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बिहार चुनावः बीजेपी सामने लाई नीतीश कुमार का तांत्रिक के साथ वीडियो

October 25, 2015


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बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया। इसमें जेडी(यू) नेता नीतीश कुमार एकतांत्रिकसे आशीर्वाद लेते नजर रहे हैं। वीडियो बताता है कि नीतीश कुमार के समर्थन में तांत्रिक नारे लगा रहा है और उन्हें जीत का आशीर्वाद दे रहा है। रुचिकर यह है कि वही तांत्रिक लालूविरोधी नारे भी लगा रहा है। इससे दो प्रश्न उठते हैं; यह वीडियो कितना पुराना है और नीतीश कुमार को तांत्रिक के पास पहुंचने की जरूरत क्या पड़ी?

जेडी(यू) ने वीडियो को यह कहकर खारिज कर दिया कि वह पुराना है, जून 2014 का। बीजेपी पर निचले स्तर की राजनीति करने का आरोप भी लगा दिया। जेडी(यू) की यह टिप्पणी अपने आप में मनोरंजक है। एकदूसरे के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर इस समय सभी पक्ष आरोप लगा रहे हैं कि निचले स्तर की राजनीति की जा रही है। लेकिन यह वीडियो पुराना है, इस बात में कुछ तथ्य नजर रहा है। तांत्रिक मुखर होकर लालूविरोधी नारे लगा रहा है। लालू प्रसाद ने इस वीडियो को अपने ही अंदाज में खारिज किया। यह भी कह दिया कि वे ही सबसे बड़े तांत्रिक हैं।

तो नीतीश कुमार को तांत्रिक का आशीर्वाद लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसका जवाब इतना सरल है कि भारत में कई लोगों की तरह उन्हें भी अपनी श्रद्धा प्रकट करने का अधिकार है। लेकिन एक राजनीतिज्ञ के तौर पर सरल रहना बहुत जरूरी है। राजनीतिज्ञ अपने लिए सीधा रास्ता बनाने के लिए जाने जाते हैं, खासकर जब चुनाव होने वाले होते हैं तो वे सभी तरह के साधुसंन्यासियों, सभी तरह के मंदिरों में जाते हैं। खासकर हिंदू वोटरों से जुड़ने के लिए। आखिर उनके वोट भी मायने रखते हैं।

तो क्या जो वीडियोलीकहुआ, उससे नीतीश कुमार को नुकसान होगा? एक दिन की शर्मनाक स्थिति को छोड़ दें तो जवाब होगानहीं। लोग तांत्रिक से उनका आशीर्वाद लेना पसंद करेंगे। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि बिहार में लोग काफी धार्मिक है। वे निरंतर साधुआश्रम और मंदिरों में जाते रहते हैं।

क्या जीतन मांझी गठबंधन पर दूसरी राय रखते हैं?

राजनीति में राजनीतिक महत्वाकांक्षा बहुत ही चालाक व्यापार होती है। यह रिश्तों को बना या बिगाड़ सकती है। जब जीतन मांझी ने जेडी(यू) कैम्प छोड़ा या उन्हें छोड़ना पड़ा, उन्हें उम्मीद थी कि बीजेपी ऐसे तबके को अपनी ओर करने की कोशिश करेगी जो कभी उसके साथ नहीं रहा। वे सही साबित हुए, बीजेपी ने उन्हें साथ लिया। इस बात का मोल लगाया कि मांझी पार्टी में क्या योगदान दे सकते हैं। हकीकत तो यह है कि मांझी के बीजेपी के करीब आने से पार्टी को बिहार की रणनीति को नए सिरे से बनाना पड़ा। दलित, महादलित, ईबीसी, ओबीसी, एससी/एसटी से संपर्क बढ़ाने के लिए बीजेपी ने कड़ी मेहनत की। इसके लिए एलजेपी और आरएलएसपी को अपने साथ किया।

समस्या धारणा की है। जीतन मांजी को लगने लगा कि वह पिछड़ों के नए चेहरे हैं। उन्हें इस बात का भरोसा था कि बीजेपी को बिहार जीतने के लिए उनकी जरूरत है और पार्टी सत्ता में आने के लिए एक दलित मुख्यमंत्री चेहरा पेश करेगी। यह विश्वास आज भी कायम है। लेकिन जब बीजेपी ने राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टियों को मांझी के हम के मुकाबले ज्यादा सीटें देकर यह जता दिया कि वे उनसे ज्यादा प्रभावी नेता हैं। तब से जीतन मांझी रुठे हुए हैं, लेकिन उनके पास कुछ और करने का विकल्प नहीं है।

