बिहार महाभारतः जनमत सर्वेक्षण बता रहे हैं कि एनडीए का जनाधार बढ़ रहा है, लेकिन नीतीश कुमार- मुख्यमंत्री पद के लिए लोगों की पहली पसंद
जनमत सर्वेक्षणः नीतीश कुमार – मुख्यमंत्री पद के लिए लोगों की पहली पसंद
टाइम्स नाऊ–सी वोटर ने ताजा जनमत सर्वेक्षण के नतीजे घोषित कर दिए हैं। इसमें कुछ रोचक ट्रेंड सामने आए हैं। चुनावों की घोषणा के वक्त एनडीए ने शुरुआत अंडरडॉग की तरह की थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि वह महागठबंधन को पछाड़ने की स्थिति में आ रहा है।
8 सितंबर को हुए जनमत सर्वेक्षणों में महागठबंधन को 124 सीटों के मुकाबले एनडीए को 102 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी। 23 सितंबर के सर्वेक्षण में एनडीए अपनी स्थिति में सुधार करते हुए 117 सीटों तक पहुंच गया। वह भी 43 प्रतिशत वोटों के साथ। महागठबंधन घटकर 112 सीटों पर ठहर गया है। वह भी एक प्रतिशत कम यानी 42 प्रतिशत वोटों के साथ।
अन्य की सीटें भी 17 से घटकर 14 रह गई हैं। वोटों की हिस्सेदारी है 15 प्रतिशत। जनमत सर्वेक्षणों के नतीजे देखकर लगता है कि सभी जातियों को शामिल करने वाले सीटों के बंटवारे के फार्मूले को लोगों ने अच्छा प्रतिसाद दिया है। महागठबंधन में भी सीटों के बंटवारे में सभी जातियों को बराबरी देने की कोशिश की गई है। लेकिन ऐसा लगता है कि लोगों ने एनडीए को बेहतर माना है। निश्चित तौर पर कई अन्य पहलू भी हैं, जो आने वाले दिनों में दोनों गठबंधनों के बीच अंतर कम करेंगे या आने वाले दिनों में किसी भी पक्ष का पलड़ा भारी कर सकेंगे।
एक अन्य रोचक तथ्य सामने आया है, लेकिन उस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नीतीश कुमार अब भी मुख्यमंत्री पद पर लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। यह बताता है कि मुख्यमंत्री और शासन के मसले पर मतों का बहुत बड़ा अंतर है।
एनडीए में इनमें से कोई बन सकता है मुख्यमंत्री
एनडीए में, खासकर बीजेपी बिहार में सत्ता में आने के मौके बन रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि – अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? संभावित विकल्प इस तरह हैः
सुशील कुमार मोदी, बीजेपी
वह मुख्यमंत्री के पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। सबसे बड़े दावेदार भी हैं। एसके मोदी लंबे अरसे से बिहार की राजनीति का हिस्सा हैं। 1962 में वे आरएसएस की विचारधारा की ओर आकर्षित हुए थे। उन्होंने 1962 के भारत–चीन युद्ध के दौरान नागरिक सुरक्षा की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए संगठन की सदस्यता ली थी। वे जमीनी स्तर पर आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता बने रहे। 1990 में, उन्होंने बीजेपी के सदस्य के तौर पर राजनीति में प्रवेश किया।
सुशील कुमार मोदी 24 नवंबर 2005 से 16 जून 2013 तक आठ साल बिहार के उप–मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री रहे हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार हैं। प्रशासक के तौर पर उनका अनुभव भी बहुत अच्छा रहा है। उन्हें बिहार की आर्थिक और वित्तीय स्थिति अच्छे–से पता है। इतना ही नहीं, उनकी छवि भी अविवादित और साफ–सुथरी है। वह एक ऐसे चेहरे हैं, जिस पर पार्टी के ज्यादातर सदस्य और अन्य दल भी सहमत होंगे। वे इस समय मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं।
शाहनवाज हुसैन, बीजेपी
पार्टी के पुराने विश्वस्त हैं और एक मुस्लिम भी। इस नाते शाहनवाज हुसैन मुख्यमंत्री के पद के लिए गंभीर उम्मीदवार बन जाते हैं। भले ही हालिया टाइम्स नाऊ–सी वोटर के जनमत सर्वेक्षण में उन्हें जीतन मांझी के पीछे दिखाया गया है, लेकिन उनकी नियुक्ति बीजेपी के लिए कई तरह से लाभदायक होगी। पार्टी इसके जरिए यह साबित कर सकेगी कि वह अल्पसंख्यकों को भी उचित प्रतिनिधित्व देती है। इसके जरिए मुस्लिमों के सबसे बड़े हितैषी बनने वाले मुलायम सिंह यादव को भी जवाब दिया जा सकेगा, जो उत्तरप्रदेश के आने वाले चुनावों में पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है।
राम विलास पासवान, एलजेपी
राम विलास पासवान एक अनुभवी राजनेता हैं। केंद्र सरकार में मंत्री रहे हैं, जिससे प्रशासन की अच्छी समझ है। उनके पास रेलवे, संचार और आईटी, रसायन और उर्वरक, खदान मंत्रालय पहले रहे हैं। इस समय नरेंद्र मोदी सरकार में उनके पास उपभोक्ता मामले, खाद्य औय़र वितरण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी है।
