Home / / बिहार चुनावः पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान

बिहार चुनावः पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान

October 13, 2015


बिहार में पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग

बिहार के विधानसभा चुनावों में पहले चरण का मतदान कल संपन्न हुआ। अच्छी खबर यह है कि 57% से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। यह 2010 के 50.85% से 6.15% ज्यादा है। वोट देने में महिलाओं ने पुरुषों को भी पछाड़ दिया। 59.5% महिला वोटरों ने, वहीं 54.5% पुरुष वोटरों ने भी अपने मताधिकार का प्रयोग किया। पहले चरण में 10 जिलों की 49 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ।

2010 और 2015 के बीच मतदान की तुलना करने पर पता चलता है कि इन चुनावों में बिहार के नागरिकों ने किस तरह का प्रतिसाद दिया है। नतीजे बेहद सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाले हैं। पहले चरण में शामिल सभी विधानसभा क्षेत्रों में मतदान में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। यह भी एक हकीकत है कि पुरुषों के मुकाबले ज्यादा संख्या में वोट डालकर महिलाओं ने बता दिया है कि बिहार में महिलाओं की पारंपरिक सोच बदल रही है। अब वह अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा सजग और जागरूक हैं। वह अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में खुलकर वोट डालने को तैयार हैं।

यदि यह ट्रेंड जारी रहा तो बिहार सियासत में एक नया ट्रेंड शुरू कर सकता है। जिससे दूसरे राज्यों के नागरिक, खासकर महिलाएं सबक ले सकती हैं। उम्मीद की जा रही है कि बाकी बचे चार चरणों में भी पुरुष और महिलाएं, दोनों ही वोटर्स इसी तरह सकारात्मकता कायम रखते हुए वोटिंग प्रतिशत को बढ़ाएंगे।

2010 और 2015 में वोटिंग प्रतिशत की तुलना

जिला 2010 2015 अंतर

समस्तीपुर 54.20% 60% +5.80%

बेगुसराय 55.85% 59% +3.15%

खगड़िया 57.20% 61% +3.80%

भागलपुर 50.09% 56% +5.91%

बांका 49.34% 58% +8.66%

मुंगेर 48.35% 55% +6.65%

लखीसराय 48.33% 54% +5.67

शेखपुरा 50.58% 55% +4.42%

नवादा 45.04% 53% +7.96%

जमुई 49.49% 57% +7.51%

ज्यादा मतदान वाले कुछ विधानसभा क्षेत्रों का आकलन

बांका में मतदान में 8.66% की सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई। 2010 में आरजेडी के जावेद इकबाल अंसारी ने बीजेपी के राम नारायण मंडल को 2,410 के मामूली अंतर से हराया था। यह अंतर आरजेडी के लिए आरामदेह नहीं है। इस बार उसने जफरुल होड़ा को उतारा है, जबकि बीजेपी ने फिर राम नारायण मंडल पर ही दांव आजमाया है। चूंकि बांका में मुस्लिम आबादी करीब 14.15 प्रतिशत है। ऐसे में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी बीजेपी उम्मीदवार को फायदा पहुंचा सकती है। इससे यह तो साफ है कि आरजेडी के लिए यहां मुकाबला कड़ा हो गया है।

नवादा में 2010 के मुकाबले 7.96% ज्यादा मतदान हुआ है। इस विधानसभा क्षेत्र में आरजेडी और जेडी(यू) का जनाधार व्यापक है। 2010 में जेडी(यू) की पूर्णिमा यादव ने आरजेडी के राजबल्लभ प्रसाद को 6,337 वोटों के मामूली अंतर से हराया था। इन चुनावों में जेडी(यू) की पूर्णिमा ने यह सीट आरजेडी के राजबल्लभ प्रसाद के लिए यह सीट छोड़ी है। इस बार जेडी(यू) का समर्थन मिलने और वोटिंग प्रतिशत बढ़ने से उनकी स्थिति ज्यादा मजबूत दिख रही है। बीजेपी ने यह सीट अपने गठबंधन सहयोगी आरएलएसपी के लिए छोड़ी थी, जिसने इंद्रदेव प्रसाद को यहां से उतारा है। लेकिन जेडी(यू)-आरजेडी के इस मजबूत गढ़ में उनके लिए राह आसान नहीं होगी।

जमुई वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी के लिहाज से तीसरे स्थान पर रहा। यहां 2010 के मुकाबले वोटिंग प्रतिशत 7.51% बढ़ा है। 2010 में जेडी(यू) के अजय प्रताप ने यहां आरजेडी के विजय प्रकाश को 24,467 वोट्स से हराया था। नीतीश कुमार ने जीतन मांझी को हटाया तो अजय प्रताप उनकी पार्टी हमएस में शामिल हो गए। उनके पिता नरेंद्र सिंह अब भी हमएस के वरिष्ठ नेता बने हुए हैं। लेकिन अजय प्रताप को बीजेपी ने अपने चुनाव चिह्न पर जमुई सीट से उतारा है।

