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बिहार चुनावः बड़ी रैलियों के बाद भागलपुर और बांका का माहौल

October 5, 2015


भागलपुर और बांका में लोगों की नब्ज टटोली गई।

भागलपुर ने हाल ही में सोनिया गांधी की मेजबानी की थी। ऐसे में लोगों पर उनके अभियान का असर जानने के लिए क्षेत्र की नब्ज टटोलना जरूरी हो जाता है। एक तथ्य तो यह भी है कि नरेंद्र मोदी ने भी पड़ोसी जिले बांका में अपना अभियान शुरू किया। दो बड़ी रैलियों का इन इलाकों पर क्या असर हुआ, यह जानने के लिए लोगों से बात करना जरूरी है।

वैसे, भागलपुर पारंपरिक रूप से सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील इलाका रहा है। यहां चार बड़े समुदाय रहते हैंयादव, कुर्मी, गंगोता और मुस्लिम। 2010 के विधानसभा चुनावों में भागलपुर सीट पर बीजेपी के अश्विनी कुमार चौबे जीते थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अजीत शर्मा को 11,060 मतों से हराया । इससे साफ है कि उनका इस इलाके में अच्छाखासा प्रभाव है। अश्विनी चौबे अब बक्सर से लोक सभा सांसद हैं। वहीं भागलपुर संसदीय सीट पर 2014 में हुए लोक सभा चुनावों में बुलो मंडल के नाम से पहचान रखने वाले शैलेष कुमार ने आरजेडी उम्मीदवार के तौर पर बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को हराया था।

यह रोचक है कि 2010 में बीजेपी के अश्विनी चौबे ने विधानसभा सीट जीती थी और इस बार उनके बेटे अरिजित शाश्वत चौबे चुनाव मैदान में हैं। लेकिन 2014 में अलग ही परिदृश्य सामने आया। गंगोता समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आरजेडी के बुलो मंडल को लोक सभा चुनावों में शाहनवाज हुसैन के खिलाफ यादव और कुर्मी समुदायों का साथ मिला था। जबकि शाहनवाज ने बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ते हुए मुस्लिम वोट बांटे थे।

लेकिन 2015 में बीजेपी के अरिजित चौबे के खिलाफ लड़ाई में मुस्लिम समुदाय के साथ ही यादव, कुर्मी और गंगोता समुदाय एकजुट है। मौजूदा परिदृश्य 2010 से पूरी तरह अलग है, जब उनके (अरिजित के) पिता ने विधानसभा सीट जीती थी। 2014 में मोदी लहर इस सीट पर नाकाम ही रही थी और इसी वजह से शाहनवाज हुसैन हारे थे। इस बार भी जिले में मोदी का असर और भी कम है। ऐसे में बीजेपी के लिए भागलपुर जीतना बहुत ही मुश्किल है। ऐसा लगता है कि इस बार भी यहां जाति आधारित राजनीति हावी पड़ेगी और महागठबंधन के पक्ष में जाएगी।

अमेरिका से लौटने के बाद नरेंद्र मोदी ने बांका में पहली बड़ी रैली की। यहां बीजेपी के लिए बड़ी समस्या यह है कि भागलपुर की ही तरह यहां भी यादव, कुर्मी, गंगोता और मुस्लिम एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ वोट दे सकते हैं। अगड़ी जातियां जरूर बीजेपी के पक्ष में जा सकती हैं, लेकिन उनका बहुमत नहीं है।

2010 के विधानसभा चुनावों में बांका सीट आरजेडी के जावेद इकबाल अंसारी ने बीजेपी के राम नारायण मंडल को 2,410 वोटों के मामूली अंतर से हराकर जीती थी। इसी तरह 2014 के लोक सभा चुनावों में आरजेडी के जेपीएन यादव ने जीत हासिल की। वे दो बार के सांसद हैं और इलाके में उनका अच्छाखासा प्रभाव भी दिखता है।

अब तक, आम जनभावना महागठबंधन के पक्ष में दिख रही है। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत करिश्मा पार्टीलाइन से हटकर स्थानीय लोगों के दिल जीत रहा है। ऐसे में बड़ा प्रश्न यह उठता है कि बीजेपी का विकासात्मक एजेंडा बरसों से चली आ रही जातिगत राजनीति को पीछे छोड़ पाएगा या नहीं, इसका जवाब मिलना अभी शेष है।