अमित शाह ने भी साफ किया कि उनकी पार्टी ने कोई वादा नहीं किया है कि यदि एनडीए सत्ता में आती है तो जीतन मांझी मुख्यमंत्री बनेंगे। इससे मांझी की मुख्यमंत्री बनने की रहीसही उम्मीदें भी ध्वस्त हो गई।

लेकिन अब जनरल वीके सिंह नेकुत्तेकी टिप्पणी की तो मांझी ने अपने समीकरणों का आकलन कर बीजेपी पर हमला बोला। उनकी पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने जनरल सिंह की टिप्पणी पर पार्टी की नाराशा और असहमति जताई। जनरल सिंह की माफी भी ठुकरा दी। इतना ही नहीं पार्टी ने कहा कि प्रधानमंत्री जनरल सिंह पर कार्रवाई करें और उन्हें कैबिनेट से हटाएं। पार्टी ने यह कहते हुए अपने विकल्प खुले रखे कि वह इंतजार करेगी और देखेगी कि प्रधानमंत्री क्या जवाब देते हैं। उसके बाद ही अगली रणनीति तय करेगी।

क्या इसी क्षण का मांझी इंतजार कर रहे थे? उन्होंने महसूस किया है कि उनकी कीमत चुनावों तक ही है। तब तक बीजेपी को उनकी जरूरत है। यदि बीजेपी अपने दम पर अच्छा कर जाती है तो उनकी भूमिका गठबंधन में छोटे सहयोगी की तरह होगी। अगले कुछ दिन बताएंगे कि मांझी का पलड़ा किधर झुकता है। 28 अक्टूबर को मतदान होने वाला है, इस वजह से उन्हें भी फैसला जल्दी करना होगा।

जेडी(यू) के लिएनागमणिने छोड़ा तीसरा मोर्चा

समरस समाज पार्टी (एसएसपी) नेता और तीसरे मोर्चे के गठबंधन सहयोगी नागमणि ने गठबंधन तोड़ दिया है। वे महागठबंधन में शामिल हो गए हैं। उन्होंने इसका कारण बताया कि उन्हें लगता है कि मुलायम सिंह बीजेपी केएजेंटबनकर उभर रहे हैं। इस वजह से उनकी पार्टी ने रास्ता अलग किया औरधर्मनिरपेक्षगठबंधन में शामिल होने का फैसला किया।

बिहार के कई नेताओं की तरह, उनका इतिहास भी पार्टियां बदलने का रहा है। बाहर होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अपनी ही पार्टी बना लीसमरस समाज पार्टी (एसएसपी)कुशवाहासमाज से ताल्लुक रखने वाले नागमणि का अपना जनाधार है जरूर, लेकिन सीमित क्षेत्रों में। उनके पिता जगदेव प्रसाद ओबीसी के लोकप्रिय नेता थे। नागमणि उतने लोकप्रिय तो नहीं हैं, लेकिन कुशवाहा समाज में उनका थोड़ाबहुत जनाधार जरूर है।

पार्टी 12 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है। इनमें से पांच में अगले दौर में वोटिंग होना है। वे खुद अरवाल जिले के कुरथा से लड़े हैं। उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा ने समस्तीपुर जिले के मरोवा से चुनाव लड़ा। महागठबंधन में उनकी एंट्री गठबंधन के लिए नैतिक जीत है, जबकि मुलायम सिंह के तीसरे मोर्चे में बची हुई पार्टियों के लिए एक बड़ा झटका।

मुलायम सिंह अब ऐसी स्थिति में हैं, जहां वे बिहार में महत्व खो चुकी पार्टी होने का दोषी सिर्फ खुद को ही ठहरा सकते हैं। लालू प्रसाद से पारिवारिक रिश्ते होने बावजूद उनके पास अच्छा मौका था। उन्होंने लालू की बेटी की शादी अपने भतीजे से करवाई थी। लेकिन इसका फायदा उन्हें नहीं मिला। मुलायम सिंह अब चौराहे पर खड़े हैं, आगे कहां जाना है, इसकी दुविधा है। वे निश्चित तौर पर अगला कदम उठाने से पहले चुनाव के नतीजों का इंतजार करना चाहेंगे।

फोटो कैप्शनः बीजेपी और तांत्रिक वीडियो।