उनका मुकाबला पुराने प्रतिद्वंद्वी आरजेडी के विजय प्रकाश से है। जमुई में दलित और महादलित आबादी महत्व रखती है, जो बीजेपी के अजय प्रताप के पक्ष में जा सकती है। वे एनडीए का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिसमें हम भी पार्टनर है। वोटिंग प्रतिशत के बढ़ने का फायदा अजय प्रताप को मिलने के आसार ज्यादा है। लेकिन उन्हें बीएसपी के प्रमोद कुमार मंडल को रोकना होगा, जो दलितमहादलित वोटों की फिराक में हैं। इसका असर अजय प्रताप के वोट शेयर पर भी पड़ सकता है।

मुंगेर में 6.65% ज्यादा वोटिंग हुई है। यह एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां यादव और मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका में है। 2010 में अनंत कुमार सत्यार्थी, जेडी(यू) ने आरजेडी की शबनम परवीन को 17,613 वोट्स से हराया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह दोनों ही प्रत्याशी इस बार चुनाव मैदान में नहीं है। जेडी(यू) ने यादवों के वरिष्ठ नेता विजय कुमार ‘विजय’ को उम्मीदवार बनाया है। वहीं बीजेपी ने युवा प्रवाव कुमार को मैदान में उतारा है जो खुद भी एक यादव हैं।

इस विधानसभा क्षेत्र में यादव उम्मीदवार खड़ा करते हुए बीजेपी ने सीट पर कब्जा जमाने की रणनीति बनाई है, लेकिन उसे इसके लिए जेडी(यू)-आरजेडीमुस्लिम वोटबैंक की तिकड़ी का सामना करना पड़ेगा। वोटिंग प्रतिशत बढ़ने से ‘विजय’ को फायदा मिल सकता है। विजय कुमार ‘विजय’ को सिर्फ एक नुकसान दिख रहा है और वह यह है कि एनसीपी के सैयद मोहम्मद जावेद मुस्लिम वोट बांटकर उनके वोट शेयर को कमजोर कर सकते हैं।

भागलपुर वोटिंग में 5.91% की बढ़ोतरी के साथ मुंगेर से पीछे है। भागलपुर आरएसएस का एक मजबूत गढ़ रहा है, जिसका फायदा बीजेपी को भी मिलता है। 20 वर्षों से इस क्षेत्र पर बीजेपी का कब्जा रहा है। 2010 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के चार बार के विधायक अश्विनी कुमार चौबे ने स्थानीय तौर पर अच्छाखासा जनाधार रखने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत शर्मा को हराया था। हालांकि, 2014 लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अश्विनी कुमार ने यह सीट खाली की। उपचुनावों में कांग्रेस के अजीत शर्मा जीते और तब से वे भागलपुर के लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं।

इस साल, अश्विनी कुमार चौबे के बेटे अरिजित शाश्वत चौबे को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है। यह बात बीजेपी के स्थानीय नेता विजय शाह को रास नहीं आए। कई लोग सहमत होंगे कि अश्विनी चौबे को ताकतवर बनाने में विजय शाह की भी भूमिका रही है। उन्हें टिकट मिलने की उम्मीद भी थी, लेकिन पार्टी ने जब अरिजित को टिकट दिया तो उन्होंने बगावत कर दी और निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। पार्टी से उनके बाहर होने से कांग्रेस के अजीत कुमार को ही मजबूती मिलेगी क्योंकि अरिजित फिलहाल राजनीति का ककहरा ही सीख रहे हैं। वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी का लाभ कांग्रेस के अजीत कुमार को मिल सकता है।

समस्तीपुर में 5.80% ज्यादा वोटिंग हुई है। यह भागलपुर के पास का इलाका है। दोनों ही शहरों की आबादी अच्छीखासी है। ऐसे में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी का गहरा असर चुनाव के परिणामों पर भी पड़ेगा। 2010 के विधानसभा चुनावों में आरजेडी के अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने जेडी(यू) के रामनाथ ठाकुर को 1,827 वोट्स के मामूली अंतर से हराया था। समस्तीपुर में यादव और मुस्लिम आबादी निर्णायक रहेगी। पिछले चुनावों में आरजेडी और जेडी(यू) परस्पर विरोधी थे। लेकिन इस बार साथ में है। जेडी(यू) आरजेडी के विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन के पक्ष में प्रचार कर रहा है।

इससे बीजेपी की रेणु कुमारी (कुशवाहा) के खिलाफ उनके मुकाबले को मजबूती मिलेगी। रेणु कुमारी पहले जेडी(यू) में थी। 2014 में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले उन्होंने नीतीश सरकार से नाता तोड़ा था। उन्हें यहां अख्तरुल इस्लाम से कड़ा मुकाबला करना होगा क्योंकि यहां उन्हें मुस्लिमों के नेता के तौर पर देखा जाता है। इस बात को यादवों का समर्थन भी उनके साथ रहेगा। ऐसे में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी का लाभ आरजेडी को मिल सकता है।