से पार्टी के भीतर ही अमित शाह के काम करने के तौरतरीकों पर सवाल उठ रहे हैं। यहां अगर जीत मिलती है तो अमित शाह पार्टी में नंबर दो के पावर सेंटर बन जाएंगे।

विकास के मुद्दे पर बीजेपी ने छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में अपनी प्रशासनिक क्षमता से विकास के एजेंडे को सफलतापूर्वक लागू किया है। विकास में यह राज्य कभी पिछड़े थे, लेकिन आज यह राज्य अन्य पिछड़े राज्यों को आगे बढ़ने की मिसाल पेश कर रहे हैं।

बीजेपी को यह पता है कि वह बिहार को तेजीसे बदल सकती है। बिहार में यदि कोई भी सकारात्मक प्रभाव वह डालपाती है तो उसके लिए पूर्व और पूर्वोत्तर का रास्ता खुलेगा। पूर्व में पश्चिम बंगाल में घुसपैठ बनाना उसके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होगा। बिहार की जीत इसमें काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

यदि बीजेपी हार गई तो क्या होगा?

राजनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए बिहार में सबकुछ दांव पर लगा है। 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने दो धड़ों में ध्रुवीकरण करने में कामयाबी पाई थी। एक खेमा नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी बनने के समर्थन में था और दूसरा विरोध में। अंदरूनी विरोध भी इतना ज्यादा बढ़ गया था कि पार्टी के प्रचार अभियान को ही उससे नुकसान पहुंचने का अंदेशा था।

इस पृष्ठभूमि में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और राजनीतिक सहयोगी अमित शाह के साथ से सिर्फ 2014 का आम चुनाव जीता, बल्कि उसके बाद के ज्यादातर राज्यों के विधानसभा चुनाव भी जीते। इससे नरेंद्र मोदी एक निर्णायक नेता के तौर पर उभरे जो भारत को 21वीं सदी में आगे लेकर जाएगा। अमित शाह की राजनीतिक विद्वता भी सामने गई। यह भी साबित हो गया कि देश की राजनीतिक नब्ज पर उनसे अच्छी पकड़ किसी की नहीं है। दिल्ली होने तक यही कायम था। और अब पार्टी के भीतर जो तत्व सही मौके का इंतजार कर रहे थे, वह सक्रिय हो गए हैं। दिल्ली के बाद उन्होंने दोनों के पार्टी को अपने शिकंजे में कसने को लेकर तंज मारने शुरू कर दिए हैं।

अमित शाह को उनके कामकाज के तरीके की वजह से आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। उनकी राजनीतिक रणनीति पर , खासकर दिल्ली के चुनावों के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। यहां की हार उनके खिलाफ पार्टी के भीतरी तत्वों को ताकत देगी। इसका असर यह हो सकता है कि अमित शाह अन्य राज्यों में पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व कर सके। इससे नरेंद्र मोदी ही कमजोर होंगे, जो अमित शाह में अपने सबसे करीबी और विश्वस्त सिपहसालार को देखते हैं। एक ऐसा सहयोगी जो पार्टी को बनाने में काम कर रहा है। जबकि मोदी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंडे पर ध्यान दे रहे हैं।

बिहार में बीजेपी की हार से क्षेत्रीय पार्टियों को मजबूती मिलेगी। नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ लड़ने वाली सारी विरोधी पार्टियों के नेता के तौर पर उभर सकते हैं। एक समय सपा के मुलायम सिंह यादव ने भी यह भूमिका चाही थी, लेकिन कम वक्त के लिए वे ऐसा कुछ कर सके थे। नीतीश कुमार के लिए एक जीत, राष्ट्रीय परिदृश्य पर उन्हें मजबूत बना देगी। जिसकी चाहत उन्हें लंबे अरसे से रही है।

बिहार में हार के बाद बीजेपी के लिए 2016 में चुनावों से गुजरने वाले राज्यों में पार्टी का अभियान कमजोर पड़ सकता है। खासकर इसके बाद 2017 की शुरुआत में उत्तरप्रदेश में चुनाव होने हैं। बिहार के बाद बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तरप्रदेश ही है। इसी वजह से बिहार में हार से केवल यूपी में सपा को फायदा मिलेगा, बल्कि बसपा भी ताकतवर होगी।

बिहार में हारना बीजेपी के लिए ठीक नहीं रहेगा। निश्चित तौर पर मोदीके विकास एजेंडे को इससे नुकसान पहुंचेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लोकप्रिय नेता के रूप मे उनकी छवि को भी इससे धक्का लगेगा। खासकर एक ऐसे नेता की छवि, जो भारत के लिए काफी कुछ सकता है और कर रहा है।

कल हम जान जाएंगे कि बीजेपी आखिर किस राह पर है।

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