राम विलास पासवान एक लोकप्रिय दलित नेता हैं। केंद्र में प्रशासन का अच्छा अनुभव होने के बाद भी उन्हें बिहार की राजनीति की अच्छी समझ है। उनकी सबसे बड़ी खामी यह है कि उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी कोई खास विचारधारा नहीं है। व्यक्तिगत फायदों और राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए वे पाला बदलते रहे हैं। भले ही इस समय उनका पहले जैसा राजनीतिक प्रभाव न हो, वे आज भी प्रासंगिक हैं। बीजेपी को लगता है कि वे दलित–महादलित वोटरों पर जीतन राम मांझी से ज्यादा प्रभाव डाल सकते हैं।
इस बात की पुष्टि इस बात से होती है कि एलजेपी को 40 सीटें दी गई, जबकि जीतन मांझी की हम को 20 सीटें। यदि बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो सुशील कुमार मोदी को पछाड़ने की स्थिति में राम विलास पासवान नहीं है। यदि नंबरों में बीजेपी पिछड़ गए और दलित उम्मीदवार के तौर पर आगे रखकर समर्थन जुटाना पड़े तो राम विलास पासवान जीतन मांझी को पछाड़ सकते हैं।
जीतन राम मांझी, हम
दलित नेता जीतन राम मांझी बिहार की राजनीति में लंबे अरसे से सक्रिय हैं, लेकिन कभी भी मुख्य चेहरा नहीं रहे। नीतीश कुमार ने जब उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुना तब लोगों को उनके बारे में और जानने का मौका मिला। वे लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री नहीं रह सके और जेडी(यू) ने ठुकरा दिया। जब वे सीएम थे, तब कुशल प्रशासक के तौर पर सामने नहीं आए। पार्टी सदस्य ही उनसे नाराज थे। वे लापरवाही भरे बयानों की वजह से विवादों में भी रहे। इससे उनकी छवि भी खराब हुई।
तुलनात्मक रूप से कमजोर होने के बाद उन्होंने हम बनाई और एनडीए खेमे में जुड़े। इस पेशकश के साथ कि वे दलित वोट साथ में लाएंगे। हालांकि, सीटों के बंटवारे से साफ है कि एनडीए में भी उनकी स्थिति मजबूत नहीं हैं। वे मुख्यमंत्री की कुर्सी के इतने तगड़े दावेदार नहीं हैं।
उपेंद्र कुशवाहा, आरएलएसपी
उपेंद्र कुशवाहा 1985 में युवा लोक दल के महासचिव के तौर पर राजनीति में दाखिल हुए। वे समता पार्टी में शामिल होने से पहले उसके राष्ट्रीय महासचिव तक बने। इसके बाद वे बिहार की राजनीति में सक्रिय हुए। उनकी ताकत यह है कि वे कुशवाहा समुदाय के वोट्स का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन अन्य राजनीतिक तबकों में उनकी स्वीकार्यता कमजोर है। उनके पास बड़ा प्रशासनिक अनुभव भी नहीं है। बिहार में राजनीतिक अस्तित्व के लिए यह बेहद जरूरी है। वे मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पसंद के तौर पर सबसे कमजोर दावेदार हैं।
चर्चा में नेताः शत्रुघन प्रसाद सिन्हा, बीजेपी (जन्म 15 जुलाई 1946)
शत्रुघन सिन्हा 16वीं लोक सभा में पटना साहिब लोक सभा क्षेत्र के मौजूदा सांसद हैं। काफी कम लोग जानते हैं कि लोकप्रिय फिल्म अभिनेता शत्रुघन सिन्हा पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। इसके बाद उन्होंने पुणे के एफटीआईआई में फिल्म में कलाकारी की पढ़ाई की और फिर फिल्म उद्योग में दाखिल हुए। 225 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने काम किया। उसके बाद राजनीति में शामिल हुए और तब से बीजेपी के सदस्य हैं। वे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और जहाजरानी मंत्री रहे हैं। वे इस समय बिहार में चुनाव अभियान के लिए बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में हैं।
चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः जमुई
बिहार–झारखंड सीमा पर स्थित जमुई जिला मुख्यालय होने के साथ ही एक नगर पालिका है। इसे 21 फरवरी 1991 को मुंगेर जिले से काटकर अलग किया गया। यह 3,122.80 वर्ग किमी में फैला है। जनगणना 2011 के मुताबिक जमुई जिले की आबादी 17,60,405 है। इनमें 9,16,064 पुरुष और 8,44,341 महिलाएं हैं।
2010 विधानसभा चुनाव परिणामः
- 2010 के विधानसभा चुनाव के विजेताः अजय प्रताप, जेडी(यू)
- जीत का अंतरः 24,467 वोट्स; 20.09% कुल वैध मतों का
- निकटतम प्रतिद्वंद्वीः विजय प्रकाश, आरजेडी
- पुरुष वोटरः 65,481; महिला वोटरः 56,302; कुलः 1,21,784
- मतदान प्रतिशतः 53.50
- पुरुष उम्मीदवारः 10; महिला उम्मीदवारः 1
- मतदान केंद्रः 253