लालू यादव के बीफ खाने की टिप्पणी पर उठा तूफान

उत्तरप्रदेश के दादरी में बीफ खाने की अफवाह पर एक मुस्लिम की हत्या के मसले पर प्रतिक्रिया देते हुए लालू प्रसाद यादव ने कहा कि हर एक को कुछ भी खाने का हक है। हिंदू भी बीफ खाते हैं। उनकी इस टिप्पणी ने विपक्ष को हमले करने का मौका दे दिया। दक्षिणपंथी हिंदू समूहों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और लालू प्रसाद के खिलाफ खुलकर सामने आए।

इस टिप्पणी ने लालू के अपने गठबंधन को भी असहज कर दिया और लालू अलगथलग पड़ गए। लेकिन जिस तरह के लड़ाका वे हैं, उन्होंने हालात को सांप्रदायिक बनाने की कोशिशों का पुरजोर विरोध जारी रखा। निश्चित तौर पर इसका बिहार चुनावों पर भी असर दिख सकता है।

चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से अपना चुनाव घोषणापत्र जमा कराने को कहा

शुक्रवार को चुनाव आयोग दफ्तर ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की। सभी राजनीतिक दलों से कहा कि अपनेअपने चुनाव घोषणा पत्रों की हार्ड और सॉफ्ट कॉपी जल्द से जल्द आयोग में जमा कराए। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2013 के आदेश के साथ एक पत्र अप्रैल में जारी किया था। प्रेस विज्ञप्ति उसी का फॉलोअप है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि राजनीतिक दलों को वोटरों के सामने वादे करने होते हैं, यह ठीक है। लेकिन यह देखना चाहिए कि सभी पार्टियों के लिए मौके बराबरी से हो। यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से कराए जाए। वह भी अनुचित प्रलोभनों के बिना। यह उपाय राजनीतिक दलों को चुनावों के दौरान वादों को नियंत्रित रखने के लिए थे। वैसे, चुनाव आयोग के पास अपने वादों को पूरा करने के लिए पार्टियों को मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं है।

चर्चा में नेताः हुकुमदेव नारायण यादव, बीजेपी (जन्म 17 नवंबर 1939)

हुकुमदेव नारायण यादव 16वीं लोक सभा में मधुबनी, बिहार के मौजूदा सांसद हैं। उनका जन्म दरभंगा जिले के बिजुली में राजगिर यादव और चंपा देवी के घर हुआ था। एचएन यादव ने दरभंगा के चंद्रधारी महाविद्यालय और मुजफ्फरपुर के बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री ली।

1960 में वे पहली बार राजनीति में आए। उसी साल वे बिजुली में दो साल के कार्यकाल के लिए ग्राम प्रधान बने। फिर 1967 में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर चुने गए। तब से वे तीन बार विधानसभा सदस्य रहे हैं। 1977 में पहली बार वे 6टी लोक सभा के लिए सांसद चुने गए थे। पांच बार सासंद रह चुके हैं। वे अलगअलग मौकों पर चीफ व्हिप और राज्यसभा में डिप्टी लीडर भी रहे हैं। वे कृषि, सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्रालयों में राज्यमंत्री रहे हैं। वे अब भी राजनीति में सक्रिय हैं।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः पटना साहिब

बिहार की राजधानी पटना को 2008 में दो लोक सभा सीटों में बांटा गया – पाटलिपुत्र और पटना साहिब।

पटना साहिब की पहचान पटना साहिब गुरुद्वारा की वजह से है। यह सिख समुदाय के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। समुदाय के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म यहां हुआ था। पटना साहिब में पटना साहिब के अलावा पांच विधानसभा सीटें हैं। मौजूदा सांसद बीजेपी के शत्रुघन सिन्हा हैं। वे इसी क्षेत्र से लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक पटना जिले की आबादी 58,38,465 है। इनमें पुरुष 30,78,512 हैं जबकि महिलाएं 27,59,953 हैं।

2010 विधानसभा चुनाव परिणामः

  • 2010 विधानसभा चुनाव में विजयी प्रत्याशीः नंद किशोर यादव, बीजेपी

  • जीत का अंतरः 65,337; 48.65% कुल वैध मतों का

  • निकटतम प्रतिद्वंद्वीः परवेज अहमद, कांग्रेस

  • पुरुष वोटरः 83,083; महिला वोटरः 51,218; कुलः 1,34,301

  • मतदान प्रतिशतः 45.86

  • पुरुष उम्मीदवारः 15; महिला उम्मीदवारः 0

  • मतदान केंद्रः 289